भूगर्भीय धरोहर कानून से शोध समुदाय में हलचल

हाल ही में मध्य प्रदेश के धार जिले में एक नीड़ स्थल से वैज्ञानिकों ने टाइटेनोसौर के 256 अंडे खोज निकाले हैं। इस नई खोज ने एक बार फिर भारत में विशाल भूगर्भीय और जीवाश्म संपदा की उपस्थिति का संकेत दिया है। लेकिन भूगर्भीय धरोहर सम्बंधी विधेयक के हालिया मसौदे से वैज्ञानिक इन विरासतों तक पहुंच, उनके संरक्षण और जन शिक्षण में उपयोग को लेकर काफी चिंतित हैं।

इस विधेयक में भारत के भूगर्भ वैज्ञानिक स्थलों और जीवाश्मों की रक्षा, किसी स्थल को राष्ट्रीय महत्व का घोषित करने और उनके रखरखाव का अधिकार केंद्र सरकार को दिया गया है। विधेयक में ऐसे स्थलों को नष्ट या विरूपित करने पर भारी दंड का प्रावधान भी रखा गया है। लंबे समय से अपेक्षित भू-विरासत कानून का कई वैज्ञानिकों ने समर्थन किया है। जीवाश्मों की लूटपाट रोकने के लिए जीवाश्म वैज्ञानिकों ने एक कानून बनाने के लिए काफी संघर्ष किया है।

लेकिन कई वैज्ञानिक इस विधेयक में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) को अत्यधिक शक्ति देने को लेकर चिंतित हैं। उनके अनुसार यह विधेयक जीएसआई को तलछट, चट्टानों, खनिजों, उल्कापिंडों और जीवाश्मों सहित भूवैज्ञानिक महत्व के स्थलों को नियंत्रित करने और पहुंच को सीमित करने का अधिकार देता है। शोधकर्ताओं को अंदेशा है कि जीएसआई के एकाधिकार से नौकरशाही को बढ़ावा मिलेगा और ऐसी सामग्री पर विश्वविद्यालयों तथा शोध संस्थानों सहित निजी-संग्राहकों की स्वायत्तता खत्म हो जाएगी।

टाइटेनोसौर के अंडों की खोज करने वाली टीम के प्रमुख गुंटूपल्ली वी. आर. प्रसाद भी जीएसआई को दिए गए व्यापक अधिकारों से चिंतित हैं। भू-विरासतों का अध्ययन करने वाले गैर-जीएसआई शोधकर्ताओं तथा अन्य व्यक्तिगत अध्ययनकर्ताओं का शोध कार्य प्रभावित होगा। प्रसाद, दरअसल, भू-विरासतों के निरीक्षण के लिए एक स्वतंत्र बोर्ड बनाने के पक्ष में हैं जिसमें विभिन्न हितधारक शामिल हों।

2019 में सोसाइटी ऑफ अर्थ साइंस (एसओईएस) द्वारा तैयार मसौदे में भी यही सुझाव दिया गया था। इसमें एक राष्ट्रीय भू-विरासत प्राधिकरण के तहत जीएसआई, कई मंत्रालयों, स्वतंत्र विशेषज्ञों और राज्य के भू-धरोहर विभागों को शामिल करने का विचार रखा गया था। इसमें वैज्ञानिक उद्देश्यों के लिए नए प्राधिकरण द्वारा स्थलों तक पहुंच प्रदान करने का भी प्रावधान था। वैसे तो हालिया मसौदा एसओईएस के उसी मसौदे पर आधारित है लेकिन इसमें कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। खास तौर से, विभिन्न हितधारकों की भागीदारी को खत्म कर दिया गया है।   

जीएसआई द्वारा नियंत्रण के मुद्दे से हटकर भू-विरासत के प्रबंधन को लेकर भी गंभीर सवाल उठाए गए हैं। जीएसआई द्वारा संरक्षित कुछ स्थलों का रख-रखाव ठीक ढंग से नहीं किया जा रहा है। इन स्थलों से जीवाश्मों की चोरी की रिपोर्टें सामने आई हैं। इसके अलावा जीएसआई ने अपने कब्ज़े में रखी काफी सामग्री खो दी है।   

विधेयक ने निजी संरक्षकों में भी डर की स्थिति पैदा की है जो कई वर्षों से जीवाश्म एकत्रित करने और निजी संग्रहालय बनाने का काम करते आए हैं। देखा जाए तो इस नए विधेयक के तहत जीएसआई उनके जीवनभर के कामों पर अपना दावा कर सकता है। अचानक ये संरक्षक अपराधी हो जाएंगे। संभावना यह है कि वन विभागों द्वारा संचालित जीवाश्म संग्रहालय भी जीएसआई के नियंत्रण में आ जाएंगे।

वैसे कई वैज्ञानिकों का मत है कि जीएसआई ने उनको और उनके सहयोगियों को ऐसे जीवाश्म नमूनों तक पहुंचने में मदद दी जिन्हें गुम मान लिया गया था। उसी की मदद से टाइटेनोसॉरस इंडिकस के जीवाश्मों को फिर से खोज निकाला गया जो 1828 में भारत में पाए गए थे, लेकिन बाद में गुम हो गए थे। शोधकर्ताओं को कोलकाता स्थित जीएसआई मुख्यालय में अन्य विशाल कशेरुक जीवाश्म संग्रहों के बीच ये जीवाश्म मिले थे।

बहरहाल वैज्ञानिक मानते हैं कि इन स्थलों तक शोधकर्ताओं की पहुंच की प्रक्रिया को पारदर्शी, समयबद्ध और सुव्यवस्थित होना चाहिए। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.science.org/do/10.1126/science.adg9628/abs/_20230131_on_india_dinosaur_egg.jpg

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