मतदान में विकलांगजन की भागीदारी – सुबोध जोशी

लोकतांत्रिक प्रणाली का आधार चुनाव है और मतदान का अधिकार लोकतंत्र का एक मौलिक अधिकार है। हालांकि भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों में इसे स्थान नहीं दिया गया है लेकिन यह वयस्क नागरिकों का एक अघोषित मौलिक अधिकार है।

लेकिन भारत में अधिकांश विकलांगजन अपने मताधिकार का उपयोग करने और लोकतांत्रिक चुनाव प्रक्रिया में भागीदारी करने से वंचित रह जाते हैं। इसका कारण यह नहीं है कि वे मतदान करना नहीं चाहते। इसका कारण यह है कि अनेक प्रकार की बाधाएं उन्हें मतदान करने से दूर रखती हैं। हालांकि संविधान और विकलांगजन कानून उन्हें समानता प्रदान करते हैं और विकलांगजन कानून प्रत्येक दृष्टि से उनकी समान भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए बाधामुक्त वातावरण विकसित करने की बात भी करता है।

दुर्भाग्यवश ज़मीनी स्तर पर सच्चाई बिलकुल विपरीत है। आज़ादी के 75 सालों बाद और 1995 में विकलांगजन के लिए पहला कानून आने से लेकर 2016 में नया कानून आ जाने के बावजूद गिने-चुने अपवादों को छोड़कर बाधामुक्त वातावरण आज भी भारत में एक दिवास्वप्न ही है। इस स्थिति के चलते विकलांगजन अपने विभिन्न अधिकारों का उपयोग करने और शिक्षा, रोज़गार, समाज की विभिन्न गतिविधियों आदि में भागीदारी करने से वंचित हैं। चुनाव प्रक्रिया में भागीदारी से वंचित रहना उन्हीं में से एक है। जब हम भारत की बात करते हैं तो हमें ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे कस्बों को मुख्य रूप से ध्यान में रखना चाहिए जहां गैर-विकलांग व्यक्ति भी अनेक बाधाओं और कठिनाइयों से जूझ रहे हैं। विकलांगजन तो और अधिक मुश्किलों का सामना करते हैं।

टाइम्स ऑफ इंडिया में सितंबर 2021 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक निर्वाचन आयोग ने पंजीकृत विकलांग मतदाताओं की संख्या 77.4 लाख बताई थी जबकि वर्ष 2019 में लोक सभा चुनाव के लिए पंजीकृत विकलाग मतदाताओं की संख्या 62.6 लाख थी। 2019 के लोक सभा निर्वाचन में मतदान केंद्रों पर दी गई सुविधाओं का असर कर्नाटक व हिमाचल प्रदेश में उल्लेखनीय रहा था। कर्नाटक में कुल 4.2 लाख पंजीकृत विकलांग मतदाताओं में से 80.12 प्रतिशत ने और हिमाचल प्रदेश में 74 प्रतिशत ने मताधिकार का उपयोग किया था। इसी प्रकार से, हाल ही में सम्पन्न विधान  सभा चुनावों में हिमाचल प्रदेश के 56 हज़ार से ज़्यादा पंजीकृत विकलांग मतदाताओं में से लगभग 50 हज़ार ने मतदान किया।

चुनाव प्रक्रिया के संदर्भ में स्थिति यह है कि अधिकांश विकलांगजन मतदान केन्द्रों तक जा नहीं पाते हैं और वहां उनके अनुकूल इंतज़ाम भी नहीं होते हैं। उनकी अनेक व्यक्तिगत समस्याएं होती हैं। इनके कारण वे चाहकर भी अपने मताधिकार का उपयोग करने नहीं जा पाते हैं। बाधामुक्त वातावरण का अभाव उनके संवैधानिक और वैधानिक अधिकारों के हनन का कारण बनता है।

विकलांगजन के लिए घर से मतदान केंद्र तक जाकर मतदान करने का निर्णय लेना कोई आसान काम नहीं है। इसके लिए उन्हें अपनी विशिष्ट व्यक्तिगत आवश्यकताओं और सुविधाओं के बारे में सोच-विचार करना पड़ता है। संभव है, ज़रूरी सुविधाएं जुटाने में वे मतदान के दिन सफल न हों। यहां तक कि अगर वे किसी तरह से जाकर मतदान करने का फैसला करते भी हैं तो उन्हें और उनके सहायकों को असहनीय मानसिक पीड़ा, अपमान और प्रक्रिया सम्बंधी कठिनाइयों से गुज़रना पड़ता है। इस वजह से उनमें से बहुत से लोग मतदान करने के लिए नहीं जाते हैं, हालांकि वे मतदान करना चाहते हैं। चुनाव आयोग द्वारा उन्हें मतदान केंद्र तक ले जाने की सुविधा और व्हीलचेयर प्रदान करना एक स्वागत योग्य पहल है और संभव है इससे कई विकलांग मतदाताओं को मदद मिलेगी, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि इस तरह की व्यवस्था या सुविधा प्रत्येक विकलांग मतदाता के लिए सुविधाजनक होगी और वह आसानी से मतदान कर सकेगा। वास्तव में कई विकलांग व्यक्ति अनजान सहायक की मदद से बाहर नहीं जा सकते और यह ज़रूरी नहीं है कि मतदान के दिन प्रशासन द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाले सहायक के साथ या प्रशासन द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाले वाहन और व्हीलचेयर में वे सहज महसूस करें।

आज जब भारत तेज़ी से टेक्नॉलॉजी इस्तेमाल की दिशा में कदम बढ़ा रहा है और डिजिटल इंडिया अभियान के ज़रिए अनेक क्षेत्रों में क्रांतिकारी बदलाव लाए जा रहे हैं, तब टेक्नॉलॉजी के सहारे बहुत ही आसानी से विकलांगजन के लिए मतदान सुगम और संभव बनाया जा सकता है।

जैसे, मतदान के दिन विकलांग मतदाताओं को कहीं से भी मोबाइल या कम्प्यूटर के जरिए ऑनलाइन वोटिंग की सुविधा प्रदान करके इस समस्या का समाधान किया जा सकता है। जब डिजिटल आर्थिक लेन-देन सुरक्षित ढंग से किए जा सकते हैं, तो मतदान क्यों नहीं?

विकलांग मतदाताओं की सुविधा के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:

1. विकलांगजन को अपने घर या जहां कहीं भी वे हों वहां से कंप्यूटर या मोबाइल के माध्यम से ऑनलाइन वोटिंग की सुविधा उपलब्ध कराई जानी चाहिए। BHIM App की तरह यह सेवा बिना इंटरनेट काम करे, तो और बेहतर होगा। डिजिटल टेक्नॉलॉजी के कारण यह अत्यंत सरल और सुरक्षित व्यवस्था साबित होगी। अनेक विकलांगों के फिंगर प्रिंट बायोमेट्रिक मशीन पर नहीं आ पाते हैं, अतः इस तरह की अनिवार्यताएं ऑनलाइन वोटिंग में नहीं रखी जानी चाहिए। आधार कार्ड से सम्बंधित प्रक्रियाओं में देखी गई ऐसी अनेक कठिनाइयां मार्गदर्शक हो सकती हैं। 

2. विकलांगजन को डाक द्वारा मतदान की सुविधा भी उपलब्ध कराई जानी चाहिए, जो ड्यूटी पर तैनात शासकीय कर्मचारियों और सैनिकों को पहले से प्राप्त एक मान्य सुविधा है ।

3. विकलांगजन के साथ अति-वृद्धजन और गंभीर रूप से बीमार व्यक्तियों को भी इस तरह की सुगम मतदान सुविधा उपलब्ध कराई जानी चाहिए।

4. ऑनलाइन वोटिंग और डाक द्वारा मतदान की सुविधा दिए जाने के बावजूद बाधामुक्त वातावरण विकसित करने का कार्य तेज़ी से किया जाना चाहिए ताकि विकलांग मतदाता मतदान केंद्रों पर जाकर मतदान करने का विकल्प भी चुन सकें।

यदि ऑनलाइन वोटिंग की सुविधा उपलब्ध करा दी जाए तो विकलांग मतदाताओं के साथ-साथ अति-वृद्ध और गंभीर रूप से बीमार मतदाता अपने मताधिकार का सरलता से उपयोग कर सकेंगे और लोकतांत्रिक निर्वाचन प्रक्रिया में उनकी भागीदारी बढ़ेगी। निकट भविष्य में कुछ महत्वपूर्ण विधानसभा और लोकसभा चुनावों के मद्देनज़र इस दिशा में शीघ्र कदम उठाना मुनासिब होगा। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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