अर्पिता व्यास
हाथी की सूंड महज नाक से बढ़कर बहुत कुछ है। हाथी सूंड से न केवल खाना उठाते हैं बल्कि पानी और रेत को अपनी पीठ पर छिड़कते हैं ताकि गर्मी से राहत मिले। वे सूंड से गर्जन करते हुए दूसरे हाथियों को संदेश भी भेजते हैं। नन्हें हाथी सूंड से ही दूध चूसकर मुंह में डालते हैं। इस हरफनमौला प्रकृति को देखते हुए बर्लिन विश्वविद्यालय (Berlin University) के तंत्रिका वैज्ञानिक माइकल ब्रेख्त (Michael Brecht) इसे जंतु-जगत का सबसे अद्भुत पकड़ने वाला अंग कहते हैं।
लेकिन सूंड में हड्डियां तो होती नहीं, फिर मात्र मांसपेशियों से बनी यह रचना कैसे इतने सारे अलग-अलग काम कर पाती है?
शायद सूंड पर पाई जाने वाली झुर्रियां इसका एक कारण हो सकती हैं। सूंड हाथी के शरीर में मुंह से जुड़ी संरचना है। इस पर बनी झुर्रियां अलग-अलग कामों को करने में मदद करती हैं। देखा जाए तो एक-एक झुर्री (सिलवट) एक-एक कोहनी की तरह काम करती है, और सूंड हर सिलवट पर मुड़ सकती है।
जब मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट (Max Planck Institute) के एंड्रू शूल्ज़ (Andrew Schulz) ने सूंड की झुर्रियों पर विचार करना शुरू किया तो वे मानकर चले थे कि ये झुर्रियां तब विकसित होती हैं जब सूंड का उपयोग ज़्यादा होता है, जैसे हमारे चेहरे पर मुस्कान की धारियां बन जाती हैं। लेकिन उन्होंने देखा कि सूंड की झुर्रियां तो जन्म से ही होती हैं और इन्हें नवजात हाथियों की सूंड पर भी देखा जा सकता है।
मनुष्य सहित कई जीवों में बच्चों को जन्म से ही झुर्रियां होती हैं क्योंकि उनके शरीर पर त्वचा शरीर के आकार के हिसाब से ज़्यादा होती है। लेकिन वे झुर्रियां बेतरतीबी से फैली होती हैं। इसके विपरीत, हाथी की झुर्रियां एक जैसी बनी रहती हैं – आकार में भी और स्थान में भी। और ये जन्म से पहले बन जाती हैं। इससे लगता है कि ये किसी उद्देश्य से बनी हैं।
इसे और अधिक समझने के लिए शूल्ज़ और उनके साथियों ने एशियाई हाथी (Asian Elephant) और अफ्रीकी हाथी (African Elephant) की सूंड की तुलना की, जो सूंड का उपयोग अलग–अलग ढंग से करते हैं। अफ्रीकी हाथी की सूंड के सिरे पर कठोर उपास्थि से बनी दो उंगलीनुमा संरचनाएं होती हैं जिनसे वे छोटी चीज़ों को भी पकड़ सकते हैं। इसके विपरीत, एशियाई हाथी की सूंड के अंत में एक ही उंगलीनुमा संरचना होती है और साथ में एक फूली हुई रचना होती है, जिससे वे तरबूज़ जैसी बड़ी चीजों को उठाकर अपने मुंह में रख पाते हैं।
शोधकर्ताओं ने संग्रहालयों में रखे नमूनों और चिड़ियाघरों में जाकर और हाथियों के बहुत सारे फोटो देखकर पता लगाया कि एशियाई हाथी की सूंड पर औसतन 126 झुर्रियां होती हैं जबकि अफ्रीकी हाथी में 83। शूल्ज़ का कहना है कि अतिरिक्त झुर्रियों से एशियाई हाथी को ज़्यादा मज़बूत पकड़ मिलती है जिससे एक उंगलीनुमा संरचना न होने की क्षतिपूर्ति हो जाती होगी। अतिरिक्त झुर्रियां एशियाई हाथी की सूंड को ज़्यादा लचीला बनाती हैं। दोनों ही प्रजातियों में झुर्रियों के जोड़ मांसपेशीय कोहनी की तरह काम करते हैं, जिससे चीज़ों को सूंड में लपेटकर उठाया जा सकता है।
ये झुर्रियां कैसे बनती हैं? यह जानने के लिए टीम ने तीन अफ्रीकी और दो एशियाई हाथियों के संग्रहालय में रखे भ्रूणों का अध्ययन किया। भ्रूण के दर्जनों चित्रों का अलग–अलग चरणों में अध्ययन किया गया। फिर इन चित्रों को विकास के समय के अनुसार क्रम में जमाया गया जिससे उन्हें यह पता चला कि झुर्रियां सूंड के साथ–साथ ही विकसित होती हैं। ये हाथी की 22 महीने की गर्भावस्था में 20वें दिन दिखाई देने लगती हैं। और अगले 150 दिन तक ये झुर्रियां दोनों प्रजातियों में बढ़ती हैं। इनकी संख्या हर तीन हफ्ते में दुगनी हो जाती है। एशियाई हाथियों में इसके बाद और भी ज़्यादा झुर्रियां बनती रहती हैं। ज़्यादा झुर्रियां उन स्थानों पर बनती हैं जहां से सूंड को मोड़ा जाएगा।
इसके बाद शोधकर्ताओं ने सूंड के बारे में और अध्ययन कर पता लगाया कि सूंड या तो बाईं ओर मुड़ने में दक्ष होती है या दाईं ओर। यानी कि हाथी अपनी सूंड को मुंह के एक तरफ ही घुमाकर उपयोग में लाते हैं, जैसे मनुष्यों में कुछ लोग खब्बू होते हैं। इससे सूंड में एक तरफ की अपेक्षा दूसरी तरफ ज़्यादा झुर्रियां हो जाती हैं।
बहरहाल, हाथी एक आदर्श उदाहरण है जिसमें नरम अस्थिरहित जोड़ों का अध्ययन किया जा सकता है। वैसे प्राइमेटस (Primates) और एलिफैंट सील (Elephant Seal) में ऐसे नरम अंग होते हैं जिनमें खून प्रवाहित करके उन्हें कड़ा किया जा सकता है लेकिन उनमें हाथी की सूंड की तरह घुमाव और चीज़ों को पकड़ने की क्षमता नहीं पाई जाती। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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