प्राचीन मानव मज़े के लिए भी पत्थर तराशते थे

वैज्ञानिकों को 1960 के दशक में उत्तरी इस्राइल के 14 लाख साल पुराने एक पुरातात्विक स्थल ‘उबेदिया’ की खुदाई में पत्थरों के औज़ारों (जैसे कुल्हाड़ी वगैरह) के साथ कंचे जितने बड़े करीब 600 पत्थर के गोले भी मिले थे। लेकिन यह स्पष्ट नहीं था कि ये गोले कैसे और किसलिए बनाए गए थे। कुछ लोगों का अनुमान था कि ये गोले औज़ार बनाते वक्त बचे हुए पत्थर हैं। कुछ का विचार था कि, हो न हो, ये जानबूझकर बनाए गए होंगे।

इस गुत्थी को सुलझाने के लिए हिब्रू युनिवर्सिटी ऑफ जेरूसलम के कंप्यूटेशनल पुरातत्वविदों के एक दल ने इन ‘गोलाभों’ की त्रि-आयामी आकृति का विश्लेषण किया। इसके लिए उन्होंने एक नया, परिष्कृत सॉफ्टवेयर विकसित किया। यह सॉफ्टवेयर गोलाभ की सतह की कटानों के ढलानों (कोण) को माप सकता था, सतह की वक्रता की गणना कर सकता था, और संहति केंद्र पता कर सकता था। इस सॉफ्टवेयर की मदद से उन्होंने उबेदिया से प्राप्त 150 गोलाभों का विश्लेषण किया। इस आधार पर शोधकर्ता रॉयल सोसाइटी ओपन साइंस में लिखते हैं कि उबेदिया से प्राप्त गोलाभ इरादतन की गई शिल्पकला हैं, ना कि औज़ार बनाने के सहत्पाद। उन्हें प्रत्येक कंचे में एक बड़ी ‘प्राथमिक सतह’ मिली है जो आसपास से कई छोटे कटानों से घिरी है, इससे समझ आता है कि पहले किसी चट्टान से एक टुकड़ा काटकर अलग किया गया और फिर उस टुकड़े को चारों ओर से तराशकर गोल स्वरूप दिया गया।

शोधकर्ता बताते हैं कि इस बात की संभावना बहुत कम है कि ये कंचे प्राकृतिक क्रियाओं द्वारा बने होंगे। प्राकृतिक क्रियाओं से बनी संरचनाओं की सतह काफी चिकनी होती है। उदाहरण के लिए, नदियों में पाए जाने वाले पत्थर पानी द्वारा कटाव के कारण अत्यधिक चिकने हो जाते हैं, और वे पूर्ण गोलाकार भी नहीं होते। उबेदिया में पाए जाने वाले गोलाभों की सतह वैसी खुरदरी है जैसे किसी पत्थर को तराशने में होती है। और उनमें से कई कंचे तो एकदम गोल हैं, जो केवल कोई सोच-समझकर ही बना सकता है।

शोध के प्रमुख लेखक एंटोनी मुलर बताते हैं कि ऐसा लगता है कि 14 लाख साल पहले होमिनिन्स के पास अपने मन (दिमाग) में एक गोले की कल्पना करने और उस कल्पना को तराशकर आकार देने की क्षमता थी। ऐसा करने के लिए एक योजना और दूरदर्शिता के साथ-साथ मानवीय निपुणता और कौशल लगते हैं। इसके अलावा यह उनमें सुंदरता और सममिति की सराहना के उदाहरण भी पेश करता है।

अपने सॉफ्टवेयर से शोधकर्ता यह तो पता कर पाए कि प्राचीन मनुष्यों ने इन्हें कैसे बनाया लेकिन वे यह गुत्थी नहीं सुलाझा पाए कि इन्हें क्यों बनाया। लेकिन उनका अनुमान है कि उन्होंने ये गोले महज़ मज़े के लिए बनाए होंगे।

अन्य वैज्ञानिकों की टिप्पणी है इन गोलाभ की सतह पर बने कई निशानों से यह जानना असंभव हो जाता है कि निर्माण के शुरुआती चरणों में गोलाभ कैसे दिखते होंगे। उनका सुझाव है कि शोधकर्ता यदि अंतिम रूप ले चुके गोलाभों की आपस में तुलना करने की बजाय उन गोलाभों से करते जिन्हें गोलाभ बनाने की प्रक्रिया में अधूरा छोड़ दिया गया था तो अधिक स्पष्ट तस्वीर बन सकती थी।

इसके अलावा इस नई तकनीक की विश्वसनीयता परखने के लिए इसे अन्य पुरानी कलाकृतियों, जैसे अफ्रीका के खुदाई स्थलों से प्राप्त 20 लाख साल पुराने गोलाभों पर लागू करके देखना फायदेमंद होगा। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://images.newscientist.com/wp-content/uploads/2023/09/05140822/SEI_170211664.jpg?width=1200

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