ऊंचे पहाड़ों पर जीवन के लिए अनुकूलन – डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन

मुद्र तल से 4570 मीटर की ऊंचाई पर बसा लद्दाख का कर्ज़ोक गांव हमारे देश की सबसे ऊंची बस्ती है। आबादी है तकरीबन 1300। हिमाचल प्रदेश के कोमिक और हानले गांव भी समुद्र तल से 4500 मीटर से अधिक की ऊंचाई बसे हैं।

अनुमान है कि पूरी दुनिया में लगभग 64 लाख लोग (विश्व जनसंख्या के लगभग 0.1 प्रतिशत) समुद्र तल से 4000 मीटर या अधिक की ऊंचाई पर रहते हैं। इनमें से अधिकतर लोग 10,000 से अधिक वर्षों से दक्षिणी अमेरिका के एंडीज़ और एशिया के तिब्बत के ऊंचे मैदानी इलाकों में रहते आए हैं। कम ऊंचाई पर रहने वाले लोग जब अधिक ऊंचाई पर पहुंचते हैं तो वहां की अधिक ठंड और कम वायुमंडलीय दाब, जिसके कारण यहां ऑक्सीजन कम होती है, से तालमेल बनाने में कठिनाई होती है। तो सवाल यह है कि वहां रहने वाले लोग इसके प्रति कैसे अनुकूलित हैं और उन्हें क्या मुश्किलें पेश आती हैं?

उसमें जाने से पहले आर्थिक हालात पर एक नज़र डालते हैं। हिमालय जैसी जगहों पर बहुत कम लोगों के बसने का एक मुख्य कारण है अवसरों की कमी। अव्वल तो खेती के लिए खड़ी पहाड़ी ढलानों को सपाट या सीढ़ीदार आकार देने की आवश्यकता होती है। फिर, सिंचाई के लिए पानी एक बड़ी चुनौती है। इसके अलावा, जैसे-जैसे आप ऊंचाई पर जाते हैं तो मिट्टी को पोषण प्रदान करने वाले जीव (जैसे कवक और कृमि) कम होते जाते हैं।

ऊंचे इलाकों में मवेशियों, जैसे हिमालय में याक और एंडीज़ में लामा, अलपाका और विकुना, की चराई साल के केवल गर्म महीनों में संभव है। जहां संसाधन मिलते हैं वहां खनन किया जाता है। दुनिया की सबसे ऊंची बस्ती पेरु स्थित ला रिकोनेडा (ऊंचाई समुद्र तल से 5100 मीटर) में सोने की खान पता चलने के बाद हज़ारों लोग वहां बसना चाहते हैं। आजकल एडवेंचरस पर्यटन भी जीविका प्रदान करता है – समुद्र तल से 4950 मीटर की ऊंचाई पर स्थित नेपाल का लोबुचे गांव माउंट एवरेस्ट फतह करने की कोशिश करने वाले पर्वतारोहियों को आश्रय देता है।

फेफड़ों की क्षमता

कम ऊंचाई पर रहने वाले लोग जब अधिक ऊंचाई पर जाते हैं तो उनकी आधारभूत चयापचय दर 25-30 प्रतिशत बढ़ जाती है। आधारभूत चयापचय दर कैलोरी की वह मात्रा है जो तब खर्च होती है जब आप कुछ ना करें, पूरे दिन बिस्तर पर पड़े रहें। उच्च आधारभूत चयापचय का मतलब है कि शरीर को अधिक ऑक्सीजन चाहिए होती है जबकि हवा कम है और ऑक्सीजन भी कम है। ऐसे कम ऑक्सीजन वाले माहौल में अनुकूलित होने में कुछ हफ्ते लगते हैं।

दिलचस्प बात यह है कि अधिक ऊंचाई के लिए अनुकूलित तिब्बतियों और एंडियन्स की आधारभूत चयापचय दर मैदानों में रहने वाले लोगों के बराबर ही होती है। फोर्स्ड वाइटल केपेसिटी (FVC) श्वसन सम्बंधी एक आंकड़ा होता है। यह हवा की वह अधिकतम मात्रा है जिसे आप गहरी सांस खींचने (फेफड़ों में भरने) के बाद ज़ोर लगाकर बाहर छोड़ सकते हैं। ऊंचाई पर रहने के लिए अनुकूलित पुरुषों में यह फोर्स्ड वाइटल कैपेसिटी 15 प्रतिशत अधिक और महिलाओं में 9 प्रतिशत अधिक होती है। और प्रति सेंकड श्वास के साथ छोड़ी गई हवा भी अधिक होती है।

दक्षिण अमेरिका के मूल निवासी केचुआ जाति (इन्का लोग इसी समूह के हैं) के लोगों का सीना गहरा होता है। अधिक ऊंचाई पर पैदा हुए और पले-बढ़े इन लोगों की फोर्स्ड वाइटल कैपेसिटी समुद्र के करीब रहने वाले इनके वंश के लोगों और रिश्तेदारों की तुलना में अधिक होती है।

लगता है कि जीवन की कठिन परिस्थितियां फिटनेस सुनिश्चित करती हैं। हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जि़ले में हुए अध्ययनों से पता चलता है कि 70-74 वर्ष की आयु में भी औसत रक्तचाप 120/80 बना रहता है।

अधिक ऊंचाई पर रहने से जुड़ी कठिनाइयों के साथ कुछ फायदे भी हो सकते हैं। मई 2023 में प्लॉस वन बायोलॉजी में प्रकाशित एक अध्ययन में मूलत: कम जीवनकाल वाले चूहों की एक नस्ल के साथ काम करते हुए शोधकर्ताओं ने पाया कि एवरेस्ट बेस कैंप जैसी कम ऑक्सीजन वाली आबोहवा में ये चूहे 50 प्रतिशत ज़्यादा जीवित रहे! (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://th-i.thgim.com/public/news/national/atzxf5/article66954196.ece/alternates/LANDSCAPE_1200/iStock-1397146902.jpg

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