फूलों का रूप धारण कर लेती है फफूंद – डॉ. किशोर पंवार एवं डॉ. भोलेश्वर दुबे

प्रकृति में शाकाहारी और वनस्पति, शिकारी व शिकार, तथा रोगकारी व पोषक के बीच गहरे सम्बंध पाए जाते  हैं। ऐसी विविध अंतर्क्रियाएं जहां शिकारी या रोगकारी की जीने की क्षमता को बढ़ाती हैं, वहीं शिकार या पोषक के जीवित रहने की संभावना को कम करती हैं। इन अंतर-सम्बंधों को हम एक सामान्य शीर्षक ‘शोषण या दोहन’ के तहत देख सकते हैं।

भोज्य संसाधनों का दोहन आबादी को एक ताने-बाने में गूंथ देता है जिसे ‘खाद्य संजाल’ के नाम से जानते हैं। एक पौधे और रोगजनक के ऐसे ही एक आश्चर्यजनक, रोमांचक, अद्भुत व कल्पनातीत सम्बंध की चर्चा हाल ही में साइंटिफिक अमेरिकन, प्लांट प्रेस तथा मायकोलॉजिया और फंगल जीनोम के पृष्ठों पर हुई है।

फूलों की नकल

मेक्सिको में प्रति वर्ष दक्षिणी चट्टानी पहाड़ों के ढलान पर जंगली फूलों की रंगीन बहार नज़र आती है। इसमें से कुछ जंगली फूल दिखते तो फूल जैसे हैं लेकिन होते नहीं हैं। एक चमकदार पीला और मीठी गंधवाला फूल दरअसल एक रोगकारी फफूंद द्वारा अपने पोषक पौधे में फेरबदल करके बनाया गया होता है। यह पौधे का असली फूल नहीं नकली फूल होता है। इस रोगजनक को हम रस्ट के नाम से जानते हैं क्योंकि इसके बीजाणु जंग लगे लोहे के रंग के होते हैं जो पौधों की पत्तियों पर बनते हैं।

यह गेहूं में लगने वाले रोग पक्सीनिया ग्रेमीनिस का सम्बंधी पक्सीनिया मोनोइका है। इसका पोषक पौधा गेहूं न होकर सरसों कुल का अरेबिस है।

अरेबिस प्रजातियां शाकीय पौधे हैं जो कुछ महीनों से लेकर वर्षों तक रोज़ेट के रूप में रहते हैं। रोज़ेट पौधे का एक ऐसा रूप होता है जिसमें पौधे पर ढेर सारी पत्तियां जमीन से सटी हुई लगभग एक घेरे में बहुत ही छोटे तने पर लगी होती है।

इस रोज़ेट अवस्था में अरेबिस पौधा जड़ों के विकास और उनमें पोषण का संग्रह करने में बहुत अधिक ऊर्जा लगाता है। इस अवस्था के अंत में यह तेज़ी से एकदम लंबा हो जाता है और फूलने लगता है। वैज्ञानिक इस प्रक्रिया को बोल्टिंग कहते हैं। फूलों का परागण होता है, फूल में बीज बनते हैं, बीजों से फिर नए पौधे बनते हैं और यह चक्र चलता रहता है।

लेकिन पक्सीनिया तो अरेबिस के जीवन चक्र को पूरी तरह से बदल देता है। यह पौधे की रोज़ेट अवस्था में उस पर आक्रमण करता है और इसके विकास में फेरबदल कर पौधे का ऐसा रूप बनाता है जो स्वयं पक्सीनिया फफूंद के लैंगिक प्रजनन को बढ़ावा देता है। इस दौरान सामान्यत: पोषक पौधा मर जाता है।

पक्सीनिया आम तौर पर अरेबिस को गर्मियों के आखरी दिनों में संक्रमित करता है। फिर तेज़ी से वृद्धि करने वाले उन ऊतकों में घुस जाता है जो आने वाली सर्दियों में पौधों की वृद्धि के लिए ज़िम्मेदार होते हैं। बार-बार विभाजित होने वाले ऊतकों पर आक्रमण करके यह पौधे के रोज़ेट आकार में भविष्य में होने वाले परिवर्तन को अपने हिसाब से बदल डालता है। संक्रमित रोज़ेट आने वाले वसंत में तेज़ी से लंबे हो जाते हैं उनकी पूरी लंबाई और शीर्ष पर पत्तियों का घनत्व बढ़ जाता है। ये पत्तियां हरी होने की बजाय चमकदार पीली होती हैं। शीर्ष पर पीली पत्तियों का समूह बिल्कुल फूलों जैसा लगता है। इन फूलों में मुख्यत: स्पर्मेगोनिया नामक रचनाएं होती हैं, जो फफूंद के लैंगिक प्रजनन अंग हैं और इनसे चिपचिपा मीठा द्रव भी निकलता है। अधिकांश रस्ट में लैंगिक प्रजनन के लिए पर-परागण या संकरण की ज़रूरत होती है। यह विभिन्न प्रकार के कीटों की मदद से होता है। ये कीट एक फफूंद के बीजांड को दूसरी फफूंद पर ले जाते हैं।

शोधकर्ता बारबरा रॉय ने देखा कि पीले रंग और शर्करा युक्त यह संयोजन फूलों पर आने वाले कई प्रकार के कीटों को अपनी ओर आकर्षित करता है जिनमें तितलियां, मधुमक्खियां और अन्य प्रकार की छोटी मक्खियां शामिल होती है। कोलरेडो में मक्खियां इन नकली फूलों पर मंडराने वाली आम कीट हैं।

इस अध्ययन से यह भी पता चला कि पक्सीनिया पोषक पौधे के जीवन चक्र को छिन्न-भिन्न कर देती है और उसे मार डालती है। जो पौधे बच जाते हैं उन पर फूल तो बनते हैं परंतु बीज नहीं बनते। अर्थात पक्सीनिया अपने पोषक पौधे को भरपूर नुकसान पहुंचाती है।

पक्सीनिया तो मात्र पोषक का रूप बदलता है और पत्तियों को अपने स्पर्मेगोनिया से सजाकर रंगीन मीठे फूलों जैसा बना देती है, किंतु फ्यूसेरियम नामक फफूंद तो इससे चार कदम आगे है। यह पोषक पौधों को फूलने ही नहीं देती और जो फूल दिखता है वह पूरी तरह कवक के ऊतकों से बना होता है।

फ्यूसेरियम नामक यह कवक गुआना के सवाना में घास जैसे पौधों को संक्रमित करती है, और उन्हें निष्फल कर संपूर्ण कवक-फूल में परिवर्तित कर देती है। 2006 में गुआना में एक वनस्पति संग्रहकर्ता यात्री कैनेथ वर्डेक ने केटूर नेशनल पार्क में टहलते हुए पीली आंखों वाली घास की दो प्रजातियों पर कुछ असामान्य फूल देखे।

उन प्रजातियों के विशिष्ट फूलों के विपरीत वे ज़्यादा नारंगी, घने गुच्छेदार और स्पंजी थे। बाद की यात्राओं में उन्होंने ऐसी विचित्रताओं के और उदाहरण देखे। वनस्पति साहित्य की खाक छानने पर उन्होंने पाया कि ये नारंगी रचनाएं वास्तव में फूल थे ही नहीं और पीली आंखों वाले ज़ायरिस वंश के पौधों ने उन्हें नहीं बनाया था। वे असली फूल ना होकर नकली फूल थे जो एक कवक की कारस्तानी थे। इस कवक का नाम है फ्यूसेरियम ज़ायरोफिलम। यह ज़ायरिस पौधे को संक्रमित करती है और पौधों के स्वयं के पुष्पन को रोक कर अपने नकली फूल उन पर खिलाती है। इसके लिए फ्यूसेरियम पौधे की अब तक अज्ञात किसी व्यवस्था का अपहरण कर लेती है। यही नहीं, यह ज़ायरिस के परागणकर्ताओं को भी अपने बीजाणुओं को फैलाने के लिए छलती है।

वैज्ञानिक यह सोचकर हैरान हैं कि यह कवक धोखाधड़ी के लिए इतनी अच्छी तरह से कैसे विकसित हुई है। अमेरिकी कृषि विभाग के सूक्ष्मजीव वैज्ञानिक कैरी ओडोनल का कहना है कि “यह पृथ्वी पर एकमात्र ऐसा उदाहरण है जहां पूरा का पूरा नकली फूल कवक से बना है।” नकली फूलों के बारे में यह अध्ययन हाल ही में फंगल जेनेटिक्स और बॉयोलाजी नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

और भी हैं बाज़ीगर

मोनीलिनिया कोरिम्बोसी नामक कवक ब्लूबेरी की झाड़ी को संक्रमित करती है। यह कवक संक्रमित पत्तियों पर फूलों जैसी रचनाएं तो नहीं बनाती लेकिन ब्लूबेरी पत्तियां रोज़ेटनुमा हो जाती हैं, पराबैंगनी प्रकाश को परावर्तित करती हैं, साथ ही ब्लूबेरी के असली फूलों के समान किण्वित चाय जैसी गंध भी छोड़ती है। इससे कई कीट इसकी ओर आकर्षित होते हैं। इसी तरह पीले रंग की फूलों वाली घास से बने कवक फूल से निकलने वाली गंध से कई कीट इसका पता लगा लेते हैं और वे परावर्तित पराबैंगनी प्रकाश को भी पकड़ने में सक्षम होते है।

सूक्ष्म जीव वैज्ञानिक इमेने लारबा ने फ्यूसेरियम ज़ायरोफिलम के नकली फूलों के लिए पराबैंगनी फिल्टर का उपयोग किया था। ऐसा अनुमान है कि कवक के ऊतक पराबैंगनी प्रकाश को परावर्तित करते हैं और पीला रंग दोनों मिलकर परागणकर्ताओं को कवक के नकली फूलों का पता लगाने में मदद करते हैं। ऐसा ही असली फूलों पर भी होता है। यह नकलपट्टी की पराकाष्ठा है।

शोधकर्ताओं ने इन नकली फूलों से दो रंजक अलग किए हैं जो पराबैंगनी प्रकाश के परावर्तन तथा चमक के लिए ज़िम्मेदार हो सकते हैं। इसके अलावा, प्रयोगशाला में उन्होंने 10 गंधयुक्त पदार्थ भी प्राप्त किए जो परागणकर्ता कीटों को लुभाने के लिए जाने जाते हैं।

क्या प्रयोगशाला में प्राप्त यह सुगंधित रासायनिक कॉकटेल जंगली (असंक्रमित) फूलों की गंध से मेल खाता है? कोविड-19 के चलते गुयाना के बजाय इसी दल ने दक्षिणी अमेरिका के सवाना जंगलों में उगने वाली एक मिलती-जुलती प्रजाति ज़ायरिस लेक्सीफोलिया को खोजा। यह एक बारहमासी पौधा है और गुयाना में देखे गए पौधे से मिलता-जुलता है। ज़ायरिस लेक्सीफोलिया के असंक्रमित फूल और फ्यूसेरियम ज़ायरोफिलम कवक के कल्चर से निर्मित रसायनों के कॉकटेल की तुलना से पता चला है कि दोनों एक ऐसे यौगिक का उत्सर्जन करते हैं जो परागणकर्ता और अन्य प्रकार के कीटों (मधुमक्खियों, सफेद मक्खियों और काऊपी वीवल्स) को अपनी ओर आकर्षित करता है।

अलबत्ता कुछ वैज्ञानिकों को लगता है कि मामले को और समझना ज़रूरी है क्योंकि फूलों की गंध एक ही वंश की प्रजातियों के बीच भिन्न हो सकती है। अकेले यौगिक की अपेक्षा गंध को मिश्रण के रूप में बेहतर तरीके से समझा जा सकता है। फिर भी नकली फूलों की आकृति और रंग से प्रभावित हुए बिना नहीं रहा जा सकता।

पेनसिल्वेनिया स्टेट विश्वविद्यालय के प्लांट पैथोलॉजी के शोध छात्र टेरी टॉरैस क्रूज़ ने इनकी इस धोखाधड़ी के अध्ययन की अलग योजना भी बनाई है। इसमें वे ज़ायरिस और फ्यूसेरियम दोनों के फूलों द्वारा उत्पादित सुगंध को इकट्ठा करेंगी और उन फूलों पर मंडराने वाले कीटों की सूची बनाएंगी। वे यह देखने की कोशिश करेंगी कि यह प्रणाली वास्तविक परिस्थिति में कैसे काम करती है। उम्मीद है कि यह अध्ययन इन छलिया कवकों के रहस्य को उजागर करेगा।

उच्च श्रेणी के मेज़बान पौधों के फूलों और रोगजनक के बीच बना यह अनोखा सम्बंध कई मायनों में आश्चर्यजनक है। इससे कई रोचक सवाल उठते हैं जिनका उत्तर शायद अभी हमारे पास नहीं है। मसलन कवक को कैसे पता चलता है कि पौधों में फूलों जैसी रंगीन, सुगंधित और रसीली रचनाएं लैंगिक अंगों के प्रदर्शन का काम करती हैं। यह जानने के बाद कवक को इस रचना की नकल करना है। पोषक और परजीवी या परपोषी के बीच जैव विकास के दौरान विकसित हुआ यह आश्चर्यजनक रिश्ता दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर तो ज़रूर करता है। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://heatherkellyblog.files.wordpress.com/2021/03/xyris-flowers.png

प्रातिक्रिया दे