कैंसर वैज्ञानिक डॉ. कमल रणदिवे – नवनीत कुमार गुप्ता

बायोमेडिकल शोधकर्ता के रूप में मशहूर डॉ. कमल जयसिंह रणदिवे को कैंसर पर शोध के लिए जाना जाता है। उन्होंने कैंसर और वायरसों के सम्बंधों का अध्ययन किया था। 8 नवंबर 1917 को पुणे में जन्मीं कमल रणदिवे आज भी भारतीयों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।

उनके पिता दिनेश दत्तात्रेय समर्थ पुणे के फर्ग्यूसन कॉलेज में जीव विज्ञान के प्रोफेसर थे और चाहते थे कि घर के सभी बच्चों, खासकर बेटियों को अच्छी से अच्छी शिक्षा मिले। कमल ने हर परीक्षा अच्छे अंकों से पास की। कमल के पिता चाहते थे कि वे चिकित्सा के क्षेत्र में शिक्षा प्राप्त करे और उनकी शादी किसी डॉक्टर से हो। लेकिन कमल की जीव विज्ञान के प्रति अधिक रुचि थी। माता शांताबाई भी हमेशा उनको प्रोत्साहित करती थीं।

कमल ने फर्ग्यूसन कॉलेज से जीव विज्ञान में बीएससी डिस्टिंक्शन के साथ पूरी की। पुणे के कृषि कॉलेज से स्नातकोत्तर शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने 1939 में गणितज्ञ जे. टी. रणदिवे से विवाह किया। जे. टी. रणदिवे ने उनकी पोस्ट ग्रोजुएशन की पढ़ाई में बहुत मदद की थी। उच्च अध्ययन के लिए वे विदेश भी गईं। उन्हें बाल्टीमोर, मैरीलैंड, यूएसए में जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय में फेलोशिप मिली थी।

फेलोशिप के बाद, वे मुंबई और भारतीय कैंसर अनुसंधान केंद्र (आईसीआरसी) लौट आईं, जहां उन्होंने देश की पहली टिशू कल्चर लैब की स्थापना की। 1949 में, आईसीआरसी में एक शोधकर्ता के रूप में काम करते हुए, उन्होंने कोशिका विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। बाद में आईसीआरसी की निदेशक और कैंसर के लिए एनिमल मॉडलिंग की अग्रणी के तौर पर डॉ. रणदिवे ने कई शोध किए। उन्होंने कार्सिनोजेनेसिस, सेल बायोलॉजी और इम्यूनोलॉजी में नई शोध इकाइयों की स्थापना में अहम भूमिका निभाई।

डॉ. रणदिवे की शोध उपलब्धियों में जानवरों के माध्यम से कैंसर की पैथोफिज़ियोलॉजी पर शोध शामिल है, जिससे ल्यूकेमिया, स्तन कैंसर और ग्रसनी कैंसर जैसी बीमारियों के कारणों को जानने का प्रयास किया। उनकी सर्वाधिक उल्लेखनीय उपलब्धि कैंसर, हार्मोन और ट्यूमर वायरस के बीच सम्बंध स्थापित करना था। स्तन कैंसर और जेनेटिक्स के बीच सम्बंध का प्रस्ताव रखने वाली वे पहली वैज्ञानिक थीं। कुष्ठ जैसी असाध्य मानी जाने वाली बीमारी का टीका भी डॉ. रणदिवे के शोध की बदौलत ही संभव हुआ।

उनका मानना था कि जो वैज्ञानिक पोस्ट-डॉक्टरल कार्य के लिए विदेश जाते हैं, उन्हें भारत लौटकर अपने क्षेत्र से सम्बंधित प्रयोगशालाओं में अनुसंधान के नए आयामों का विकास करना चाहिए। उनके प्रयासों से उनके कई साथी भारत लौटे, जिससे आईसीआरसी कैंसर अनुसंधान का एक प्रसिद्ध केंद्र बन गया।

डॉ. रणदिवे भारतीय महिला वैज्ञानिक संघ (IWSA) की प्रमुख संस्थापक सदस्य भी थीं। भारतीय महिला वैज्ञानिक संघ विज्ञान में महिलाओं के लिए छात्रवृत्ति और चाइल्डकेयर सम्बंधी सुविधाओं के लिए प्रयासरत संस्थान है। वर्ष 2011 में गूगल ने उनके 104वें जन्मदिन के अवसर पर उन पर डूडल बनाया था। 1982 में उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। अपने उल्लेखनीय कैंसर अनुसंधान के अलावा, रणदिवे को विज्ञान और शिक्षा के माध्यम से अधिक समतामूलक समाज बनाने के लिए समर्पण के लिए जाना जाता है। 11 अप्रैल 2001 को उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके पति जे. टी. रणदिवे ने मृत्यु तक उनके कार्यों में उनका सहयोग किया। उन दोनों का जीवन शोध कार्यों में एक-दूसरे को प्रोत्साहित करने वाला रहा। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://images.indianexpress.com/2021/11/Capture-2.jpg

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