महिला वैज्ञानिकों को उचित श्रेय नहीं मिलता

वैज्ञानिक शोध कार्य टीम द्वारा मिलकर किए जाते हैं। लेकिन हमेशा टीम के सभी लोगों को काम का बराबरी से या यथोचित श्रेय नहीं मिलता। हाल ही में नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया है कि करियर के समकक्ष पायदान पर खड़े वैज्ञानिकों में से महिलाओं को उनके समूह के शोधकार्य के लेखक होने का श्रेय मिलने की संभावना पुरुषों की तुलना में कम होती है। अध्ययन का निष्कर्ष है कि महिलाओं के प्रति इस तरह की असमानताओं का असर वरिष्ठ महिला वैज्ञानिकों को करियर में बनाए रखने और युवा महिला वैज्ञानिकों को आकर्षित करने की दृष्टि से सकारात्मक नहीं होगा।

पूर्व अध्ययनों में पाया गया है कि विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित के कई क्षेत्रों में महिलाएं अपनी मौजूदगी की अपेक्षा कम शोध पत्र लिखती हैं। लेकिन ऐसा क्यों है, अब तक यह पता लगाना चुनौतीपूर्ण रहा है – क्योंकि यह ठीक-ठीक पता लगाना मुश्किल था कि लेखकों की सूची में शामिल करने योग्य किन व्यक्तियों को छोड़ दिया जाता है। नए अध्ययन ने यूएस-स्थित लगभग 10,000 वैज्ञानिक अनुसंधान टीमों के विशिष्ट विस्तृत डैटा तैयार कर इस चुनौती को दूर कर दिया है। अध्ययन में वर्ष 2013 से 2016 तक इन 10,000 टीमों में शामिल रहे 1,28,859 शोधकर्ताओं और उनके द्वारा विभिन्न पत्रिकाओं में लिखे गए 39,426 शोध पत्रों से सम्बंधित डैटा इकट्ठा किया गया। इन आंकड़ों से शोधकर्ता यह पता करने में सक्षम रहे कि किन व्यक्तियों ने साथ काम किया और अंततः श्रेय किन्हें मिला। (अध्ययन में नामों के आधार पर लिंग का अनुमान लगाया गया है, इससे अध्ययन में आंकड़े थोड़ा ऊपर-नीचे होने की संभावना हो सकती है और इस तरीके से गैर-बाइनरी शोधकर्ताओं की पहचान करना मुश्किल है।)

अध्ययन की लेखक पेनसिल्वेनिया विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर ब्रिटा ग्लेनॉन बताती हैं कि अक्सर लेखकों की सूची में महिलाओं का नाम छोड़े जाने के किस्से सुनने को मिलते थे। “मैं कई महिला वैज्ञानिकों को जानती हूं जिन्होंने यह अनुभव किया है लेकिन मुझे इसका वास्तविक पैमाना नहीं पता था। वैसे हर कोई इसके बारे में जानता था लेकिन वे मानते थे कि ऐसा करने वाले वे नहीं, कोई और होंगे।”

ग्लेनॉन स्वीकार करती हैं कि यह अध्ययन हर उस कारक को नियंत्रित नहीं कर सका है जो यह निर्धारित करता है कि कौन लेखक का श्रेय पाने के योग्य है। उदाहरण के लिए, हो सकता है कि शोध टीमों में काम करने वाले कुछ पुरुषों ने आधिकारिक तौर पर संस्था में रिपोर्ट किए गए कामों के घंटों की तुलना में अधिक घंटे काम किया हो या समूह के काम में उनका बौद्धिक योगदान अधिक रहा हो।

हालांकि, वे यह भी ध्यान दिलाती हैं कि महिलाएं बताती हैं कि उन्हें जितना श्रेय मिलना चाहिए उससे कम मिलता है। नए अध्ययन के हिस्से के रूप में 2446 वैज्ञानिकों के साथ किए गए एक सर्वेक्षण में देखा गया कि पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाओं ने कहा कि उन्हें लेखक होने के श्रेय से बाहर रखा गया और उनके साथियों ने शोध में उनके योगदान को कम आंका था। और पिछले साल प्रकाशित 5575 शोधकर्ताओं पर हुए एक अध्ययन में बताया गया था कि पुरुषों की तुलना में ज़्यादा महिलाओं ने लेखक होने का श्रेय देने के फैसले को अनुचित माना।

ग्लेनॉन कहती हैं हर प्रयोगशाला में प्रमुख अन्वेषक स्वयं अपने नियम गढ़ता है और वही तय करता है कि लेखक का श्रेय किन्हें मिलेगा। इसलिए विभिन्न क्षेत्रों और प्रयोगशालाओं में एकरूपता नहीं दिखती। यह पूर्वाग्रहों को मज़बूत कर सकता है। जैसे, किसी ऐसे व्यक्ति को श्रेय मिल सकता है जो प्रयोगशाला में अधिक दिखाई देते हों। अत: फंडिंग एजेंसियों या संस्थानों को लेखक-सूची में शामिल करने के लिए स्पष्ट नियम निर्धारित करने चाहिए। लेखक का फैसला सिर्फ मुखिया पर नहीं छोड़ा जा सकता। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.science.org/do/10.1126/sciene.caredit.add6146/full/_20220621_on_womenresearch_istock-1090255620.jpg

प्रातिक्रिया दे