मौन कैदी ‘क्षामेन्क’ और हमारी नैतिकता की परीक्षा

कुमार सिद्धार्थ

र्जेंटीना के तट पर स्थित एक छोटा-सा समुद्री पार्क आज संसार के सबसे गूंगे श्रुति-स्थलों में से एक बन चुका है। पार्क के कॉन्क्रीट के टैंक में लहरों की आवाज़ें नहीं, बल्कि एक स्थिर सन्नाटा पसरा है। उस सन्नाटे का नाम है क्षामेन्क। यह एक नर ओर्का व्हेल (समुद्री व्याघ्र मछली) (orca captivity) है, जो पिछले तैंतीस वर्षों से कैद में है और बीस वर्षों से पूरी तरह अकेला है। यह दक्षिण अमेरिका में सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए रखा हुआ है।

टैंक का आकार क्षामेन्क के शरीर के हिसाब से बहुत छोटा है – एक निर्जीव अंडाकार कटघरा, जिसमें धूप से चमकता कॉन्क्रीट और क्लोरीनयुक्त पानी है। घंटों तक क्षामेन्क बिल्कुल निष्क्रिय तैरता रहता है। वहां लहरें नहीं, वहां जीवन नहीं, वहां सिर्फ प्रतीक्षा है। उसकी कहानी आज सिर्फ एक जीव की नहीं, बल्कि उन अनगिनत समुद्री प्रजातियों की कहानी है जिन्हें हमारी तमाशा देखने की भूख ने समुद्र से काट दिया है(marine animal captivity)।

व्हेल, डॉल्फिन और ओर्का जैसी प्रजातियां पृथ्वी के सबसे जटिल, सबसे सामाजिक और सबसे बुद्धिमान जीवों में गिनी जाती हैं। जंगल में नहीं, समुद्र की अनंत गहराई में ये प्रजातियां मातृवंशीय समूहों में रहती हैं, ध्वनि-भाषा सीखती हैं, शोक मनाती हैं, सहयोग करती हैं। रोज़ाना सौ किलोमीटर से अधिक दूरी तय करना इनके लिए सहज है। किंतु जब इन्हें समूह से अलग कर कैद में रखा जाता है, तो यह केवल बंदीकरण नहीं, बल्कि उनका संवेदनात्मक ध्वंस है(animal welfare issues)।

आंकड़ों के अनुसार, ओर्का की वैश्विक आबादी अनुमानित पचास हज़ार है। कुछ स्थानों पर यह संख्या और अधिक बताई गई है, किंतु निरंतर गिरावट की आशंका (orca population decline) भी जताई गई है। उदाहरण के लिए, अंटार्कटिक सागर के दक्षिणी भाग में लगभग 25 हज़ार ओर्का हो सकते हैं।

इन विशाल और बुद्धिमान जीवों के लिए समुद्र-आश्रय उपयुक्त था लेकिन मानव गतिविधियों ने उन्हें उनके प्राकृतिक घर से बेदखल कर दिया।

क्षामेन्क की ही तरह, ये जीव न केवल प्राकृतिक घर से बेदखल हो रहे हैं, बल्कि उनका जीवन भी मानव मनोरंजन के लिए नुमाया किया जा रहा है। पार्कों में बताया जाता है कि ये व्हेल-डॉल्फिन हमारी पृथ्वी के राजदूत हैं, प्रकृति और मनुष्य के बीच सेतु हैं। परंतु हर टिकट, हर शो उस संदेश के विपरीत सिद्ध हो रहा है। यह मात्र दर्शनीय-मनोरंजन बन जाता है और उस मनोरंजन के पीछे पसरी है एक भय, विषाद और उपेक्षा से भरी कहानी(marine theme parks impact)।

भारत ने इस संदर्भ में एक साहसिक कदम उठाया है। वर्ष 2013 में भारत सरकार ने डॉल्फिनों को ‘गैर-मानव व्यक्ति’ का दर्जा दिया था(non-human person dolphins)। यह दुनिया में ऐसा पहला कदम था, जिसने यह माना कि अत्यधिक बुद्धिमान और संवेदनशील प्रजातियों को मनोरंजन-उद्देश्य से कैद में रखना न केवल अनैतिक है, बल्कि समय की मांग के अनुरूप नहीं है। इसके बाद भारत ने डॉल्फिन शो व मनोरंजन-उद्देश्य से प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगा दिया। भारत की गंगा-डॉल्फिन का संरक्षण भी इसी दृष्टिकोण का उदाहरण है, जहां नदी का सफाई अभियान और जलीय परितंत्र का पुनरुद्धार करते हुए इन जीवों की भूमिका ध्यान में रखी गई है(river dolphin conservation)।

शायद यही बदलाव संसार के लिए संकेत है कि मनोरंजन के नाम पर वन्यजीवों को कैद में रखना अब विवेचना का विषय बन गया है। फ्रांस ने डॉल्फिन शो बंद कर दिए हैं; कनाडा ने मनोरंजन-उद्देश्य के लिए व्हेलों व डॉल्फिनों का प्रजनन व आयात बंद कर दिया है; अमेरिका में कुछ समुद्री पार्कों ने अपने गेट बंद कर दिए हैं। परंतु क्षामेन्क जब तक उस टैंक में तैरता रहेगा, हमारा सवाल अनुत्तरित रहेगा कि क्या हमने वास्तव में उसकी आज़ादी की ओर कदम उठाया है (end captivity movement)।

मण्डो मरीनो नामक उस पार्क का तर्क है कि क्षामेन्क को 1992 में किनारे पर फंसे होने से बचाया गया था और वह अब प्राकृतवास में जीवित नहीं रह पाएगा। हालांकि यह तर्क भावनात्मक दिखता है, पर न्याय-विचार के तहत यह उचित नहीं कि जीवनभर का कारावास ही एकमात्र विकल्प हो। ठीक यही विचार विश्व स्तर पर फैल रहा है। अब ‘कैद बंद करो’ और ‘प्राकृतिक आश्रय दो’ की आवाज़ें तेज़ हो रही हैं (marine sanctuary concept)।

उदाहरण के रूप में, उत्तर अटलांटिक क्षेत्र में ‘व्हेल सेंक्चुरी प्रोजेक्ट’ नामक पहल ने कैद से लाई गई व्हेलों के लिए समर्पित प्राकृतिक ठंडे पानी का संरक्षण-स्थल स्थापित करने की तैयारी शुरू की है। गहरे समुद्री जल, खुले समुद्री प्रवाह और पेशेवर देखभाल, यह वहां का आधार होगा जहां ये जीव नियंत्रण से करुणा की ओर बढ़ेंगे।

समुद्री पार्कों का स्वरूप आज मनोरंजन और संरक्षण के बीच बहुत धुंधला गया है। वे कहते हैं कि यह शोध है, पुनर्वास है, शिक्षा है। लेकिन उनकी आमदनी प्रदर्शन और तमाशे पर टिकी है। परिणामस्वरूप, हमारी नैतिकता को धोखा दिया जा रहा है।

और हम पूछते हैं, जब कोई बच्चा उस ऐक्रेलिक शीशे को छूकर अंदर तैरते व्हेल को देखता है, तो क्या उसे यह संदेश नहीं मिलता कि वर्चस्व और आनंद के नाम पर किसी जीव की स्वतंत्रता छीनी जा सकती है? क्षामेन्क की कहानी अब असाधारण नहीं रही। यह एक आईना है जो दिखाता है कि हम क्या जानते हैं, किन्ही नियमों में बंधे हुए हैं, किन बातों को स्वीकार कर लेते हैं।

वैज्ञानिक शोध स्पष्ट कर चुके हैं व्हेल-डॉल्फिन जैसी प्रजातियों को सामाजिक समूह, गहरी समुद्री गतियां, सुनने-सुनाने का तरीका, संवाद की भाषा प्राप्त है। प्राकृतिक परिस्थितियों में उनका जीवन अलग हैै। कैद में इनके लिए वह जीवन मजबूरी-सा हो जाता है। हमने कानूनी ढांचा तो बना लिया है, उदाहरण मौजूद हैं, लेकिन अब वक्त है कार्रवाई करने का।

क्षामेन्क बहुत लंबे समय से अकेला है। हमें यह तय करना होगा कि अगली सुर्खियां उसके बारे में क्या होंगी। क्या यह अंत की खबर होगी “एक ओर्का की मृत्यु” या यह घोषणा होगी “कैद से मुक्ति, स्वाभाविक जीवन की ओर पहला कदम”? हमें स्वीकार करना होगा कि करुणा कमज़ोरी नहीं, बल्कि सभ्यता की सच्ची पहचान है। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://media.cnn.com/api/v1/images/stellar/prod/03-mundo-marino.jpg?q=w_1160,c_fill/f_webp

प्रातिक्रिया दे