सपनों का विश्लेषण करते एल्गोरिदम

म में से कई लोगों को अजीबो-गरीब सपने आते हैं। मनोविज्ञानी इन सपनों का विश्लेषण करके मरीज़ को तनाव की स्थिति से उबरने में मदद करते हैं। और अब, शोधकर्ताओं ने एक ऐसा एल्गोरिदम विकसित किया है जो सपनों का विश्लेषण कर मरीज़ों के तनाव और मानसिक समस्या का कारण पहचानने में मदद कर सकता है।

वैसे तो सपनों के आधार पर निष्कर्ष निकालना प्राचीन काल से चला आ रहा है। लेकिन आजकल के अधिकांश मनोविज्ञानी ‘सातत्य परिकल्पना’ के तहत मानते हैं कि सपने हमारे जागते जीवन की निरंतरता होते हैं। वे सपनों को अलग-अलग वर्गों में छांटते हैं और उनमें किसी तरह का पैटर्न देखने की कोशिश करते हैं। इसमें समय लगता है। इस समय को घटाने के लिए नोकिया बेल लैब के कंप्यूटेशनल सोशल साइंटिस्ट लुसा मारिया एइलो और उनके साथियों ने एक एल्गोरिदम तैयार किया है। इस एल्गोरिदम की मदद से उन्होंने 24,000 से अधिक सपनों का विश्लेषण किया। इन सपनों के विवरण उन्होंने सपनों के सार्वजनिक डैटाबेस DreamBank.net से लिए थे।

यह एल्गोरिदम सपनों के विवरणों की भाषा को छोटे-छोटे हिस्सो में तोड़ता है: पैराग्राफ को वाक्यों में, वाक्यों को वाक्यांश में, और वाक्यांश को शब्दों में। फिर, हर शब्द का एक-दूसरे से सम्बंध पता करने के लिए एक वृक्ष बनाता है। वृक्ष का प्रत्येक शब्द एक पत्ती और शब्दों को जोड़ने वाली शाखाएं व्याकरण के नियम दर्शाती हैं। एल्गोरिदम इन शब्दों को अलग-अलग वर्गों में बांटता है (जैसे लोग या जानवर) और उन्हें सकारात्मक या नकारात्मक भावनाओं से जोड़ता है। शब्दों के बीच आक्रामक, दोस्ताना या लैंगिक सम्बंध भी देखे जाते हैं।

फिर, मनोविज्ञानियों के बीच लोकप्रिय एक कोडिंग प्रणाली का उपयोग कर एल्गोरिदम हर सपने के लिए स्कोर की गणना करता है, जैसे आक्रामकता का औसत, या नकारात्मक और सकारात्मक भावनाओं का अनुपात। रॉयल सोसाइटी ओपन साइंस में शोधकर्ताओं ने बताया है कि मनोविज्ञानियों द्वारा दिए गए स्कोर और एल्गोरिदम द्वारा दिए गए स्कोर 76 प्रतिशत मेल खाते थे।

शोधकर्ताओं के अनुसार यह एल्गोरिदम मनोविज्ञानियों को असामान्य सपनों की पहचान करने में मदद कर सकता है, जिनसे मरीज़ के तनाव या मानसिक समस्या का कारण पता लगाया जा सकता है। एल्गोरिदम स्वस्थ व्यक्ति के सपनों के औसत स्कोर से मरीज़ों के सपनों के स्कोर की तुलना करके असामान्य सपनों की पहचान करता है। इसके अलावा, एल्गोरिदम यह भी बताता है कि अलग-अलग लिंग, आयु या मन:स्थिति के सपने किस तरह अलग-अलग होते हैं।

इस सम्बंध में हारवर्ड विश्वविद्यालय के रॉबर्ट स्टिकगोल्ड का कहना है कि यह तकनीक उपयोगी साबित हो सकती है। लेकिन विभिन्न जनांकिक समूहों के अपने सपनों का वर्णन करने के तरीके में अंतर के होने के कारण, सपनों में अंतर दिख सकते हैं। जैसे, ज़रूरी नहीं कि महिलाएं सपने में पुरुषों से अधिक भावनाओं का अनुभव करती हों, लेकिन वे सपनों को बताते वक्त अधिक भावुक शब्दों का उपयोग कर सकती हैं। इसलिए सपनों और सपनों के वर्णन में फर्क पहचानने की ज़रूरत है। स्टिकगोल्ड यह भी कहते हैं कि सपने देखने वाले के बारे में जाने बिना सपनों को जीवन से जोड़ना मुश्किल है। एइलो इससे सहमत हैं और मानते हैं कि यह एल्गोरिदम चिकित्सकों के मददगार औज़ार के रूप में काम करेगा, उनकी जगह नहीं लेगा।(स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.sciencemag.org/sites/default/files/styles/grid_thumb_-290x163__16_9/public/ca_0731NID_Drawing_online.jpg?itok=V1VzWAOc

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