डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन

काश ऐसा कोई स्विच होता जो ऑन होकर हमें आंखों की रोशनी (vision restoration) जैसी असाधारण क्षमताएं वापिस दे सकता? मनुष्यों और कई अन्य प्रजातियों की आंखें कैमरे की तरह होती हैं; आंख में एक लेंस होता है जो प्रकाश को रेटिना पर फोकस करता है। पुनर्जनन (regeneration) आंखों की उस क्षमता को कहेंगे जिसमें वह पूरी तरह से हटाए जाने या घायल हो जाने के बाद फिर से अपना निर्माण कर सके। नेचर कम्युनिकेशंस (Nature Communications) में एलिस एकोर्सी और एलेज़ांद्रो सांचेज़ अल्वारेडो की टीम ने अपने हालिया काम में दिखाया है कि गोल्डन एप्पल घोंघे में आंख का ऐसा पुनर्निर्माण कैसे होता है।
घोंघा एक मोलस्क (mollusk) जीव है, यानी अकेशरुकी (invertebrate) जीव जिसके ऊपर खोल होती है और वह भूमि और पानी दोनों में अच्छी तरह से जीवित रह सकता है।
घोंघे में पुनर्जनन का यह कारनामा कोई जादू नहीं है, बल्कि सुंदर आणविक संयोजन (molecular mechanisms) का नतीजा है। जब घोंघा अपनी एक आंख खो देता है तो हज़ारों जीन स्विच (खटकों) की तरह ऑन हो जाते हैं: पहले वे स्विच ऑन होते हैं जो घाव भरने में मदद करते हैं, फिर वे जीन सक्रिय होते हैं जो कोशिकाओं के विकास और विभाजन के लिए ज़िम्मेदार होते हैं, उसके बाद नई रेटिना कोशिकाओं, प्रकाशग्रहियों और लेंस के निर्माण के लिए ज़िम्मेदार अलग-अलग जीन/नेटवर्क सक्रिय होते हैं। इनमें से एक जीन, PAX6 (eye development gene), आंख के प्रारंभिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। घोंघे में, यह प्रक्रिया कई अन्य जीन्स द्वारा सावधानीपूर्वक प्रबंधित की जाती है। इसमें नई तंत्रिका कोशिकाओं को बनाने वाले जीन, तंत्रिका तंतुओं को उनके सही लक्ष्यों तक पहुंचाने वाले और प्रकाश को ताड़ने के लिए ज़िम्मेदार जीन शामिल हैं। आंख एकदम ठीक तरीके से विकसित हो, इसे सुनिश्चित करने के लिए इनमें से प्रत्येक जीन एकदम ठीक चरण पर सक्रिय हो जाता है।
फिलहाल, हम मनुष्य ऐसा नहीं कर सकते हैं, लेकिन इन जेनेटिक ट्रिगर्स (genetic triggers) को समझकर एक दिन हम अपनी सुप्त पुनर्निर्माण प्रणाली (regenerative system) को सक्रिय कर पाएंगे।
जिस तरह घोंघे अपनी आंखें फिर से विकसित सकते हैं, उसी तरह मेंढक, प्लेनेरिया (planaria) और अफ्रीकी कांटेदार चूहे (African spiny mouse) जैसे अन्य जीवों में भी मज़बूत पुनर्जनन क्षमताएं होती हैं। एक तरह के सैलेमेंडर (एक्सोलोट्ल- (axolotl)) में क्षतिग्रस्त ऊतक हरफनमौला स्टेम कोशिका (stem cells) जैसे बन सकते हैं और हड्डियों, मांसपेशियों और शरीर के अन्य अंगों का पुनर्निर्माण कर सकते हैं। क्रिस्पर (CRISPR gene editing) एक जीन-संपादन तकनीक है, जिसकी मदद से हम अपनी वांछित जीनोम संरचना को फिर से डिज़ाइन कर सकते हैं, रीमॉडल कर सकते हैं और पुनर्निर्मित कर सकते हैं।
हैदराबाद के एल. वी. प्रसाद आई इंस्टीट्यूट (LV Prasad Eye Institute) में, वैज्ञानिकों ने ज़ेब्राफिश (zebrafish model) को जंतु मॉडल के तौर पर इस्तेमाल करके लेबर कॉन्जेनाइटल एमॉरोसिस (LCA) (Leber Congenital Amaurosis – LCA) और स्टारगार्ड्ट (Stargardt disease) जैसी आंखों की जेनेटिक बीमारियों को ठीक करने के लिए क्रिस्पर तकनीक का इस्तेमाल किया है।
जंतुओं से मनुष्यों तक
शुरुआती परीक्षणों में पहले से ही क्रिस्पर संपादन का इस्तेमाल करके मनुष्यों की जेनेटिक बीमारियों (genetic disorders) को दूर करने के प्रयास किए जा रहे हैं, जैसे सिकल सेल एनीमिया (sickle cell anemia); β-थैलेसीमिया (beta thalassemia), जन्मजात खून की कमी; और LCA (genetic blindness), जो एक तरह का जन्मजात अंधापन है।
हाल ही में, हार्वर्ड युनिवर्सिटी (Harvard University) की एक टीम द्वारा क्रिस्पर तकनीक का इस्तेमाल करके मनुष्यों में LCA के इलाज के लिए किए जा रहे पहले क्लीनिकल परीक्षण (clinical trials) के नतीजे सामने आए हैं। ये नतीजे दी न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित हुए हैं जिसमें जन्मांधता से पीड़ित लोगों की दृष्टि में सुधार दिखाई दिया है। यह प्रयास, जंतु मॉडल में पुनर्जनन को समझकर मानव कोशिकाओं में मरम्मत प्रोग्राम को फिर से सक्रिय कर सकने की उम्मीद जगाता है। यह जीन-निर्देशित पुनर्जनन चिकित्सा (gene-guided regenerative medicine) के लिए एक फ्रेमवर्क देता है।
ये उदाहरण हमें याद दिलाते हैं कि पुनर्जनन (biological regeneration) कोई दुर्लभ चमत्कार नहीं है। बल्कि यह एक प्राचीन जैविक कार्यप्रणाली (biological process) है जो अभी भी कई प्रजातियों के DNA (genetic code) में अंकित है, और जिसे विज्ञान धीरे-धीरे समझना और फिर से सक्रिय करना सीख रहा है।
गोल्डन एप्पल घोंघे (golden apple snail study) पर किए गए नए अध्ययन ने खुलासा किया है कि कैसे उसका जीनोम (genome memory) उस अंग को पुनर्निर्मित करना याद रखता है जिसे दोबारा बनाना हमें असाध्य लगता है। और, घोंघे की इस याददाश्त (biological memory) को डीकोड करके चिकित्सा विज्ञान मनुष्य की आंखों को बहाल करने की क्षमता के करीब पहुंच सकता है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://th-i.thgim.com/public/sci-tech/science/5r8jgn/article70380492.ece/alternates/LANDSCAPE_1200/golden-apple-snail-climbing-edge-of-a-lotus-leaf-in-a-serene-pond-water-droplets-glistening-in-the-sunlight-photo.jpg