
जब हम खतरनाक जीवों की बात करते हैं तो आम तौर पर शेर, सांप या शार्क का नाम आता है। लेकिन असली खतरा तो एक छोटे-से मच्छर (mosquito) से है – एडीज़ एजिप्टी (Aedes aegypti)। इसे येलो फीवर मच्छर (yellow fever mosquito) भी कहते हैं। यह बेहद छोटा कीट डेंगू, चिकनगुनिया, ज़ीका और पीत ज्वर जैसी 50 से अधिक बीमारियां फैला सकता है। आज भी लगभग चार अरब लोगों पर इन बीमारियों का खतरा मंडरा रहा है।
शुरुआत में यह मच्छर अफ्रीकी जंगलों में पाया जाता था। वहां यह प्राकृतिक जलस्रोतों (water sources) में प्रजनन और अलग-अलग जीवों पर रक्तभोज करता था। लेकिन जैसे ही यह अफ्रीका से बाहर फैला, इसकी आदतें बदल गईं। अब यह शहरों और गांवों में पुराने टायर, प्लास्टिक की बाल्टियों और घरों के पास जमा पानी में पनपने लगा और सबसे खतरनाक बदलाव यह हुआ कि इसने लगभग पूरी तरह इंसानों का खून पीना शुरू कर दिया। यही वजह है कि यह आज घातक बीमारियों का सबसे बड़ा वाहक (vector) बन गया है। वैज्ञानिक इस प्रजाति को दो किस्मों में बांटते हैं: Aedes aegypti formosus – अफ्रीकी जंगलों में पाया जाने वाला मच्छर, जो अलग-अलग जीवों का खून पीता है। Aedes aegypti aegypti – शहरों में पनपने वाला मच्छर, जो लगभग केवल इंसानों को काटता है। भले ही इन दोनों की आदतों और जीन्स में अंतर हैं, लेकिन ये आपस में प्रजनन कर सकते हैं।
गौरतलब है कि 5000 वर्ष पूर्व जब सहारा मरुस्थल फैलने लगा और पानी के प्राकृतिक स्रोत सूखने लगे तो इंसानों ने बर्तनों और कंटेनरों (containers) में पानी जमा करना शुरू किया। ऐसे में कुछ मच्छर इन कृत्रिम जलस्रोतों में पनपने लगे और धीरे-धीरे उन्होंने इंसानों का खून पीना पसंद किया।
सदियों बाद, गुलामों को अफ्रीका से अमेरिका भेजे जाने वाले जहाज़ों (slave ships) पर चुपके से लदकर ये मच्छर अमेरिका पहुंच गए। यहीं से उनके वैश्विक फैलाव की शुरुआत हुई। लेकिन वैज्ञानिक लंबे समय तक यह नहीं समझ पाए कि ये मच्छर इंसानों के लिए पहले से अनुकूलित थे या फिर अमेरिका पहुंचने के बाद उनमें नए गुण विकसित हुए।
इस रहस्य को समझने के लिए 9 देशों के वैज्ञानिकों ने विश्व के 73 स्थानों से 1206 मच्छरों के जीनोम का अध्ययन (genome study) किया। साइंस पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन में एडीज़ एजिप्टी मच्छर के फैलाव और उसमें आए परिवर्तनों पर चर्चा की गई है।
अध्ययन से प्राप्त नतीजे काफी चौंकाने वाले थे। अर्जेंटीना में मिले मच्छरों का जीनोम सेनेगल और अंगोला के मच्छरों के जीनोम से मेल खाता पाया गया। यानी, केवल अटलांटिक सफर ने ही उन्हें नहीं बदला, बल्कि अमेरिका की कठिन परिस्थितियों ने भी उनमें नए बदलाव (genetic changes) पैदा किए। अफ्रीका में उन्हें कई स्थानीय प्रजातियों से मुकाबला करना पड़ता था, लेकिन अमेरिका में उनके लिए जीवित रहने का एकमात्र तरीका इंसानों के पास रहना और उन्हीं पर निर्भर होना था। धीरे-धीरे ये मच्छर लगभग पूरी तरह इंसानों पर निर्भर हो गए।
मच्छरों का यह बदलाव सुनने में मामूली लग सकता है, लेकिन यह एक बड़ी क्रांति थी। सोचिए, एक कीट जो कभी जंगलों में रहता था, अब शहरों की भीड़-भाड़ में पुराने टायरों या प्लास्टिक की बाल्टियों (plastic containers) में पनप रहा है। कुछ छोटे जेनेटिक बदलावों (genetic evolution) ने इनके जीवन और व्यवहार को पूरी तरह बदल दिया है। इंसानों के साथ यह नज़दीकी, तेज़ी से बढ़ते शहरों (urbanization) और वैश्विक व्यापार (global trade) ने एडीज़ एजिप्टी मच्छरों को फैलने का मौका दिया।
अध्ययन में एक और चिंताजनक तथ्य सामने आया: अमेरिका में कीटनाशकों (insecticides) के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता वाले मच्छर वैश्विक व्यापार के ज़रिए अब वापस अफ्रीका पहुंच गए हैं। और वहां डेंगू व अन्य बीमारियों का खतरा बढ़ा रहे हैं।
देखा जाए तो एडीज़ एजिप्टी की कहानी सिर्फ मच्छर (mosquito species) की कहानी नहीं है। इससे यह सपष्ट होता है कि पर्यावरण, इंसानी आदतों और वैश्विक आवाजाही (human mobility) में छोटे बदलाव कैसे प्रकृति को बदल सकते हैं। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.science.org/do/10.1126/science.zjlk2ba/full/_20250918_on_aedis_mosquito-1758228473107.jpg