बहुउपयोगी गन्ना

डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन

हाल ही में ओलिवियर गार्समूर और उनके साथियों ने सेल पत्रिका में एक शोधपत्र प्रकाशित किया है। इसका शीर्षक है ‘जंगली गन्ना प्रजातियों के जीनोमिक चिन्ह गन्ने को पालतू बनाने, उसके विविधिकरण और उसकी आधुनिक खेती के बारे में बताते हैं (The genomic footprints of wild Saccharum species trace domestication, diversification, and modern breeding of sugarcane)’। इस शोध में ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, चीन, फ्रांस, फ्रेंच पोलिनेशिया, भारत, जापान और यू.एस. की गन्ने की 390 किस्मों का जीनोमिक विश्लेषण किया गया।

ये पौधे कई तरह के जीन्स के संकर (हाइब्रिड) थे, जिनमें कई क्रोमोसोम एकाधिक (पॉलीप्लॉइडी) थे। ऐसी पॉलीप्लॉइड (polyploid crops) किस्में मनुष्यों द्वारा व्यावसायिक निर्यात की वजह से बनीं। मनुष्य गन्नों को देश के अलग-अलग राज्यों से लेकर अफगानिस्तान, श्रीलंका और इंडोनेशिया जैसे देशों में निर्यात करते और बेचते थे।

उन्होंने यह भी बताया कि एक ओर तो गन्ना एक मुनाफे की फसल है, जिसका इस्तेमाल इसकी मिठास के कारण किया जाता है। दूसरी ओर, इसका इस्तेमाल बायोएथेनॉल बनाने (bioethanol production) के लिए भी किया जाता है, जिसे निजी, सार्वजनिक और व्यावसायिक वाहनों के जीवाश्म ईंधन के एक स्वच्छ विकल्प के तौर पर बनाया जाता है।

भारत में गन्ना

भारत में गन्ने की पैदावार बहुत ज़्यादा होती है, खासकर 13 राज्यों में। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और गुजरात 2018-19 से 2023-24 तक गन्ने के शीर्ष पांच उत्पादक राज्य रहे। 2024-2025 में करीब 4400 लाख टन गन्ने का उत्पादन (India sugarcane production) हुआ था।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने भी देश भर में कई शुगर रिसर्च इंस्टीट्यूट बनाए हैं जो गन्ने की किस्मों और पैदावार को बेहतर बनाने (sugarcane breeding) के लिए पारंपरिक वानस्पतिक तरीकों और आणविक जीव विज्ञान के तरीकों का इस्तेमाल करते हैं। इनमें से तमिलनाडु के कोयंबटूर में स्थित सबसे पुराने शुगरकेन ब्रीडिंग इंस्टीट्यूट ने गन्नों में जेनेटिक विविधता देखने के लिए भारत भर के चार अलग-अलग मूल के गन्नों का आणविक जेनेटिक विश्लेषण किया था। 2006 में किए गए इस विश्लेषण के नतीजे जेनेटिक रिसोर्सेज़ एंड क्रॉप इवॉल्यूशन जर्नल में प्रकाशित हुए थे।

शुरुआत में वर्णित गार्समूर के शोध में विश्लेषण के लिए पश्चिमी देशों और चीन के गन्नों के नमूने लिए गए थे। वहीं कोयंबटूर के शोधकर्ताओं ने अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा और तमिलनाडु के नमूनों का विश्लेषण किया। जेनेटिक विश्लेषण में शोधकर्ताओं ने पाया कि अरुणाचल प्रदेश में गन्ने की किस्मों में सबसे अधिक विविधता थी (genetic diversity crops)।

2018 में, 3 बायोटेक में प्रकाशित एक पेपर में लखनऊ स्थित भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने देश के उपोष्णकटिबंधीय हिस्सों की गन्ने की 92 किस्मों की जेनेटिक विविधता और आबादी की संरचना का भी विश्लेषण किया (molecular markers) । इसके नतीजे भी भारत में कई तरह के गन्ने की प्रचुरता की ओर इशारा करते हैं।

चीन, भारत और पाकिस्तान में पारंपरिक औषधि (traditional medicine) बनाने वाले भी अपनी चिकित्सा में गन्ने का इस्तेमाल करते रहे हैं। इस संदर्भ में हाल ही में चीन के शोधकर्ताओं द्वारा एक समीक्षपत्र प्रकाशित किया गया है, जिसका शीर्षक है ‘गन्ने का रासायनिक संगठन और जैविक गतिविधियां: संभावित औषधीय महत्व एवं निर्वहनीय विकास’, (The chemical composition and biological activities of sugarcane: Potential medicinal value and sustainable development)। यह पेपर बताता है कि पारंपरिक चीनी औषधियों के स्रोत टिकाऊ विकास के मामले में गंभीर समस्याओं से जूझ रहे हैं, ये स्रोत घट रहे हैं। और, यह समस्या प्राकृतिक पर्यावरण में हो रहे बदलावों और मनुष्यों द्वारा की जा रही अनियंत्रित कटाई से और बढ़ रही है।

इसलिए, पारंपरिक चीनी औषधियों के स्रोतों के रखरखाव और विकास के लिए उन स्रोतों का अध्ययन करना बहुत ज़रूरी है जिनमें औषधीय महत्व और कृषि क्षमता है, साथ ही उनके नए इस्तेमाल खोजना भी ज़रूरी है। अपनी समीक्षा में, लेखकों ने गन्ने के रासायनिक संगठन और इसकी संभावित जैवगतिविधियों पर चर्चा की है, चिकित्सा में इसके उपयोग को समझा है, और भविष्य के शोध की संभावित दिशा बताई है।

गार्समूर और उनके साथियों ने भी बताया है, गन्ने का इस्तेमाल बायोएथेनॉल बनाने के लिए भी किया जाता है (green fuel), जो कार और बस जैसी सवारी गाड़ियों के साथ-साथ ट्रकों के डीज़ल या पेट्रोल का एक हरित विकल्प है। भारत ने भी बायोएथेनॉल बनाने के लिए गन्ने के अपशिष्ट, चावल और गेहूं का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। पेट्रोलियम एंड नेचुरल गैस मंत्रालय ने असम में बायोएथेनॉल बनाना शुरू कर दिया है। कुल मिलाकर, हम गन्ने पर आधारित एक हरित भारत की उम्मीद करते हैं। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://th-i.thgim.com/public/incoming/x2zbp8/article69340518.ece/alternates/LANDSCAPE_1200/sugarcane%201.jpg

प्रातिक्रिया दे