पुरातात्विक कब्र में मिले पैर बांधने के प्रमाण

वैसे तो चीन में लड़कियों-महिलाओं के पैर बांधकर रखने की प्रथा कम से कम 1000 साल पुरानी है और इसके विवरण ऐतिहासिक दस्तावेज़ों तथा कुछ जीवित भुक्तभोगी महिलाओं के बयानों में मिलते हैं। मगर अब शोधकर्ताओं ने एक प्राचीन कब्र के कंकालों में इस प्रथा के प्रमाण देखे हैं। इन कंकालों ने प्रथा पर नई रोशनी डाली है।

मिशिगन विश्वविद्यालय की एलिज़ाबेथ बर्जर और उनके साथियों को हाल ही में चीन के शांक्सी प्रांत में यांगुआनज़ाई स्थल की खुदाई के दौरान मिले एक कब्रिस्तान में मिले कंकालों के अध्ययन के आधार पर पैर बांधने की प्रथा को ज़्यादा गहराई में देखने का अवसर मिला है। यह कब्रिस्तान मिंग राजवंश के काल (1368-1644) का है। बर्जर का कहना है कि इन कंकालों का अवलोकन करते हुए उन्हें पैरों की विचित्र रचना का आभास हुआ। इंटरनेशनल जर्नल ऑफ पैलियोपैथॉलॉजी में प्रकाशित शोध पत्र में बर्जर और उनके साथियों ने बताया है कि आठ में से चार अभिजात्य महिलाओं के कंकालों पर पैर बांधने के चिंह मिले।

शोधकर्ताओं का विचार है कि पैर बांधने की प्रथा अपने शुरुआती रूप में दक्षिणी सोन्ग राजवंश (1127-1279) के समय शुरू हुई थी। शुरू-शुरू में इस प्रथा का उद्देश्य पैर को संकरा बनाना था। इसका हड्डियों पर कोई गंभीर असर नहीं होता था। पैर बांधने की ज़्यादा सख्त प्रथा मिंग राजवंश (1368-1644) के काल में शुरू हुई जिसमें पैर की मेहराब को छोटा-से-छोटा रखने का प्रयास होता था। पहले कुलीन वर्ग तक सीमित यह प्रथा धीरे-धीरे अन्य तबकों में प्रचलित हो गई।

पैरों को बांधना काफी कम उम्र में शुरू कर दिया जाता था। इसके तहत एक तंग पट्टी पैर पर बांधी जाती थी ताकि पैर एक विशेष आकार में मुड़े रहें। सत्रहवीं सदी में पैर बांधने की दो प्रथाएं प्रचलन में रहीं – दक्षिणी और उत्तरी। दक्षिणी शैली में उंगलियां सीधी रहती थीं किंतु उत्तरी शैली में अंगूठे को छोड़कर शेष सारी उंगलियों को तलवे के नीचे मोड़कर रखा जाता था। ऐसी पैर बंधी महिलाएं जीवन भर कई स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करती थीं। इतिहासकारों और अर्थशास्त्रियों ने क्विंग राजवंश के काल में कुलीन वर्ग की महिलाओं में इस प्रथा की उत्पत्ति और इसे प्रभावित करने वाले कारकों पर कई शोध पत्र लिखे हैं। मगर इस बाबत बहुत कम कहा गया है कि स्वयं महिलाएं इस बारे में क्या सोचती थीं। वह जानना तो अब संभव नहीं है किंतु बर्जर ने अपने शोध पत्र में कहा है कि पुरातत्ववेत्ता इतना तो स्पष्ट कर ही सकते हैं कि महिलाओं पर इसके शारीरिक असर क्या होते थे। (स्रोत फीचर्स)

 नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit :  https://www.livescience.com/64849-foot-bound-skeletons-china.html

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