प्रतिरक्षा प्रणाली को कमज़ोर कर रहे टैटू

क हालिया वैज्ञानिक अध्ययन में पता चला है कि टैटू (tattoo) सिर्फ त्वचा पर डिज़ाइन बनाने तक सीमित नहीं रहते बल्कि शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली (immune system) पर भी असर डाल सकते हैं। स्विट्ज़रलैंड के शोधकर्ताओं ने टैटू में इस्तेमाल होने वाले तीन आम रंगों (काला, लाल और हरा) की जांच के बाद टैटू सम्बंधी दीर्घकालिक सुरक्षा (long-term safety) को लेकर कई सवाल उठाए हैं।

अध्ययन में पाया गया कि टैटू की स्याही (tattoo ink) त्वचा में बनी रहने की बजाय शरीर के अंदर फैल जाती है। जब स्याही त्वचा की निचली परत (डर्मिस- dermis) में डाली जाती है, तो उसके बेहद छोटे-छोटे कण शरीर में भटकते-भटकते लसिका ग्रंथियों (lymph nodes) में जमा हो जाते हैं, ये ग्रंथियां प्रतिरक्षा प्रणाली की महत्वपूर्ण अंग होती हैं। ये कण कई सालों तक वहीं बने रह सकते हैं।

प्रतिरक्षा कोशिकाएं (जैसे मैक्रोफेज) इन कणों को तोड़ने की कोशिश में सफल नहीं होतीं और मरने लगती हैं। इस वजह से शरीर में हमेशा हल्की सूजन (chronic inflammation) बनी रहती है। यह निरंतर तनाव प्रतिरक्षा प्रणाली को कमज़ोर कर सकता है; खास तौर पर काली और लाल स्याही में यह प्रभाव अधिक देखा गया।

चूहों पर किए गए प्रयोगों (animal studies) में पाया गया कि टैटू की स्याही के सूक्ष्म कण (nanoparticles) कुछ ही घंटों में लसिका ग्रंथियों तक पहुंच जाते हैं और कम से कम दो महीने तक टिके रहते हैं। इस दौरान चूहों में कोविड-19 टीके (COVID-19 vaccine) के प्रति प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया कमज़ोर हो गई, जबकि हैरानी की बात यह थी कि पराबैंगनी विकिरण से निष्क्रिय फ्लू टीके (influenza vaccine) के प्रति उनकी प्रतिक्रिया बेहतर हो गई। वैज्ञानिकों का कहना है कि मनुष्यों पर शोध ज़रूरी है, क्योंकि अलग-अलग टीके, टैटू स्याही के साथ अलग-अलग तरह से प्रतिक्रिया कर सकते हैं।

बहरहाल आज टैटू पहले से कहीं ज़्यादा लोकप्रिय (tattoo popularity) हो चुके हैं। लेकिन एक चिंता यह है कि टैटू की स्याही में लगभग 100 तरह के रसायन होते हैं, जिनमें कई औद्योगिक पिगमेंट (industrial pigments) भी शामिल होते हैं। यही वजह है कि अब कई देशों में निगरानी कड़ी की जा रही है। युरोप ने 2022 में रेस्ट्रिक्शन ऑफ हैज़ार्डस सब्सटेंसेस इन टैटू इंक्स एंड पर्मानेंट मेक-अप (REACH) नियम के तहत टैटू स्याही के लिए कड़े रासायनिक मानक (chemical safety standards) लागू कर दिए।

टैटू जितने ज़्यादा लोकप्रिय हो रहे हैं, वैज्ञानिकों का कहना है कि स्वास्थ्य पर उनके प्रभाव को समझना और भी ज़रूरी हो गया है। अन्यत्र भी मानक (regulatory guidelines) लागू करने की ज़रूरत है। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://images.euronews.com/articles/stories/09/57/19/17/1536x864_cmsv2_ef73dee1-c338-5d18-9fd8-b3a2feea1c73-9571917.jpg

प्रातिक्रिया दे