ईरान में गहराता जल संकट

रान इस समय अपने इतिहास के सबसे गंभीर जल संकट (Iran water crisis) से गुज़र रहा है। हालात निरंतर खराब हो रहे हैं। तेहरान शहर की जल आपूर्ति वाले बांध लगभग खाली हो चुके हैं (water shortage) और सरकार देश के लिए पीने का पानी जुटाने के लिए जूझ रही है। लंबे सूखे, तेज़ गर्मी, कुप्रबंधन, बढ़ती आबादी, आर्थिक मुश्किलों, पुरानी कृषि प्रणालियों और जलवायु परिवर्तन (climate change) के मिले-जुले कारणों से देश बेहद कठिन स्थिति में पहुंच गया है।

गौरतलब है कि करीब 1 करोड़ आबादी वाले तेहरान की जल आपूर्ति पांच बड़े बांधों से होती है, लेकिन इन बांधों में अब अपनी सामान्य क्षमता से सिर्फ 10 प्रतिशत (dam depletion) पानी है। देश में 19 बांध सूखने की कगार पर हैं। करज जैसे भरोसेमंद जलाशय भी इतनी तेज़ी से सिकुड़ रहे हैं कि लोग यहां चहल-कदमी कर रहे हैं।

राष्ट्रपति मसूद पेज़ेश्कियन ने चेतावनी दी है कि अगर जल्द बारिश नहीं हुई, तो तेहरान में सख्त पानी राशन (water rationing) या सबसे बुरी स्थिति में कुछ इलाकों को खाली कराने तक की नौबत आ सकती है। विशेषज्ञ मानते हैं कि पूरा शहर खाली होना मुश्किल है, लेकिन यह चेतावनी हालात की गंभीरता दिखाती है।

ईरान पिछले छह वर्षों से लगातार सूखे (drought conditions) का सामना कर रहा है। पिछले साल गर्मियों का तापमान 50 डिग्री सेल्सियस से अधिक दर्ज किया गया था जिससे पानी तेज़ी से वाष्पित हुआ और पहले से कमज़ोर जल–प्रणालियों पर दबाव और बढ़ गया। पिछला जल-वर्ष सबसे सूखे वर्षों में से एक रिकॉर्ड किया गया था, और इस साल की स्थिति उससे भी खराब है। नवंबर की शुरुआत तक ईरान में सिर्फ 2.3 मि.मी.बारिश हुई – जो सामान्य औसत से 81 प्रतिशत कम है। बारिश और बर्फबारी न होने की वजह से बांध, नदियां और जलाशय तेज़ी से सिमट़ गए हैं।

जलवायु परिवर्तन और बढ़ती गर्मी इस संकट को और गंभीर बना रहे हैं, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि इस स्थिति के लिए दशकों का खराब प्रबंधन (water mismanagement) भी उतना ही ज़िम्मेदार है। ईरान ने कृषि और उद्योग को बढ़ाने की कोशिश तो की, लेकिन पानी की सीमाओं को ध्यान में नहीं रखा। सरकार लगातार नए बांध बनाती रही, गहरे कुएं खोदती रही और दूर-दराज़ के इलाकों से पानी खींचती रही – जैसे पानी की आपूर्ति कभी खत्म ही नहीं होगी।

यू.एन. विश्वविद्यालय के कावेह मदानी कहते हैं कि ईरान ने दशकों तक ऐसे व्यवहार किया जैसे उसके पास पानी अनंत मात्रा (unlimited water myth) में हो। आज पानी ही नहीं, बल्कि ऊर्जा और गैस प्रणालियां भी दबाव में हैं, जो संसाधन प्रबंधन की व्यापक विफलता दिखाता है।

सरकार ने चेतावनी दी है कि जल्द ही रात में पानी की सप्लाई बंद की जा सकती है, या पूरे देश में पानी की सख्त राशनिंग हो सकती (national water cuts) है। कई लोगों ने गर्मियों में अचानक पानी बंद होने का सामना किया था, जिससे जनता की नाराज़गी बढ़ी है।

अब पानी की कमी कई जगह तनाव और विरोध (water protest) का कारण बन रही है, खासकर गरीब इलाकों में। लंबे समय से चल रहे प्रतिबंधों, बेरोज़गारी, महंगाई और आर्थिक संकट ने लोगों की हालत पहले ही कमज़ोर कर दी है, इसलिए वे नए मुश्किल हालात झेल नहीं पा रहे।

सरकार ने लोगों से पानी कम इस्तेमाल करने और घरों में पानी स्टोरेज टैंक लगाने की अपील की है। लेकिन इस उपाय में एक बड़ी समस्या है – घरेलू उपभोग कुल पानी का सिर्फ 8 प्रतिशत है, जबकि 90 प्रतिशत से ज़्यादा पानी कृषि (agriculture water use) में जाता है। इसलिए अगर हर घर 20 प्रतिशत पानी कम भी इस्तेमाल करे, तो भी कुल मिलाकर इसका असर बहुत कम होगा।

ईरान के कानून के अनुसार, देश का 85 प्रतिशत भोजन घरेलू स्तर पर ही उगाया (food security policy) जाना चाहिए। इसका उद्देश्य तो खाद्य सुरक्षा है, लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि इससे जल सुरक्षा पर भारी असर पड़ा है। ईरान के पास इतना पानी और उपजाऊ ज़मीन ही नहीं है कि वह इतनी बड़ी मात्रा में खेती जारी रख सके। उधर, भूजल को इतनी तेज़ी से उलीचा जा रहा है कि इस्फहान जैसे मध्य क्षेत्रों में जमीन धंसने (land subsidence) लगी है। सिस्तान और बलूचिस्तान जैसे इलाकों में तो पूरे के पूरे पारिस्थितिकी तंत्र ध्वस्त होने की कगार पर हैं।

ईरान में सुधार की राह में एक बड़ा रोड़ा अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध (international sanctions) हैं। इन प्रतिबंधों की वजह से विदेशी निवेश देश में नहीं आ पाता। असर यह है कि न तो आधुनिक जल प्रबंधन प्रणाली विकसित हो पाती है, न खेती की उन्नत तकनीकें अपनाई जा सकती हैं, और न ही असरदार पानी-रीसाइक्लिंग तकनीकें लगाई जा सकती हैं।

ग्रामीण इलाकों में ज़्यादातर लोग खेती पर निर्भर (rural agriculture dependence) हैं। प्रतिबंधों के चलते नए रोज़गार निर्मित करना मुश्किल है। इसी कारण सरकार कृषि क्षेत्र को पानी देती है। इससे लंबे समय में जल संकट बढ़ सकता है लेकिन सामाजिक अशांति और विरोध से बचने के लिए सरकार इसे अपना रही है।

विशेषज्ञों का मत है कि पानी के संकट से उबरने के लिए बड़े और लंबे समय के सुधार करने होंगे, जैसे:

  • भूजल का पुनर्भरण;
  • भूजल भंडार की मरम्मत;
  • पानी से जुड़ा स्पष्ट और पारदर्शी डैटा (water data transparency);
  • पानी, ऊर्जा व कृषि पर बराबर ध्यान देकर योजना बनाना;
  • स्थानीय समुदायों की भागीदारी;
  • लंबी अवधि वाली पर्यावरणीय नीतियां;
  • आधुनिक, कम पानी-खर्ची कृषि तकनीकें;
  • क्षेत्रों के बीच पानी के न्यायपूर्ण बंटवारे को प्राथमिकता।

यदि ये सुधार नहीं किए गए, तो पानी की कमी देश में सामाजिक व आर्थिक असमानता (water inequality) को और बढ़ा सकती है और अस्थिरता पैदा हो सकती है। असली सुधारों के लिए नीति-निर्माताओं को कठिन फैसले लेने की हिम्मत दिखाना होगा।

फिलहाल निगाहें सर्दियों की बारिश पर टिकी हैं। लेकिन विशेषज्ञ चेताते हैं कि चाहे बारिश अच्छी भी हो जाए, जब तक गंभीर सुधार नहीं किए जाते, ईरान को पानी की कमी का सामना करना पड़ेगा (water scarcity future)। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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