मानव-विज्ञानी और सामाजिक कार्यकर्ता: पॉल फार्मर

त 21 फरवरी 2022 को पॉल फार्मर का 62 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। फार्मर एक डॉक्टर होने के साथ मानव-विज्ञानी और सामाजिक कार्यकर्ता थे जिन्होंने अपना जीवन स्वास्थ्य क्षेत्र में समानता के लिए समर्पित कर दिया था। ‘पार्टनर्स इन हेल्थ’ (पीआईएच) नामक एक गैर-मुनाफा संगठन, जो हैटी, पेरू और रवांडा जैसे कम आय वाले देशों में मुफ्त चिकित्सा सेवा प्रदान करता है, के सह-संस्थापक के रूप में उन्होंने संगठन के अनुभव के आधार पर टीबी और एचआईवी के इलाज के तौर-तरीकों पर वैश्विक दिशानिर्देशों को बदलवाने का काम किया। कोविड-19 महामारी के दौरान फार्मर और उनके सहयोगियों ने टीकों के एकाधिकार के विरुद्ध मोर्चा खोला और दर्शाया कि इसी एकाधिकार के चलते ही कम आय वाले देशों में केवल 10 प्रतिशत लोगों का पूर्ण टीकाकरण हो पाया है।

फार्मर ने 1990 में हारवर्ड मेडिकल स्कूल से मेडिकल डिग्री के साथ-साथ मानव-विज्ञान में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की और इसी युनिवर्सिटी में वैश्विक स्वास्थ्य और सामाजिक चिकित्सा के शिक्षण का काम किया। अमेरिका में एक बच्चे और हैटी में एक युवक के रूप में हुए अनुभवों ने उनके नज़रिए को आकार दिया। सामाजिक सिद्धांत, राजनीतिक सिद्धांत और ‘मुक्तिपरक धर्म शास्त्र’ के कैथोलिक दर्शन ने इसे और विस्तार दिया। इस अध्ययन ने उनका ध्यान गरीबों के व्यवस्थागत उत्पीड़न पर केंद्रित किया।   

फार्मर द्वारा लिखी गई 12 किताबों और 200 से अधिक पांडुलिपियों से उनके कार्यों की सैद्धांतिक बुनियाद का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। उनका कहना था कि जानें बचाने के लिए पैसे की कोई कमी नहीं होगी, बशर्ते कि हरेक जीवन को मूल्यवान माना जाए। उन्होंने सरकारों और दानदाताओं द्वारा अपनाए जाने वाले लागत-क्षमता विश्लेषण की आलोचना की है। जन स्वास्थ्य के क्षेत्र में सरकारें और दानदाता जिस लागत-क्षमता विश्लेषण का इस्तेमाल करती हैं, उसकी फार्मर ने आलोचना की थी – खास तौर से उस स्थिति में जब किसी चिकित्सा टेक्नॉलॉजी को उन लोगों के लिए उपयुक्त मान लिया जाता है जो उसकी कीमत नहीं चुका सकते। उन्होंने जन स्वास्थ्य समुदाय के उन लोगों की भी आलोचना की जो सस्ते के चक्कर में गरीब देशों में एड्स मरीज़ों को स्वास्थ्य सेवा व देखभाल की बजाय एचआईवी रोकथाम पर ज़्यादा ज़ोर दे रहे थे। उस समय एचआईवी की दवाएं काफी महंगी थीं लेकिन फार्मर का तर्क था कि इनका महंगा होना ज़रूरी नहीं है। आगे चलकर नीतिगत बदलाव हुए और जेनेरिक दवाओं को मंज़ूरी दी गई और कीमतों में भारी गिरावट आई।       

सबके लिए स्वास्थ्य सेवा की पहुंच को सुनिश्चित करने के लिए फार्मर ने कभी-कभी नियमों का उल्लंघन भी किया। दी न्यू यॉर्कर के अनुसार, 1990 के दशक में फार्मर और उनके सहयोगी जिम योंग किम ने अपने कार्यस्थल, ब्रिगहैम और बोस्टन के महिला अस्पताल, से बड़ी मात्रा में टीबी की दवाइयां पेरू के अपने रोगियों के इलाज के लिए गुपचुप भेज दी थीं। बाद में पीआईएच के एक दानदाता ने इनकी प्रतिपूर्ति कर दी थी। इसके कुछ वर्षों बाद फार्मर और किम ने डबल्यूएचओ के उस कार्यक्रम में मदद की थी जिसके तहत 2005 तक 30 लाख लोगों का एचआईवी/एड्स का इलाज किया जाना था। हालांकि उनका उद्देश्य हमेशा से स्वास्थ्य प्रणाली को पुनर्गठित करने का रहा लेकिन वे यह समझ चुके थे कि दानदाता समग्र स्वास्थ्य सेवा की बजाय ऐसे कार्यक्रमों को समर्थन देते हैं जो किसी एक रोग पर केंद्रित हों।       

पीआईएच का काम अन्य सहायता संगठनों से अलग रहा है। उन्होंने न केवल क्लीनिक बनाए बल्कि बल्कि उन्हें टिकाऊ बनाने के उद्देश्य से उन्हें सरकार द्वारा संचालित सेवाओं के अंदर खोला और स्थानीय कर्मचारियों को शामिल किया।

फार्मर ने रोगों का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों को जाति, लिंग और गरीबी जैसे कारकों पर ध्यान देने को कहा जो विज्ञान से लाभ लेने की क्षमता को बाधित करते हैं। फार्मर ने यह भी बताया कि समता की बात को ध्यान में रखा जाए तो चिकित्सीय कार्यक्रम बेहतर तरीके से चलाए जा सकते हैं। अपने एक पेपर में वे बताते हैं कि कैसे पेरू स्थित उनकी टीम द्वारा मुफ्त तपेदिक उपचार के साथ मामूली मासिक वज़ीफा और भोजन प्रदान करने से 100 प्रतिशत लोग बीमारी से ठीक हो गए जबकि सिर्फ दवा देने से 56 प्रतिशत ही ठीक हो पाए थे।

फार्मर का राजनैतिक रुझान उनके गरीबी में बड़े होने के अनुभव से उपजा था। वे छह बच्चों में से एक थे और एक बस, एक नाव और एक तम्बू में रहा करते थे। 1988 में उनके टूटे पैर के उपचार के लिए कैशियर का काम करने वाली उनकी मां को अपना दो साल का वेतन लगाना पड़ा था। हालांकि, हारवर्ड मेडिकल इन्श्योरेंस से उनके अधिकांश खर्च की भरपाई हो गई थी, लेकिन फार्मर जानते थे कि इस तरह के चिकित्सा खर्च दुनिया भर में हर वर्ष 3 करोड़ लोगों को गरीबी में धकेल देते हैं।

फार्मर ने अपना करियर लोगों को यह समझाने में लगाया कि स्वास्थ्य सेवा एक मानव अधिकार है। उनको वैश्विक स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक जानी-मानी शख्सियत के रूप में माना जाता है। उन्होंने अपने पीछे ऐसे शोधकर्ताओं की टीम छोड़ी है जो उनके मिशन को आगे ले जाने में सक्षम है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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