ग्लोबल वार्मिंग में योगदान को कैसे कम करें? – डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन

मेरिकी पर्यावरण सुरक्षा एजेंसी (ईपीए) के मुताबिक सन 1800 के आसपास शुरू हुई औद्योगिक क्रांति के बाद से मानव गतिविधियों ने अत्यधिक मात्रा में कार्बन डाईऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों (जैसे मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड) और सल्फर, फॉस्फोरस के यौगिकों व ओज़ोन का उत्सर्जन किया है। इसके कारण पृथ्वी की जलवायु बदल रही है।

खतरनाक वृद्धि

औद्योगिक क्रांति के बाद से वायुमंडलीय कार्बन डाईऑक्साइड के स्तर में 40 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है – 18वीं शताब्दी में 280 पीपीएम से बढ़कर 2020 में 414 पीपीएम। और इन 200 वर्षों में अन्य ग्रीनहाउस गैसों का स्तर भी बढ़ा है।

1800 में भारत की आबादी 17 करोड़ थी, जो आज बढ़कर 140 करोड़ हो गई है। भारत में औद्योगिक क्रांति की शुरुआत आज़ादी के बाद ही यानी 75 साल पहले हुई थी। जहां इसने गरीबी कम करने में मदद की, वहीं वायुमंडलीय कार्बन डाईऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों में वृद्धि भी की है।

खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) की वेबसाइट बताती है कि भारत की ग्रामीण आबादी कुल आबादी का 70 प्रतिशत है, और उनका मुख्य काम कृषि है। इनसे हमें कुल 27.5 करोड़ टन खाद्यान्न मिलता है। भारत चावल, गेहूं, गन्ना, कपास और मूंगफली का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। इस लिहाज़ से यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि भारत यथासंभव अपने कृषि क्षेत्र के कार्बन पदचिन्ह को कम करने की कोशिश करे।

कृषि विशेषज्ञों की मदद से किसान खेती में कुछ सराहनीय उपाय लाए हैं। जैसे उन्होंने खेतों में सौर पैनल लगाए हैं ताकि भूजल पंपों में डीज़ल का उपयोग कम से कम हो।

बेंगलुरु के एक स्वतंत्र पत्रकार सिबी अरासु कार्बन मैनेजमेंट पत्रिका में लिखते हैं, “जलवायु-अनुकूल कृषि आय के नए स्रोत प्रदान करती है और अधिक टिकाऊ है।” इससे भारत का सालाना कार्बन उत्सर्जन 4.5-6.2 करोड़ टन तक कम हो सकता है। सरकार और पेशेवर समूहों ने ग्रामीण किसानों की सौर पैनल लगाने में मदद की है ताकि पैसों की बचत हो और अधिक आमदनी मिल सके।

भारत के किसान न केवल चावल और गेहूं उगाते हैं बल्कि अन्य खाद्यान्न भी उगाते हैं। वर्ष 2020-21 के दौरान उन्होंने लगभग 12.15 करोड़ टन चावल और 10.90 करोड़ टन गेहूं उगाया था। वे अन्य खाद्यान्न जैसे मोटा अनाज, कसावा, और भी बहुत कुछ उगाते हैं। वे सालाना लगभग 1.2 करोड़ टन मोटा अनाज पैदा करते हैं। इसी तरह, प्रति वर्ष लगभग 2.86 करोड़ टन मक्का का उत्पादन होता है। प्रसंगवश यह भी देखा जा सकता है कि चावल की तुलना में बाजरा में अधिक प्रोटीन, वसा और फाइबर होता है। बाजरा में प्रोटीन 7.3 ग्राम प्रति 100 ग्राम, वसा 1.7 ग्राम प्रति 100 ग्राम और फाइबर 4.22 ग्राम प्रति 100 ग्राम होता है, जबकि चावल में प्रोटीन 2.7 ग्राम प्रति 100 ग्राम, वसा 0.3 ग्राम प्रति 100 ग्राम और फाइबर 0.4 ग्राम प्रति 100 ग्राम होता है।

इस लिहाज़ से, हमारे आहार में चावल और गेहूं के इतर अधिक बाजरा शामिल करना हमारे लिए स्वास्थ्यकर होगा। और, चावल खाने से बेहतर है गेहूं खाना, क्योंकि गेहूं में अधिक प्रोटीन (13.2 ग्राम प्रति 100 ग्राम), वसा (2.5 ग्राम प्रति 100 ग्राम), और फाइबर (10.7 ग्राम प्रति 100 ग्राम) होता है।

एक साझा लक्ष्य

भारत में लगभग 20-39 प्रतिशत आबादी शाकाहारी है और लगभग 70 प्रतिशत आबादी मांस खाती है – मुख्यत: चिकन, मटन और मछली। भारत में कई नदियों और विशाल तट रेखा के चलते प्रचुर मछली संसाधन हैं। जूड कोलमैन द्वारा नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार मछलियों में पोषक तत्व अधिक होते हैं और ये कार्बन पदचिन्ह को कम करने में मदद करते हैं। इस तरह से, किसान, मांस विक्रेता और मछुआरे सभी मिलकर हमारे कार्बन पदचिन्ह को कम करने में योगदान देंगे। हो सकता है हम दुनिया के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण बन जाएं। (स्रोत फीचर्स) 

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.dhyeyaias.com/sites/default/files/How%20Can%20India%20Reduce%20Its%20Impact%20On%20Global%20Warming.jpg

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