कहीं आप फफूंद तो नहीं खा रहे

अक्सर फल, ब्रेड या खाने की चीज़ों पर कुछ दिनों बाद फफूंद लगने लगती है, खासकर बारिश के मौसम में। यदि फफूंद खाने पर बहुत फैली ना हो तो कई लोग फफूंद लगा हिस्सा हटाकर बाकी खा लेते हैं। यदि आप भी ऐसा करते हैं तो एक बार फिर सोचिए कि  हटाने के बावजूद भी कहीं आप फफूंद तो नहीं खा रहे।

दरअसल खाद्य सामग्री पर दिखाई देने वाली हरी-सफेद मखमली फफूंद पूरी फफूंद के बीजाणु भर होते हैं जो फफूंद को फैलाने का काम करते हैं। फफूंद का बाकी हिस्सा, जिसे कवकजाल या मायसेलियम कहते हैं, खाद्य पदार्थ में काफी अंदर तक धंसा रहता है और दिखाई नहीं देता। फफूंद हटाते वक्त लोग दिखाई देने वाला हिस्सा ही हटाते हैं जबकि फफूंद का शेष हिस्सा तो खाने में रह जाता है।

यूएस डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर की विशेषज्ञ नडीन शॉ का कहना है कि वैसे तो अधिकतर फफूंद हानिरहित होती हैं लेकिन कुछ फफूंद खतरनाक होती हैं। जैसे कुछ फफूंदों में कवकविष मौजूद होता है जो काफी ज़हरीला होता है और शरीर में पहुंचने पर एलर्जी पैदा कर सकता है या श्वसन तंत्र को प्रभावित कर सकता है। खास तौर से एस्परजिलस फफूंद का विष (एफ्लॉटॉक्सिन) कैंसर का कारण बन सकता है। कवकविष प्रमुख रूप से अनाजों और मेवे पर लगने वाली फफूंद में पाया जाता है लेकिन अंगूर के रस, अजवाइन, सेब और अन्य खाद्यों पर पनपने वाली फफूंद में भी हो सकता है। इसके अलावा घातक एफ्लॉटॉक्सिन अक्सर मक्का और मूंगफली की फसलों में पनपने वाली फफूंद में पाया जाता है। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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