
मेक अमेरिका हेल्दी अगैन (महा – MAHA) आयोग ने हाल ही में अमरीकी बच्चों की सेहत को लेकर एक रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट में अमरीकी बच्चों में तेज़ी से बढ़ते जीर्ण रोगों (chronic diseases in children, US child health crisis) पर चिंता व्यक्त की गई है।
आयोग ने कहा है कि अमेरिका में बच्चों की सेहत पर सर्वाधिक असर अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खानपान (ultra-processed food), हवा, पानी व भोजन के ज़रिए रसायनों से संपर्क (chemical exposure in kids), सुस्त जीवन शैली, मोबाइल-लैपटॉप स्क्रीन पर बिताए गए समय और चिकित्सकीय हस्तक्षेप के अतिरेक का हुआ है। रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वास्थ्य सम्बंधी अधिकांश शोध फिलहाल कॉर्पोरेट प्रभाव (corporate influence in health research) में किया जा रहा है जिसे बदलने की ज़रूरत है। रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि 2020 की आहार सम्बंधी सलाहकार समिति में 95 प्रतिशत सदस्यों के कॉर्पोरेट विश्व के साथ वित्तीय सम्बंध थे।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 1970 के दशक के बाद बचपन में मोटापे की स्थिति में तीन गुना वृद्धि हुई है (childhood obesity in USA) और आज साढ़े तीन लाख से ज़्यादा बच्चे मधुमेह (childhood diabetes rates) से पीड़ित हैं। तंत्रिका विकास सम्बंधी विकार बढ़ रहे हैं, और हर 31 में से 1 बच्चा ऑटिज़्म (autism in children) से प्रभावित है। वर्ष 2022 में हर 4 में से 1 किशोर लड़की में अवसाद (teen depression in girls) की घटना हुई थी। आश्चर्यजनक खुलासा यह किया गया है कि फिलहाल किशोरों में मृत्यु का दूसरा सबसे बड़ा कारण खुदकुशी है। रिपोर्ट बताती है कि एलर्जी, आत्म-प्रतिरक्षा रोग (autoimmune diseases in children, rise in allergies) वगैरह भी तेज़ी से बढ़े हैं। और तो और, रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि कम से कम 40 प्रतिशत अमरीकी बच्चे किसी-न-किसी एक जीर्ण तकलीफ से ग्रस्त (40% US kids chronic illness) हैं।
देखा जाए तो शायद रिपोर्ट के कई निष्कर्ष गलत नहीं हैं। लेकिन विशेषज्ञों ने इसे लेकर कई सवाल भी उठाए हैं। मज़ेदार बात यह है कि महा रिपोर्ट महज 3 माह में तैयार कर ली गई है और यही आलोचना का प्रमुख बिंदु बना है। कई विशेषज्ञों का मत है कि रिपोर्ट एआई (कृत्रिम बुद्धि) (AI-generated report controversy) द्वारा तैयार करवाई गई है। इसे लेकर कई अन्य प्रमाण भी प्रस्तुत किए गए हैं।
बहरहाल, रिपोर्ट को लेकर अन्य दिक्कतें भी सामने आई हैं। जैसे एक संस्था नॉटअस (NOTUS) द्वारा विश्लेषण पर पता चला कि इसमें कई ऐसे अध्ययनों का हवाला दिया गया है जिनका कोई अस्तित्व ही नहीं है (fake scientific citations)। कई मामलों में शोधकर्ताओं के नाम गलत दिए गए हैं, पूरा संदर्भ नहीं दिया गया है। कई शोधकर्ताओं ने स्पष्ट किया है कि उनके जिस शोध पत्र का हवाला दिया गया है, वह अस्तित्व में ही नहीं है। कई मामलों में अध्ययनों के निष्कर्षों को गलत प्रस्तुत किया गया है। जैसे आईकान स्कूल ऑफ मेडिसिन की मरिआना फिगेरो के पर्चे को इस बात के प्रमाण के रूप में उद्धरित किया गया है कि स्क्रीन पर बिताया गया समय बच्चों की नींद में गड़बड़ी पैदा करता है, हालांकि यह अध्ययन कॉलेज के छात्रों पर किया गया था और इसमें नींद का मापन शामिल नहीं (misinterpretation of research) था।
विशेषज्ञों का मत है कि ट्रम्प सरकार एक ओर तो विज्ञान में सर्वोच्च मानक स्थापित करने की बात कर रही है, वहीं ऐसे फर्ज़ी संदर्भों, गलतबयानी वाली रिपोर्ट के आधार पर भविष्य की योजना बनाने की बात कर रही है (Trump administration health policy, science misinformation in politics)। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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