डॉ. सुशील जोशी

हाल में इस बात को लेकर विवाद पैदा हो गया है कि टीकों में एल्युमिनियम (aluminum in vaccines) के उपयोग से शारीरिक नुकसान होता है और इसकी वजह से ऑटिज़्म (autism) जैसी तकलीफों में वृद्धि हो रही है। यह विवाद अमेरिका में चल रहा है। लेकिन उस विवाद में जाने से पहले यह देखना लाभप्रद होगा कि टीके काम कैसे करते हैं और उनमें एल्युमिनियम के उपयोग का आधार क्या है।
सरल शब्दों में कहें तो टीके (vaccination) किसी रोगजनक (pathogen) की नकल करते पदार्थ होते हैं जो रोग पैदा नहीं करते। तकनीकी शब्दों में इन टीकों पर उस रोगजनक का कोई अणु होता है जिसे एंटीजन कहते हैं। जब यह एंटीजन शरीर में पहुंचता है तो शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र (immune system) की कोशिकाएं इस पर हमला करती हैं और हमला करते हुए वे सीख जाती हैं कि यह कोई हानिकारक चीज़ है और इसे कैसे निष्क्रिय करना है। यही स्थिति तब भी होती है जब वास्तविक रोगजनक शरीर में पहुंचता है। प्रतिरक्षा तंत्र उससे निपटने की कोशिश करता है और कई बार निपट भी लेता है। टीके इसी संघर्ष के लिए प्रतिरक्षा तंत्र को तैयार करते हैं। हाल में टीकों पर जो शोध कार्य हुआ है उसे छोड़ दिया जाए तो टीके दो प्रकार के होते हैं – एक प्रकार वह है जिसमें वास्तविक रोगजनक को जीवित अवस्था में दुर्बल करके (सैबिन द्वारा विकसित पोलियो (oral polio vaccine) का जीवित दुर्बल टीका) या मारकर (सैबिन का मृत पोलियो वायरस टीका) इस्तेमाल किया जाता है और दूसरा प्रकार वह है जिसमें रोगजनक के एंटीजन को पृथक करके इस्तेमाल किया जाता है (जैसे डिफ्थीरिया-टिटेनस-पर्टूसिस (DPT vaccine) या हिपेटाइटिस (hepatitis vaccine) ए व बी के टीके)।
इसके बाद मामला आता है एल्युमिनियम (aluminum adjuvant) का। दरअसल, एल्युमिनियम टीके के साथ एक सह-औषध (एडजुवेंट- adjuvant) के तौर पर मिलाया जाता है। अलबत्ता, यही एकमात्र एडजुवेंट नहीं है। पिछले लगभग 40 सालों में वैज्ञानिकों ने शोध करके कई एडजुवेंट (vaccine adjuvants) पहचाने हैं और इस्तेमाल किए हैं। वैसे तो कई लोगों में टीकों को लेकर ही शंकाएं हैं और वे मानते हैं कि टीके हानिकारक होते हैं। खैर, फिलहाल बात करते हैं एडजुवेंट्स की चूंकि वर्तमान विवाद का मुद्दा यही है।
टीकों का उपयोग तो काफी पहले शुरू हो चुका था। इसका श्रेय एडवर्ड जेनर (Edward Jenner) को दिया जाता है जिन्होंने 1796 में पहली बार एक लड़के को चेचक का टीका (smallpox vaccine) लगाया था। 1926 में एक प्रतिरक्षा वैज्ञानिक एलेंक्जेंडर थॉमस ग्लेनी (Alexander Glenny) ने एक महत्वपूर्ण अवलोकन किया था जिसने एडजुवेंट की बुनियाद रखी थी। उन्होंने देखा कि यदि टीकाकरण से पहले घुलनशील एंटीजन को फिटकरी (एल्यूमिनियम पोटेशियम सल्फेट) के साथ रखा जाए तो वह एंटीजन फिटकरी के साथ अवक्षेपित हो जाता है और इस प्रकार उपचारित एंटीजन कहीं बेहतर प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न करता है। यह प्रक्रिया लगभग वैसी ही है जैसी मटमैले पानी को साफ करने के लिए फिटकरी का उपयोग। उन्होंने ये प्रयोग गिनी पिग पर किए थे और देखा था कि अवक्षेपित एंटीजन से उनमें एंटीबॉडी का उत्पादन अधिक होता है। इसी बाहर से मिलाए गए पदार्थ को एडजुवेंट कहते हैं।
इस खोज के बाद सबसे पहले एल्यूमिनियम लवण (aluminum salts) एडजुवेंट का उपयोग टिटेनस (tetanus vaccine) तथा डिफ्थीरिया टॉक्साइड के टीकों (diphtheria vaccine) में किया गया था। आजकल तो दुनिया भर में अघुलनशील एल्युमिनियम लवणों का उपयोग विभिन्न टीकों में किया जाता है।
वैसे 1940 के दशक में जूल्स फ्रायंड (Jules Freund) ने एडजुवेंट की एक और किस्म विकसित की थी। ये पानी और तेल के इमल्शन थे जो एंटीजन के साथ दिए जाने पर एंटीजन की उम्र बढ़ा देते हैं और वह काफी समय तक प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय रखता है। अलबत्ता, फ्रायंड के एडजुवेंट का उपयोग सीमित ही रहा है।
यहां एक सवाल यह उठता है कि ये एडजुवेंट करते क्या हैं। रोचक बात है कि एडजुवेंट्स (immune adjuvants) का उपयोग करते हमें एक सदी बीत चुकी है लेकिन आज भी इनकी क्रियाविधि (mechanism of action) को लेकर बहुत स्पष्टता नहीं है। काफी अनुसंधान के बाद यह समझ में आया है कि एडजुवेंट दो-तीन तरह से काम करते हैं और टीके की प्रभावशीलता या उनकी क्रियाशील अवधि को बढ़ाते हैं। एक तरीका तो यह है कि एडजुवेंट शरीर में एंटीजन के प्रसार में मदद करते हैं और इस तरह से प्रतिरक्षा तंत्र की ज़्यादा कोशिकाएं उसके संपर्क में आती हैं। इसके अलावा इमल्शन में घुले हुए एंटीजन अपेक्षाकृत धीरे-धीरे विघटित होते हैं। इसके चलते प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया देर तक बनी रहती है और दीर्घावधि प्रतिरक्षा (long-term immunity) प्राप्त होती है।
दूसरा तरीका यह है कि (खास तौर से एल्युमिनियम लवण जैसे एडजुवेंट (aluminum-based adjuvants)) एंटीजन से जुड़ जाते हैं और उसे प्रतिरक्षा कोशिकाओं में प्रवेश करने में मदद करते हैं। ये प्रतिरक्षा कोशिकाएं जन्मजात प्रतिरक्षा का हिस्सा होती हैं। जब एंटीजन इनमें प्रवेश करता है तो कोशिका उसे प्रोसेस करती है और परिणाम यह होता है कि वह कोशिका की सतह पर दिखने लगता है। अब ये कोशिकाएं अनुकूली प्रतिरक्षा (adaptive immunity) कोशिकाओं (जैसे टी कोशिकाओं) के संपर्क में आती हैं और टी कोशिकाएं उस एंटीजन को पहचानकर आगे की कार्रवाई शुरू कर देती हैं। कहने का मतलब है कि जन्मजात प्रतिरक्षा तंत्र अनुकूली प्रतिरक्षा तंत्र को सक्रिय करता है और एडजुवेंट इसमें मदद करते हैं।
अर्थात कुल मिलाकर एडजुवेंट अनुकूली प्रतिरक्षा कोशिकाओं को सक्रिय करने में और एंटीजन को देर तक शरीर में टिके रहने में मदद करते हैं।
अब आते हैं एल्युमिनियम (aluminum exposure) पर। सबसे पहले तो यह जान लेना ज़रूरी है कि टीकों में एडजुवेंट के तौर पर एल्युमिनियम लवणों का उपयोग एक सदी से होता आया है। लिहाज़ा इनके उपयोग का परीक्षण और जांच भी सबसे अधिक हुई है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि एल्यूमिनियम से हमारा संपर्क कई तरह से होता है – खानपान (dietary aluminum) के साथ और हवा के ज़रिए। मानव शरीर में एल्युमिनियम का अवशोषण पाचन तंत्र और श्वसन तंत्र में होता है। फिर इसे बाहर निकालने का काम होता है। बहरहाल, एक इंसान द्वारा सांस के साथ लिए गए एल्युमिनियम में से 3 प्रतिशत और खानपान के रूप में लिए गए एल्युमिनियम में से 1 प्रतिशत पूरे शरीर में फैल जाता है। वैसे शरीर में जमा कुल एल्युमिनियम में से 95 प्रतिशत तो खानपान के साथ आता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization – WHO) ने कुल अंतर्ग्रहित एल्युमिनियम की मात्रा तय की है – 1 मिलीग्राम/प्रति किलोग्राम प्रतिदिन (safe intake limit)। यानी यदि आपका वज़न 60 किलो है तो अधिकतम 60 मि.ग्रा. एल्युमिनियम ले सकते हैं। इसके अलावा इंजेक्शन से दिया जाने वाला एल्युमिनियम तो खून के ज़रिए पूरे शरीर में फैल सकता है। इसलिए निर्धारित किया गया है कि ऐसे किसी भी घोल में एल्युमिनियम प्रति लीटर 25 ग्राम से कम होना चाहिए (vaccine safety)।
एक बार अवशोषित होने के बाद एल्युमिनियम हड्डियों, लीवर, फेफड़ों तथा तंत्रिका तंत्र (nervous system) में जमा हो जाता है। सामान्यत: यह धीरे-धीरे उत्सर्जित किया जाता है लेकिन गुर्दों की समस्याओं से ग्रस्त लोगों में उत्सर्जन बहुत प्रभावी नहीं होता। ऐसे लोगों में काफी सारा एल्युमिनियम मस्तिष्क में जमा हो सकता है। इसे लेकर कई प्रयोग हुए हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि वयस्कों में स्थायी रूप से जमा हुए एल्युमिनियम की मात्रा 30-50 मिलीग्राम ही पाई गई है।
टीके की प्रति खुराक में एल्युमिनियम की अधिकतम मात्रा भी निर्धारित की गई है। जैसे युरोप में यह मात्रा प्रति खुराक 1.25 मि.ग्रा. और यूएस में 0.85 मि.ग्रा. प्रति खुराक है। भारत में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित मानकों का उपयोग होता है। गौरतलब है कि हम खानपान के ज़रिए प्रतिदिन इससे कहीं अधिक मात्रा में एल्युमिनियम का सेवन करते हैं। एक बड़ा अंतर यह भी है कि टीकों में एल्युमिनियम अघुलनशील लवणों के रूप में होता है जबकि खानपान में प्राय: घुलनशील लवण पाए जाते हैं। लिहाज़ा, टीकों के एल्युमिनियम का शरीर में अवशोषण अपेक्षाकृत कम होता है।
जंतुओं पर किए गए कुछ प्रयोगों में पता चला है कि 0.85 ग्राम एल्युमिनियम देने पर सीरम में एल्युमिनियम की मात्रा 2 माइक्रोग्राम प्रति लीटर रही जो सामान्य स्तर से महज 7 प्रतिशत थी। इस प्रयोग में यह भी देखा गया था कि मस्तिष्क में एल्युमिनियम की मात्रा (brain aluminum levels) कितनी रही। देखा गया कि मस्तिष्क में एल्युमिनियम 0.0001 माइक्रोग्राम प्रति ग्राम बढ़ा जो मस्तिष्क में एल्युमिनियम के सामान्य औसत (0.2 माइक्रोग्राम प्रति ग्राम) से 2000 गुना कम है। यह संभव है कि गुर्दों की दिक्कत से पीड़ित लोगों में यह स्तर ज़्यादा होता होगा। वैसे तंत्रिका-क्षति तथा उससे जुड़े रोगों के एल्युमिनियम से सम्बंध को लेकर कोई ठोस प्रमाण भी नहीं हैं।
कुछ समय से टीकों को लेकर एक और शंका जताई जा रही है। कहा गया है कि टीके प्रतिरक्षा तंत्र को स्वयं अपनी शरीर की कोशिकाओं के विरुद्ध सक्रिय कर सकते हैं। हालांकि यह भी सामने आया है कि ऐसी प्रतिक्रिया कतिपय अन्य कारकों (जैसे किसी संक्रामक इकाई) की उपस्थिति की वजह से होती है और उस कारक को हटाने पर वह प्रतिक्रिया भी समाप्त हो जाती है।
निष्कर्ष के तौर पर, एल्युमिनियम एडजुवेंट को लेकर जो सवाल उठ रहे हैं, उनका कोई वैज्ञानिक या ऐतिहासिक आधार नहीं है। दरअसल, टीकों ने और टीकों में जोड़े गए एडजुवेंट्स ने हमें कई रोगों से बचाया है। एडजुवेंट जोड़ने से एंटीजन की कम मात्रा इंजेक्ट करना होती है और वे दीर्घावधि सुरक्षा प्रदान करते हैं। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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