टीके की दूसरी खुराक में देरी और प्रतिरक्षा प्रक्रिया

पिछले वर्ष के अंत में, टीकों की सीमित आपूर्ति के चलते, यूके ने एक साहसिक प्रयोग शुरू किया था। इस प्रयोग में टीके की दूसरी खुराक में देरी करने का उद्देश्य वास्तव में अधिक से अधिक लोगों को टीका लगाना था ताकि उनको कुछ हद अस्पताल में भर्ती होने या फिर जान के जोखिम से बचाया जा सके।

लेकिन हाल ही में एक अध्ययन से पता चला है कि mRNA आधारित फाइज़र-बायोएनटेक टीके की दूसरी खुराक में देरी की जाए तो 80 से अधिक उम्र के लोगों में दूसरी खुराक मिलने पर एंटीबॉडी प्रतिक्रिया में तीन गुना तक बढ़ावा होता है। यह पहला ऐसा प्रत्यक्ष अध्ययन है जो टीके की दूसरी खुराक में देरी से एंटीबॉडी स्तर पर होने वाले प्रभाव का आकलन करता है। इसके निष्कर्षों का असर अन्य देशों के टीकाकरण कार्यक्रमों पर पड़ सकता है। पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड की महामारी विज्ञानी और इस अध्ययन की सह-लेखक गायत्री अमृतालिंगम के अनुसार यह निष्कर्ष टीके की दूसरी खुराक में देरी से मिलने वाले बेहतर नतीजों की पुष्टि करता है।

कई कोविड-19 टीकों की दो खुराकें दी जाती हैं जिनमें से पहली खुराक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया आरंभ करती है तो दूसरी ‘बूस्टर’ का काम करती है। यूके में उपयोग किए जाने वाले तीनों टीकों के क्लीनिकल परीक्षणों में आम तौर पर तीन से चार सप्ताह का अंतर रखा गया था। लेकिन देखा गया कि कुछ टीकों में पहली और दूसरी खुराक के बीच लंबे अंतराल से अधिक मज़बूत प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है।

इन निष्कर्षों की पुष्टि करने के लिए अमृतालिंगम और उनके सहयोगियों ने 80 से अधिक उम्र वाले 175 टीका प्राप्तकर्ताओं का अध्ययन किया जिनको फाइज़र टीके की दूसरी खुराक पहली खुराक के या तो तीन सप्ताह बाद या फिर 11-12 सप्ताह बाद दी गई थी। टीम ने सार्स-कोव-2 स्पाइक प्रोटीन के विरुद्ध एंटीबॉडीज़ के स्तर का मापन किया और टी-कोशिकाओं का भी आकलन किया। टी-कोशिकाएं लंबे समय तक एंटीबॉडी के स्तर को बनाए रखने में मदद कर सकती हैं।

उन्होंने पाया कि जिन लोगों को बूस्टर शॉट 12 सप्ताह बाद दिया गया है उनमें अधिकतम एंटीबॉडी का स्तर दूसरे समूह (जिसे दूसरी खुराक 3 सप्ताह बाद मिली थी) की तुलना में 3.5 गुना अधिक था। हालांकि अधिक अंतराल वाले लोगों में टी-कोशिकाएं कम पाई गई लेकिन इसके कारण बूस्टर शॉट के नौ सप्ताह बाद भी एंटीबॉडी के स्तर में अधिक तेज़ी से गिरावट नहीं आई थी।     

यह परिणाम काफी तसल्लीदायक हैं लेकिन सिर्फ फाइज़र टीके पर लागू होता है जो गरीब देशों में उपलब्ध नहीं है। इस संदर्भ में देशों को इस बात का ध्यान रखना होगा कि उनके यहां प्रचलित संस्करण कहीं मात्र एक खुराक के बाद संक्रमण के जोखिम को बढ़ाते तो नहीं हैं। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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