डॉ. इरफान ह्यूमन

पृथ्वी पर जीवन सबसे पहले सूक्ष्मजीव (microorganisms) के रूप में प्रकट हुआ था। ये मिट्टी, पानी, हवा, मानव शरीर, गर्म झरनों से लेकर गहरे समुद्र तक हर जगह पाए जाते हैं। हाल ही में अमेरिका के कैंसास और नॉटिंघम विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं का एक अध्ययन नेचर माइक्रोबायोलॉजी जर्नल (Nature Microbiology) में प्रकाशित हुआ है, जो दिखाता है कि सूखी मिट्टी, देशी पौधों को 20-30 प्रतिशत बेहतर अनुकूलन देती है। इस अध्ययन का दूसरा पहलू, सूक्ष्मजीवों का तनाव, उनके याद रखने की क्षमता से जुड़ा हुआ है।
जैसा कि हम जानते हैं, जलवायु परिवर्तन (climate change) के कारण सूखे की घटनाएं बढ़ रही हैं, जो पौधों और फसलों की वृद्धि को बुरी तरह प्रभावित करती हैं। शोधकर्ताओं ने बताया कि मिट्टी में मौजूद सूक्ष्मजीव (जैसे बैक्टीरिया और कवक) (soil microbes) पिछले पर्यावरणीय तनावों को ‘याद’ रख सकते हैं, और पौधों को भविष्य के सूखों से लड़ने में मदद कर सकते हैं। इसे ‘सूक्ष्मजीवी स्मृति’ या विरासत प्रभाव (लेगसी इफेक्ट) कहते हैं।
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने कैंसास के छह घास के मैदानों (प्रेयरी) से मिट्टी (prairie soils) के नमूने लिए। नमूना स्थल पूर्वी कैंसास (पर्याप्त वर्षा) से लेकर पश्चिमी हाई प्लेन्स (सूखा) तक फैले हुए थे। विभिन्न वर्षा इतिहास वाली इन सूक्ष्मजीवी मिट्टियों में दो प्रकार के पौधे उगाए गए – देशी पौधे गैमाग्रास, जो कैंसास की देशज घास है और गैर-देशी फसल मक्का, जो मध्य अमेरिका से आया है और कैंसास में केवल कुछ हज़ार वर्ष पुराना है। इन सूक्ष्मजीवी समुदायों को प्रयोगशाला में दो स्थितियों में रखा गया – एक में पर्याप्त पानी और दूसरे में सीमित पानी। प्रयोग के बाद पता चला कि इससे सूक्ष्मजीवों में सूखे की यादें विकसित हुईं। वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया कि ये यादें (microbial memory) हज़ारों पीढ़ियों के बाद भी बनी रह सकती हैं।
कैसे संजोते हैं यादें
इस अध्ययन के निष्कर्ष में पाया गया कि सूखा इतिहास वाली मिट्टी के सूक्ष्मजीव पौधों को सूखे के दौरान बेहतर वृद्धि और उत्तरजीविता प्रदान करते हैं। ये यादें समुदाय की संरचना और जीन अभिव्यक्ति (gene expression) में बदलाव के रूप में प्रकट होती हैं। सूखे वाली मिट्टी के सूक्ष्मजीव पौधों में निकोटियानामाइन सिंथेज़ जीन को सक्रिय करते हैं, जो सूखे में लौह की कमी को दूर करता है। इससे पौधे अधिक मज़बूत हो जाते हैं। सामान्य पानी वाली मिट्टी के सूक्ष्मजीव यह लाभ नहीं देते।
अध्ययन में देशी पौधे (जैसे गैमाग्रास) (native plants) में सूक्ष्मजीवी विरासत प्रभाव बहुत मज़बूत पाया गया। ये पौधे स्थानीय सूक्ष्मजीवों के साथ लंबे समय से सह-विकास के कारण बेहतर अनुकूलित होते हैं। सूखे इतिहास वाले सूक्ष्मजीव इनकी वृद्धि को 20-30 प्रतिशत तक बढ़ा सकते हैं। वहीं मक्का जैसे गैर-देशी पौधों में प्रभाव कमज़ोर रहा। मक्का सूखे में उतना लाभ नहीं उठा पाता, क्योंकि यह स्थानीय सूक्ष्मजीवों से कम जुड़ा हुआ है। इससे पता चलता है कि बाहरी फसलें जलवायु तनाव में कम अनुकूलित होती हैं। यह अध्ययन दिखाता है कि मिट्टी के सूक्ष्मजीव जलवायु परिवर्तन के प्रति पौधों की स्मृति का काम करते हैं। इससे पारिस्थितिकी तंत्र अधिक लचीले बन सकते हैं; कार्बन संग्रहण और पोषण चक्रण बेहतर होगा। यह अध्ययन पर्यावरणीय स्मृति के महत्व को रेखांकित करता है और दर्शाता है कि प्रकृति खुद को कैसे अनुकूलित करती है (plant-microbe interaction)।
खोज का वैज्ञानिक इतिहास
सूक्ष्मजीवों में पारिस्थितिक स्मृति की वैज्ञानिक खोजबीन का इतिहास नया नहीं है। इसकी शुरुआती बुनियाद पादप उत्तराधिकार और भूमि उपयोग विरासत के रूप में रखी गई थी। 1916 में फ्रेडरिक क्लेमेंट्स ने पादप उत्तराधिकार (प्लांट सक्सेशन) (plant succession) का सिद्धांत प्रस्तुत किया, जो बताता है कि अतीत के वनस्पति समुदाय भविष्य की संरचना को प्रभावित करते हैं। यह विरासत प्रभाव की मूल अवधारणा का आधार बना, हालांकि इसमें सूक्ष्मजीव पहलू अनुपस्थित था। 1980-90 में भूमि उपयोग परिवर्तनों के लंबे प्रभावों पर फोकस रहा। 1997 में, जॉन अबर और सहयोगियों ने वन पारिस्थितिक तंत्रों में नाइट्रोजन संतृप्ति के मॉडल विकसित किए, जो कृषि या कटाई जैसी प्रथाओं के सदियों तक चलने वाले प्रभाव दिखाते थे। लेगसी इफेक्ट शब्द 1990 के दशक में पादप उत्तराधिकार और आक्रामक प्रजातियों (ecosystem legacy effects) के अध्ययनों से प्रचलित हुआ था।
1998-2003 में पारिस्थितिक स्मृति का औपचारिक आगाज़ हुआ। जे. के. हार्डिंग ने 1998 में अतीत के विक्षोभों को स्मृति के रूप में वर्णित किया, जो पारिस्थितिक लचीलापन बढ़ाती है। 2003 में, जे. बेंग्टसन और ड्रू फोस्टर ने इसे वैश्विक परिवर्तन के संदर्भ में विस्तारित किया – अतीत के तनाव वर्तमान प्रतिक्रियाओं को प्रभावित करते हैं।
2005 में मृदा संपीड़न के प्रभावों पर अध्ययन (बैसेट एवं साथियों) ने दिखाया कि अतीत के भूमि उपयोग से जड़ विकास बाधित होता है, जो मिट्टी की स्मृति को दर्शाता है। इसी वर्ष, डेन्समोर ने नाइट्रोजन स्थिरीकरण के माध्यम से मिट्टी विरासत को पादप-वृद्धि से जोड़ा। 2008 में पादप-मृदा फीडबैक (plant–soil feedback) पर महत्वपूर्ण खोज हुई। जैकबिया वल्गेरिस के अध्ययन में प्रजातियों के बीच नकारात्मक फीडबैक दिखे – अतीत के पौधे सूक्ष्मजीव समुदाय को बदलते हैं, जो उत्तराधिकार को प्रभावित करते हैं।
2009-2010 में पूरा ध्यान सूक्ष्मजीवी विरासत पर रहा। जापानी बरबेरी के आक्रामक प्रभावों ने मृदा की सूक्ष्मजीवी संरचना और एंज़ाइम गतिविधियों में स्थायी बदलाव दिखाए। 2010 में, जंगलों की अंडरस्टोरी वनस्पति के प्रयोग से पता चला कि अतीत की सूक्ष्मजीवी संरचना वनस्पति और पोषक चक्रण को निर्धारित करती है।
2011-2020 के काल को सूक्ष्मजीवी स्मृति का उदय माना जाता है। 2011 में पी. कडोल और सहयोगियों ने भूमि उपयोग विरासतों को जैव विविधता से जोड़ा, जो सूक्ष्मजीवी स्मृति की दिशा में एक कदम था। 2014 में सूखे पर प्रारंभिक सूक्ष्मजीवी अध्ययन हुए। एस. ई. इवांस ने बैक्टीरियल नमी निशे का वर्णन किया, जो समुदाय में दीर्घकालिक परिवर्तनों की भविष्यवाणी करता है। एल. फुच्स्लूगर ने दिखाया कि सूखा होने पर पौधे मृदा सूक्ष्मजीवों तक कम कार्बन पहुंचाते हैं, जो समुदाय की संरचना को बदलता है। 2017 के अध्ययनों में कुल और सक्रिय मृदा सूक्ष्मजीवी समुदायों की सूखे के प्रति संवेदनशीलता (soil drought response) दिखाई दी। वहीं, 2020 में सूखे से सूक्ष्मजीवी जीन अभिव्यक्ति और मेटाबोलाइट उत्पादन में बदलाव दिखा, जो स्मृति निर्माण के आणविक आधार को इंगित करता है।
2021 में नेचर कम्यूनिकेशन में प्रकाशित एक लैंडमार्क अध्ययन से ज्ञात हुआ कि बार-बार सूखे से सूक्ष्मजीवी समुदायों में विविधता बढ़ी, जो मिट्टी बहुकार्यता को मज़बूत करती है। इससे साबित होता है कि सूखे की स्मृति पारिस्थितिक प्रक्रियाओं को संशोधित करती है। 2022 में सूखे के सूक्ष्मजीवी लक्षण वितरण पर प्रभाव अध्ययन ने एक लक्षण-आधारित फ्रेमवर्क प्रदान किया। सूखा धीमी-वृद्धि वाले सूक्ष्मजीवों को चुनता है। 2023 में अल्पाइन घासभूमियों की सूखी मिट्टी में सूक्ष्मजीव वृद्धि के एक अध्ययन से भविष्य की जलवायु परिस्थितियों में सूक्ष्मजीवों की प्रतिक्रिया का अनुमान मिला। 2025 में कैंसास प्रेयरी पर किया गया अध्ययन वर्षा विरासत प्रभावों को पौधे की जीन अभिव्यक्ति से जोड़ता है।
समग्र विकास और महत्व की बात की जाए तो 1990 से 2010 के दौरान यह क्षेत्र सामान्य पारिस्थितिकी से सूक्ष्मजीव-केंद्रित खोजों तक विकसित हुआ। जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में, ये खोजें बताती हैं कि स्मृति पारिस्थितिक लचीलापन बढ़ाती है, लेकिन गहन तनाव से हम इसे खो सकते हैं।
सूक्ष्मजैविक कृषि उद्योग
किसानों के लिए अच्छी खबर है कि अब सूखा-सहिष्णु सूक्ष्मजीवों (microbial biofertilizer) को व्यावसायिक रूप से विकसित किया जा सकता है। जैसे, गैमाग्रास के जीन मक्का में डाले जा सकते हैं ताकि फसलें सूखे में बेहतर उगें। सूक्ष्मजैविक कृषि उद्योग (जो जैव उर्वरकों, कीटनाशकों और मिट्टी सुधारकों का उत्पादन करता है) में यह स्मृति एक क्रांतिकारी तत्व है। यह उद्योग टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देगा।
स्मृति वाले सूक्ष्मजीव समुदाय फसल उपज और पोषण दक्षता बढ़ाते हैं। जैसे, चावल उत्पादन में सूक्ष्मजीव-आधारित एकीकृत पोषक प्रबंधन से मृदा स्वास्थ्य संरक्षित होता है। सूखे जैसे वैश्विक परिवर्तनों के प्रति सूक्ष्मजीवों की चयनात्मक प्रतिक्रियाएं पौधों की रक्षा करती हैं। यही नहीं, गोबर प्रबंधन से मृदा सूक्ष्मजीव संसार का प्रबंधन करके कृषि उत्सर्जन कम किया जा सकता है।
भविष्य की चुनौतियां
शोधकर्ता चेतावनी देते हैं कि सूक्ष्मजीवों की स्मृति लाभदायक होने के बावजूद, जलवायु परिवर्तन की अनियमितताएं (जैसे अचानक वर्षा) (extreme rainfall) नई समस्याएं पैदा कर सकती हैं। यह दृष्टिकोण पारिस्थितिकी, आनुवंशिकी और कृषि को एकीकृत करके एक बहु-विषयी सोच प्रदान करता है। जैसे, सूखे के बाद अचानक भारी वर्षा सूक्ष्मजीवों के लिए शॉक की तरह काम करती है। सूखे में सूक्ष्मजीव निष्क्रिय हो जाते हैं और ऊर्जा संरक्षित रखते हैं। लेकिन अचानक पानी आने पर उनकी गतिविधि तेज़ी से बढ़ जाती है, जिससे मिट्टी से कार्बन डाईऑक्साइड का विस्फोटक उत्सर्जन होता है। यह मिट्टी के कार्बन स्टॉक को 10-20 प्रतिशत तक कम कर सकता है। इससे जीवाणु और कवक की कोशिकाएं फट सकती हैं। अध्ययन में पाया गया कि सूखा-स्मृति वाली मिट्टी में यह तनाव अधिक गंभीर होता है, क्योंकि सूक्ष्मजीव अनुकूलित हो चुके होते हैं लेकिन अचानक बदलाव के लिए तैयार नहीं। इससे पौधों की जड़ें जल-जमाव के चलते ऑक्सीजन की कमी का सामना कर सकती हैं, जो वृद्धि रोकता है। जलवायु मॉडल्स के अनुसार, 2050 तक अनियमित वर्षा 30 प्रतिशत बढ़ सकती है। तब मृदा-स्मृति का लाभ उल्टा पड़ सकता है, कार्बन संग्रहण घटेगा और ग्रीनहाउस गैसें बढ़ेंगी।
इस दिशा में संतुलित जल प्रबंधन (water management) की आवश्यकता पर बल दिया जा रहा है। सूक्ष्मजीवों की स्मृति को बनाए रखने के लिए धीमी और नियंत्रित जल आपूर्ति ज़रूरी है। इससे सूक्ष्मजीवों को अनुकूलन का समय मिलता है, और कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन 40 प्रतिशत तक कम हो सकता है। इससे मिट्टी की बहुकार्यता को संरक्षित रखा जा सकता है।
हमारे देश में किसानों को प्रशिक्षण और सस्ती तकनीक की आज भी कमी है। विकासशील देशों में, जहां 60 प्रतिशत कृषि वर्षा-निर्भर है, जल प्रबंधन नीतियों का अभाव एक बड़ा जोखिम है। शोधकर्ता सुझाते हैं कि कृत्रिम-बुद्धि आधारित मौसम पूर्वानुमान से स्मार्ट इरिगेशन (smart irrigation) अपनाने की ज़रूरत है।
स्मृति को व्यावसायिक रूप से स्थिर रखना (भंडारण और क्षेत्र अनुकूलन) मुश्किल है। 2025 में, क्रिस्पर (CRISPR) जैसी तकनीकों से सुपर सूक्ष्मजीव विकसित हो रहे हैं, जो स्मृति को बढ़ाकर टिकाऊ कृषि को नया आयाम देंगे। जैविक खेती के बढ़ते चलन में यह उद्योग किसानों की आय बढ़ा सकता है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.nature.com/articles/s41564-025-02148-8/figures/1