बढ़ता उत्सर्जन पृथ्वी को बहुत गर्म कर देगा

दि हम पेट्रोल/डीज़ल जैसे जीवाश्म र्इंधनों के उपयोग में ऐसी ही लापरवाही बरतते रहे तो शायद उत्सर्जित गैसों की वजह से क्लाउड फीडबैक प्रभाव सक्रिय हो जाएगा। परिणाम यह होगा कि धरती औद्योगिक युग शुरू होने से पहले की तुलना में पूरे 14 डिग्री सेल्सियस गर्म हो जाएगी।

इस प्रभाव के कारण ऊष्णकटिबंध के इलाकों के बड़े हिस्से मनुष्य सहित समस्त स्थिरतापी जीवों के लिए घातक सिद्ध हो सकते हैं। लेकिन एक अच्छी बात यह है कि अगर देश कार्बन उत्सर्जन में कटौती के अपने प्रयासों को बढ़ाते हैं तो इस विषय पर अध्ययन की कोई आवश्यकता ही नहीं होगी।

कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी, पैसाडेना के टैपिओ श्नाइडर और उनकी टीम ने उपोष्णकटिबंधीय महासागरों पर ऐसे बादलों के मॉडल का निर्माण किया जिन्हें स्ट्रैटोकुमुलस बादल कहते हैं। ये बादल पृथ्वी की सतह के लगभग 7 प्रतिशत भाग को ढांक कर रखते हैं और सूरज की गर्मी को वापिस अंतरिक्ष में परावर्तित करके ग्रह को ठंडा रखते हैं। उन्होंने पाया कि उनके मॉडल में जब कार्बन डाईऑक्साइड का स्तर 1200 पीपीएम पर पहुंचा तो अचानक से स्ट्रैटोकुमुलस बादल बिखर गए और गायब हो गए।

यही कारण है कि यह खोज केवल उपोष्णकटिबंधीय स्ट्रैटोक्यूम्यलस पर लागू होती है, क्योंकि ये बादल असामान्य हैं। ये बादल बने रहते हैं क्योंकि इनकी ऊपरी सतह अवरक्त विकिरण का उत्सर्जन करती है और बादल को ठंडा रखती है। कार्बन डाईऑक्साइड का उच्च स्तर उत्सर्जन की इस प्रक्रिया को रोकता है। इन चमकीले सफेद बादलों के नुकसान से वैश्विक तापमान में 8 डिग्री सेल्सियस का और इज़ाफा होगा। कार्बन डाईऑक्साइड का स्तर 1200 पीपीएम से अधिक होने पर धरती वैसे ही लगभग 6 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक गर्म हो जाएगी। यानी स्ट्रैटोकुमुलस बादलों की क्षति की वजह से औसत वैश्विक तापमान 14 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है।

कार्बन डाईऑक्साइड का स्तर इस वर्ष 410 पीपीएम पार कर जाएगा जो उद्योग-पूर्व युग में 280 पीपीएम था। यदि सभी उपलब्ध जीवाश्म र्इंधन को जलाया जाए तो कार्बन डाईऑक्साइड का स्तर 4000 पीपीएम से अधिक हो सकता है। जलवायु वैज्ञानिकों की मानें तो सबसे बदतर स्थिति में भी 1200 पीपीएम कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर वर्ष 2100 के बाद आएगा।

इस खोज से एक पुराने रहस्य को सुलझाने में मदद मिलेगी कि कैसे लगभग 5 करोड़ साल पहले ग्रह इतना गर्म हो गया था कि मगरमच्छ आर्कटिक में पनप गए थे। यह सही है कि उस समय कार्बन डाईऑक्साइड का स्तर बहुत अधिक था, लेकिन मात्र उसके आधार पर उस अवधि की अत्यधिक गर्मी की व्याख्या नहीं की जा सकती। संभवत: उस समय स्ट्रैटोकुमुलस बादल बिखर गए थे। (स्रोत फीचर्स)

 नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit :  https://images.newscientist.com/wp-content/uploads/2019/02/25140730/e8mkgp-800×533.jpg

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