प्रजातियों के बीच फैलने वाली जानलेवा बीमारियां

किसी प्रजाति के लिए हानिकारक बैक्टीरिया और वायरस किसी अन्य प्रजाति को संक्रमित करने के लिए काफी तेज़ी से विकसित हो सकते हैं। कोरोनावायरस इसका सबसे नवीन उदाहरण है। एक जानलेवा बीमारी का जनक यह वायरस जानवरों से मनुष्यों में आ पहुंचा है और शायद मनुष्यों से जानवरों में भी पहुंच रहा है। 

इस तरह के प्रजाति-पार संक्रमण पशु पालन के स्थानों पर या बाज़ार में शुरू हो सकते हैं जहां संक्रामक जीवों के संपर्क को बढ़ावा मिलता है। ऐसी परिस्थिति में विभिन्न रोगजनक सूक्ष्मजीवों के बीच जीन्स का लेन-देन हो सकता है। ऐसा भी हो सकता है सामान्य जंतु-मनुष्य संपर्क के दौरान कोई सूक्ष्मजीव प्रजाति की सीमा-रेखा पार कर जाए।

जंतुओं से मनुष्यों में पहुंचने वाले रोगों को ज़ुऑनोसेस कहा जाता है। इनमें 3 दर्ज़न से अधिक रोग तो ऐसे हैं जो सिर्फ स्पर्श से हमें संक्रमित कर सकते हैं जबकि 4 दर्ज़न से अधिक ऐसे हैं जो जीवों के काटने से हमें मिलते हैं। इनमें कुछ रोग ऐसे भी हैं जो मनुष्यों से जीवों में पहुंचते हैं। यहां एक से दूसरी प्रजातियों में फैलने वाली कुछ जानलेवा बीमारियों पर चर्चा की गई है।

नया कोरोनावायरस

नए कोरोनावायरस (SARS-CoV-2) की पहचान दिसंबर 2019 में चीन के वुहान प्रांत के सी-फूड बाज़ार में हुई थी। आनुवंशिक विश्लेषण से पता चला कि यह चमगादड़ से आया है। उस बाज़ार में चमगादड़ नहीं बेचे जाते थे, इसलिए वैज्ञानिकों ने माना कि इस वायरस के मानवों में संक्रमण के पीछे एक अज्ञात तीसरा जीव होना चाहिए। कुछ अध्ययनों के आधार पर कहा जा रहा है कि यह मध्यवर्ती जीव पैंगोलिन हो सकता है। लेकिन नेचर पत्रिका के अनुसार अवैध रूप से तस्करी किए गए पैंगोलिन से प्राप्त नमूने SARS-CoV-2 से इतना मेल नहीं खाते हैं जिससे इसकी पुष्टि एक मध्यवर्ती जीव के रूप में की जा सके। इसके पूर्व के अध्ययनों में सांपों को इसका संभावित स्रोत माना गया था लेकिन सांपों में कोरोनावायरस के संक्रमण की पुष्टि नहीं की गई है।

इन्फ्लुएंज़ा महामारियां

वर्ष 1918 में इन्फ्लुएंज़ा ने कुछ ही महीनों में 5 करोड़ लोगों की जान ली थी। विश्व की एक-तिहाई आबादी को संक्रमित करने वाला यह इन्फ्लुएंज़ा वायरस (H1N1) पक्षी-मूल का था। मुख्य रूप से बुज़ुर्गों और कमज़ोर प्रतिरक्षा तंत्र वाले लोगों की जान लेने वाले साधारण फ्लू के विपरीत H1N1 ने युवा व्यस्कों को अपना शिकार बनाया था। ऐसा लगता है कि बुज़ुर्गों में पिछले किसी H1N1 संक्रमण के कारण प्रतिरक्षा उत्पन्न हुई थी, और इस वजह से 1918 की महामारी में उन पर ज़्यादा असर नहीं हुआ।

H1N1 वायरस (H1N1pdm09) का नवीनतम हमला 2009 में हुआ था जिसमें अमेरिका में 6.08 करोड़ मामले सामने आए थे और 12,496 लोगों की मौत हुई थी। विश्व भर में मौतों की संख्या डेढ़ से पौने छ: लाख के बीच थी। यह वायरस सूअरों के झुंड में उत्पन्न हुआ था जहां आनुवंशिक पदार्थ की अदला-बदली के दौरान इन्फ्लुएंज़ा वायरसों का पुनर्गठन हुआ। यह प्रक्रिया उत्तरी अमेरिकी और यूरेशियन सूअरों में प्राकृतिक रूप से होती रहती है।    

प्लेग

14वीं सदी में ब्लैक डेथ के नाम से मशहूर इस एक बीमारी के सामने कई सभ्यताओं ने घुटने टेक दिए थे। युरोप से लेकर मिस्र और एशिया तक अनगिनत लोग मारे गए थे। उस समय 36 करोड़ की आबादी वाले विश्व में 7.5 करोड़ लोग मारे गए थे। प्लेग एक बैक्टीरिया-जनित रोग है जो यर्सिनिया पेस्टिस नामक बैक्टीरिया के कारण होता है। यह बैक्टीरिया चूहों (और शायद बिल्लियों) में रहता है और संक्रमित पिस्सुओं के काटने से मनुष्यों में फैल जाता है। यह एक जानलेवा रोग है और आज भी यदि इसका इलाज न किया जाए तो जानलेवा होता है।

14वीं शताब्दी का प्लेग जिस बैक्टीरिया के कारण फैला था वह गोबी रेगिस्तान में वर्षों तक निष्क्रिय रहने के बाद चीन के व्यापार मार्गों के माध्यम से युरोप, एशिया और अन्य देशों में फैल गया। इसके लक्षणों में बुखार, ठण्ड लगना, कमज़ोरी, लसिका ग्रंथियों में सूजन और दर्द शामिल हैं। कई समाजों को इससे उबरने में सदियां लगी थीं। 

दंश से फैलते रोग

कई जंतु-वाहित बीमारियां जानवरों द्वारा काटने से फैलती हैं। मच्छरों द्वारा मानव शरीर में परजीवी के संक्रमण से मलेरिया रोग काफी जानलेवा सिद्ध होता है। एक रिपोर्ट के अनुसार मच्छरों के काटने से वर्ष 2018 में लगभग 22.8 करोड़ लोग संक्रमित हुए जबकि 40 लाख से अधिक लोगों की मौत हो गई। इनमें सबसे अधिक संख्या अफ्रीकी देशों में रहने वाले बच्चों की थी।

मच्छरों से फैलने वाले डेंगू बुखार से सालाना 40 करोड़ लोग संक्रमित होते हैं, जिनमें से 10 करोड़ लोग बीमार होते हैं और 22,000 लोग मारे जाते हैं। यह रोग एडीज़ वंश के मच्छर द्वारा काटने से होता है। 

पालतू प्राणि और चूहे

पालतू प्राणियों से होने वाली बीमारियों में रेबीज़ सबसे जानी-मानी है। इससे हर वर्ष लगभग 55,000 लोगों की मृत्यु होती है। इनकी सबसे अधिक संख्या एशिया और अफ्रीका के देशों में होती है। आम तौर पर यह रोग संक्रमित पालतू कुत्ते के काटने से होता है हालांकि जंगली जानवरों में रैबीज़ के वायरस पाए जाते हैं। 

एक और बीमारी है जो जानवर के काटे बगैर भी हो जाती है। चूहों जैसे प्राणियों में मौजूद हैन्टावायरस उनके मल, मूत्र वगैरह में होता है और यदि ये पदार्थ कण रूप में हवा में फैल जाएं तो वायरस सांस के साथ मनुष्यों में पहुंच जाता है। यह मुख्य रूप से डीयर माइस से फैलता है। यह वायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संचरण नहीं करता है। इसके मुख्य लक्षणों में ठण्ड लगना, बुखार, सिरदर्द आदि शामिल हैं। वैसे तो यह बीमारी बिरली है लेकिन इसकी मृत्यु दर 36 प्रतिशत है।

एचआईवी./एड्स

सीडीसी के अनुसार एड्स का वायरस (एचआईवी) मध्य अफ्रीका के एक चिम्पैंज़ी से आया है। यह वायरस (मूलत: एसआईवी) मनुष्यों में इन जीवों के शिकार ज़रिए पहुंचा है। यह मनुष्यों में इन जीवों के संक्रमित खून से आया जिसने मानवों में विकसित होकर एचआईवी का रूप ले लिया। अध्ययनों के अनुसार यह मनुष्यों में 18वीं सदी से मौजूद है। 

एचआईवी प्रतिरक्षा तंत्र को तहस-नहस कर देता है जिससे जानलेवा बीमारियों और कैंसर का रास्ता खुल जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक वर्ष 2018 में 7.7 लाख लोगों की मृत्यु एचआईवी के कारण हुई जबकि इसी वर्ष के अंत तक 3.7 करोड़ लोग इससे संक्रमित पाए गए। एचआईवी संक्रमित लोगों में टीबी से मृत्यु दर काफी अधिक होती है। यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में शारीरिक तरल पदार्थ (जैसे खून, स्तनपान, वीर्य, योनि स्राव आदि) के आदान प्रदान से पहुंचता है।  

मस्तिष्क पर नियंत्रण

एक विचित्र परजीवी टोक्सोप्लाज़्मा गोंडाई ने विश्व भर में लगभग 2 अरब लोगों को अपना शिकार बनाया है। यह परजीवी शीज़ोफ्रीनिया का कारण होता है। इसका प्राथमिक मेज़बान बिल्लियां हैं। यह रोगाणु बिल्ली की आंत में विकसित होते हैं। इसके अंडे बिल्ली के मल के साथ बाहर आते हैं और इनके छोटे-छोटे कण हवा के माध्यम से नाक के ज़रिए मनुष्यों में प्रवेश कर जाते हैं।   

मनुष्य में प्रवेश करने के बाद ये अंडे शरीर के उन अंगों में छिप जाते हैं जहां प्रतिरक्षा तंत्र का अभाव होता है, जैसे मस्तिष्क, ह्मदय, और कंकाल की मांसपेशियां। इन अंगों में अंडे सक्रिय परजीवी टैकीज़ोइट में तबदील हो जाते हैं और अन्य अंगों में फैलने व संख्यावृद्धि करने लगते हैं।

इनको मस्तिष्क पर नियंत्रण करने वाला जीव इसलिए कहा जाता है क्योंकि इससे संक्रमित चूहों में बिल्लियों का डर खत्म हो जाता है और वे बिल्लियों के मूत्र की गंध की ओर आकर्षित होने लगते हैं। ऐसे में वे बिल्ली का आसान शिकार बन जाते हैं और परजीवी को बिल्ली की आंत में पहुंचने का एक आसान रास्ता मिल जाता है। 

मनुष्यों में इनके संक्रमण का कोई खास लक्षण दिखाई नहीं देता है। हालांकि कुछ मामलों में सामान्य फ्लू और लसिका नोड्स पर सूजन की शिकायत होती है जो कुछ हफ्तों से लेकर महीनों तक रहती है। कभी-कभार दृष्टि गंवाने से लेकर मस्तिष्क क्षति जैसी गंभार समस्याएं हो सकती हैं।   

सिस्टीसर्कोसिस

सिस्टीसर्कोसिस की समस्या फीता कृमि (टीनिया सोलियम) के अण्डों के शरीर में प्रवेश करने से होती है। इसका लार्वा मांसपेशियों और मस्तिष्क में पहुंच कर गठान बना देता है। मनुष्यों में यह सूअर के मांस का सेवन करने से भी पहुंचता है। यह छोटी आंत के अस्तर से जुड़कर दो महीनों में एक व्यस्क कृमि में विकसित हो जाता है। इसका सबसे खतरनाक रूप मस्तिष्क में गठान के रूप में सामने आता है। इसके लक्षणों में सिरदर्द, दौरे, भ्रमित होना, मस्तिष्क में सूजन, संतुलन बनाने में समस्या, स्ट्रोक या मृत्यु शामिल हैं।

एबोला

यह रोग एबोला वायरस के पांच में से एक प्रकार के कारण होता है। यह मध्य अफ्रीका में गोरिल्ला और चिम्पैंज़ियों के लिए एक बड़ा खतरा है। सीडीसी के अनुसार मनुष्यों में यह चमगादड़ या गैर-मानव प्राइमेट्स के द्वारा फैली है। इसकी पहचान पहली बार कांगो में एबोला नदी के किनारे हुई थी। यह वायरस संक्रमित प्राणियों के रक्त या शरीर के अन्य तरल पदार्थों से फैलता है। मनुष्यों के बीच यह निकट संपर्क से फैलता है।  

इसके लक्षण काफी भयानक होते हैं। अचानक बुखार, कमज़ोरी, मांसपेशियों में दर्द, सिरदर्द, और गले में खराश शुरुआती लक्षण हैं, जिसके बाद उल्टी, दस्त, शरीर पर दाने, गुर्दों और लीवर की तकलीफ और कुछ मामलों में आंतरिक और बाहरी रक्तस्राव। मृत्यु दर 90 प्रतिशत तक हो सकती है।

लाइम रोग

यह रोग एक काली टांग वाले पिस्सू द्वारा मनुष्यों में बैक्टीरिया संक्रमण के कारण होता है। यह रोग मुख्य रूप से बोरेलिया बर्गडोरफेरी प्रजाति और कभी कभी एक अन्य प्रजाति बी. मेयोनाई से भी होता है। इसके लक्षणों में बुखार, सिरदर्द, थकान और त्वचा पर चकत्ते शामिल हैं। उपचार न किया जाए तो यह शरीर के जोड़ों से ह्मदय और तंत्रिका तंत्र तक फैल जाता है। हर वर्ष इसके लगभग 30,000 मामले सामने आते हैं।(स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.cdc.gov/onehealth/images/zoonotic-diseases-spread-between-animals-and-people.jpg

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