ई-कचरे का वैज्ञानिक निपटान – सुदर्शन सोलंकी

कंप्यूटर, टी.वी., वाशिंग मशीन, फ्रिज, कैमरा, मोबाइल फोन जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण या इनके पुर्ज़े जब उपयोग योग्य नहीं रह जाते तो इन्हें ई-कचरे की संज्ञा दी जाती है।

भारत ई-कचरा पैदा करने वाला तीसरा सबसे बड़ा देश है। ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर, 2017 के अनुसार, भारत प्रति वर्ष लगभग 20 लाख टन ई-कचरा उत्पन्न करता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, भारत में वर्ष 2019-20 में 10 लाख टन से अधिक ई-कचरा उत्पन्न हुआ था। वर्ष 2017-18 के मुकाबले वर्ष 2019-20 में ई-कचरे में 7 लाख टन की बढ़ोतरी हुई थी। किंतु ई-कचरे के निपटान की क्षमता में बढ़ोतरी नहीं हुई है।

युनाइटेड नेशंस युनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट ‘ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर 2020′ में बताया गया है विश्व में वर्ष 2019 में 5.36 करोड़ मीट्रिक टन कचरा पैदा हुआ था जो पिछले पांच सालों में 21 फीसदी बढ़ गया है। अनुमान है कि 2030 तक इलेक्ट्रॉनिक कचरे की मात्रा 7.4 करोड़ मीट्रिक टन हो जाएगी।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम 2019 के अनुसार दुनिया में प्रति वर्ष लगभग 5 करोड़ टन इलेक्ट्रॉनिक कचरा पैदा होता है, जो वजन में अब तक निर्मित सभी वाणिज्यिक विमानों से अधिक है। संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय की रिपोर्ट के मुताबिक ई-कचरे की मात्रा लगभग 4500 एफिल टावरों के बराबर है। हाल के एक शोध के अनुसार वर्ष 2025 तक सौ करोड़ से भी अधिक कंप्यूटरों की रिसायक्लिंग की व्यवस्था की आवश्यकता होगी।

वर्तमान समय में हम तेज़ी से इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों को उपयोग में लाते जा रहे हैं। इन उत्पादों का जीवन काल छोटा होता है जिस वजह से कुछ ही समय में ये कचरे के रूप में फेंक दिए जाते हैं। इसके अतिरिक्त जब भी कोई नई टेक्नोलॉजी आती है, हम पुराने उपकरणों को आसानी से फेंक देते हैं क्योंकि कई देशों में पुराने उत्पादों की मरम्मत की सीमित व्यवस्था होती है, और जहां संभव है तो बहुत महंगी। ऐसे में जब कोई इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद खराब होता है तब लोग उसे ठीक कराने की जगह बदलना ज़्यादा पसंद करते हैं।

ई-कचरा ज़हरीला और जटिल किस्म का कचरा है। इसमें पारा, सीसा, क्रोमियम, कैडमियम जैसी भारी धातुएं, पोलीक्लोरिनेटेड बायफिनाइल आदि और लंबे समय तक टिकाऊ कार्बनिक प्रदूषक होते हैं। ये मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए बेहद हानिकारक होते हैं। ई-कचरा खतरनाक रसायन ही नहीं, बल्कि सोना, चांदी, पैलेडियम, तांबा जैसी बहुमूल्य धातुओं का समृद्ध स्रोत भी है। ज़हरीली और मूल्यवान दोनों धातुओं की मौजूदगी ई-कचरे को अपशिष्टों का एक ऐसा जटिल मिश्रण बना देती है, जिसके लिए एक सजग प्रबंधन प्रणाली ज़रूरी है।

हमारे देश में ई–कचरे के 312 अधिकृत रिसायक्लर हैं, जिनकी सालाना क्षमता लगभग 800 किलोटन है। लिहाज़ा, 95% से अधिक ई–कचरा अब भी अनौपचारिक क्षेत्र ही संभालता है। अधिकांश स्क्रैप डीलरों द्वारा इसका निपटान अवैज्ञानिक तरीके से (जलाकर या एसिड में गलाकर) किया जाता है।

दुनिया के विकसित देश अपना ई-कचरा जहाज़ों में लादकर हमारे बंदरगाहों के निकट छोड़ जाते हैं। इससे भारतीय तटवर्ती समुद्रों में इस कचरे का ढेर लग गया है। इस ई-कचरे में बड़ी मात्रा में प्लास्टिक के उपकरण भी हैं इसलिए इसे जैविक तरीके से नष्ट करना अत्यधिक कठिन हो गया है।

देश में बढ़ते ई–कचरे से निपटने के लिए भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने ई–कचरा प्रबंधन नियम, 2016 लागू किया है। 2018 में इस नियम में संशोधन किया गया, ताकि देश में ई–कचरे के निस्तारण को सही दिशा मिल सके तथा निर्धारित तरीके से ई–कचरे को नष्ट अथवा पुनर्चक्रित किया जा सके।

किंतु आंकड़े बताते हैं कि ई-कचरे की री-साइकलिंग नहीं हो पा रही है और अनुपयोगी वस्तुएं समुचित निस्तारण के अभाव में आज एक बड़ी समस्या  बन गई हैं। भारत के कुल ई-कचरे का केवल पांच फीसदी ही री-सायकल हो पाता है, जिसका सीधा प्रभाव पर्यावरण में क्षति और उद्योग में काम करने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ता है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने चेतावनी दी है कि भारत और चीन जैसे विकासशील देशों ने ई-कचरे को ठीक से री-साइकिल नहीं किया तो यह किसी बड़ी घातक महामारी को जन्म दे सकता है।

ई-कचरे का सुरक्षित उपचार एवं निस्तारण 

1. सुरक्षित तरीके से दफन

प्लास्टिक की मोटी शीट के अस्तर वाले गड्ढे में ई-कचरा भरकर मिट्टी से ढंक दिया जाता है।

2. भस्मीकरण

ई-कचरे को 900 से 1000 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर भट्टी के अंदर एक बंद चैम्बर में जला दिया जाता है। इससे ई-कचरा लगभग नष्ट हो जाता है तथा कार्बनिक पदार्थ की विषाक्तता भी लगभग समाप्त हो जाती है। राख में से विभिन्न धातुओं को रासायनिक क्रिया से पृथक कर लिया जाता है तथा भट्टी से निकलने वाले धुएं को प्रदूषण नियंत्रण व्यवस्था की मदद से उपचारित किया जाता है।

3. पुनर्चक्रण

लैपटॉप, मॉनिटर, टेलीफोन, पिक्चर ट्यूब, हार्ड ड्राइव, कीबोर्ड, सीडी ड्राइव, फैक्स मशीन, सीपीयू, प्रिंटर, मोडेम इत्यादि उपकरणों का पुनर्चक्रण किया जा सकता है। इस प्रक्रिया में विभिन्न धातुओं एवं प्लास्टिक को अलग-अलग करके पुन: उपयोग में लाने हेतु तैयार कर लिया जाता है।

4. धातुओं की पुन:प्राप्ति

इस विधि में सोना, चांदी, सीसा, तांबा, एल्युमिनियम, प्लेटिनम आदि धातुओं को लिए सान्द्र अम्ल का प्रयोग करके पृथक कर लिया जाता है।

5. पुनरुपयोग

इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को सुधार या मरम्मत करके पुन: उपयोग करने योग्य बना लिया जाता है।

ई-कचरे के खतरे को कम करने के उपाय

इलेक्ट्रॉनिक कचरा प्रबंधन नियमों के अनुपालन में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने आदेश दिया है कि नियमानुसार ई-कचरे का वैज्ञानिक निपटान सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

1. बिजली एवं इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माण में खतरनाक पदार्थों के उपयोग में कमी।

2. ई-कचरे का वैज्ञानिक रूप से नियंत्रण। इसके लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा ई-कचरे से सम्बंधी मानदंड अपनाना होगा।

3. निराकरण और पुनर्चक्रण कार्यों में शामिल श्रमिकों की सुरक्षा, स्वास्थ्य और कौशल विकास सुनिश्चित किया जाना चाहिए। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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