भारत के ऊर्जा दक्षता कार्यक्रमों का मूल्यांकन – आदित्य चुनेकर, संजना मुले, मृदुला केलकर

भारत के अपने नागरिकों को विश्वसनीय, किफायती, सुरक्षित और टिकाऊ ऊर्जा उपलब्ध करवाने के लक्ष्य में ऊर्जा दक्षता काफी महत्वपूर्ण हो सकती है। भारत में पिछले कुछ सालों में ऊर्जा संरक्षण, बेहतर ऊर्जा दक्षता और ऊर्जा आपूर्ति प्रबंधन से सम्बंधित कई नीतियां और कार्यक्रम लागू किए गए हैं। इन कार्यक्रमों के स्तर और दायरे दोनों ही बढ़ रहे हैं। उदाहरण के लिए उजाला कार्यक्रम बड़े स्तर पर परिवारों को कम दामों में एलईडी बल्ब उपलब्ध कराता है।

किंतु इस तरह के बड़े कार्यक्रमों के समग्र मूल्यांकन पर बहुत ही कम ध्यान दिया जा रहा है। समग्र मूल्यांकन कार्यक्रमों के विभिन्न प्रभावों और उनकी कारगरता की व्यवस्थित जांच करते हैं, इन कार्यक्रमों की विश्वसनीयता बढ़ाते हैं और कार्यक्रमों के क्रियांवयन से होने वाली ऊर्जा की बचत का अनुमान बताते हैं। समग्र मूल्यांकन वर्तमान में लागू कार्यक्रमों की समीक्षा भी करते हैं तथा भविष्य में लागू किए जाने वाले ऐसे अन्य कार्यक्रमों की डिज़ाइन को बेहतर करने में मदद करते हैं।

कई व्यवस्थागत बाधाओं के चलते भारत में ऊर्जा दक्षता कार्यक्रमों का समग्र मूल्यांकन बहुत सीमित रहा है। एक तो ऊर्जा दक्षता कार्यक्रम क्रियांवित करने वाले संस्थानों के लिए, इन कार्यक्रमों का समयसमय पर और स्वतंत्र आकलन करवाने की कोई अनिवार्यता नहीं है। ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001; विद्युत अधिनियम, 2003; राष्ट्रीय विद्युत नीति 2005 और इसके संशोधन; राष्ट्रीय शुल्क नीति, 2006; और नियामक मंच द्वारा मांग प्रबंधन के नियमन सम्बंधी दिशानिर्देशों में इन नियमों की कमी स्पष्ट दिखती है।

समग्र मूल्यांकन की राह में दूसरी बाधा यह (गलत) धारणा है कि मूल्यांकन बोझिल, असमय, और महंगा होता है। यह गलतफहमी कुछ शुरुआती कार्यक्रमों में ऊर्जा बचत मापने के लिए डैटा लॉगर्स की मदद से ऊर्जा बचत सम्बंधी वास्तविक मापन के अनुभवों से उपजी है। और खासकर छोटे स्तर के कार्यक्रमों के लिए मूल्यांकन को एक बोझ माना जाता है।

अंततः ऊर्जा दक्षता कार्यक्रमों का सार्वजनिक डैटा दुर्लभ या बहुत कम उपलब्ध होता है। डैटा की कमी के कारण स्वतंत्र रुप से मूल्यांकन करने वाले शोधकर्ताओं, अकादमिक लोगों, और सामाजिक संगठनों द्वारा मूल्यांकन बहुत सीमित हो जाता है। इन व्यवस्थागत बाधाओं को दूर करने की ज़रूरत है ताकि भारत में इन कार्यक्रमों का समग्र मूल्यांकन किया जा सके।

ऊर्जा दक्षता कार्यक्रम के किसी भी समग्र मूल्याकन में कार्यक्रम के प्रभाव का आकलन (अर्थात यह देखना कि ऊर्जा खपत में कितनी कमी आई और सर्वोच्च मांग में कितनी कमी आई), प्रक्रिया का मूल्यांकन (कार्यक्रम का क्रियान्वन कितना कारगर रहा), और बाज़ार प्रभाव मूल्यांकन (कार्यक्रम के कारण बाज़ार में आए बदलावों का आकलन) शामिल हैं।

कार्यक्रम के प्रायोगिक क्रियान्वन के दौरान मूल्यांकन का विशेष महत्व होता है क्योंकि प्रायोगिक क्रियांवयन में सामने आई खामियों या मुश्किलों को बड़े स्तर पर कार्यक्रम लागू करने से पहले दूर किया जा सकता है। इसके अलावा लागू हो चुके कार्यक्रमों का मूल्यांकन भी ज़रूरी है क्योंकि इस तरह के मूल्यांकन कार्यक्रम के कारगर और गैरकारगर बिंदुओं की ओर ध्यान दिलाते हैं।

प्रयास द्वारा तैयार रिपोर्ट में भारत में ऊर्जा दक्षता कार्यक्रमों का मूल्यांकन करने के व्यापक दिशानिर्देश प्रस्तुत किए गए हैं। ये दिशानिर्देश विश्व स्तर की सर्वोत्तम परिपाटियों की समीक्षाओं पर आधारित हैं और केस स्टडीज़ की मदद से इन परिपाटियों के उदाहरण प्रस्तुत करती है। यह रिपोर्ट, वर्तमान में भारत में लागू ऊर्जा दक्षता कार्यक्रमों के समग्र मूल्यांकन के लिए नीति निर्माताओं, वितरण कंपनियों के प्रबंधकों और नियंत्रकों के लिए है जो मूल्यांकनकर्ताओं को नियुक्त कर सकते हैं। साथ ही यह रिपोर्ट भारत के ऊर्जा दक्षता संस्थानों जैसे ऊर्जा दक्षता ब्यूरो, ऊर्जा दक्षता सेवा लिमिटेड और सरकार द्वारा निर्धारित एजेंसियों के कार्यक्रमों में समग्र मूल्यांकन को शामिल करवाने में भी उपयोगी होगी। अंत में इस रिपोर्ट में उपभोक्ताओं, सामाजिक संगठनों और शोधकर्ताओं की दृष्टि से ऊर्जा दक्षता कार्यक्रम के समग्र मूल्यांकन के महत्व पर प्रकाश डाला गया है। यह रिपोर्ट भारत के सभी ऊर्जा दक्षता कार्यक्रमों की व्यापक मार्गदर्शिका नहीं है। यह रिपोर्ट तो ऊर्जा दक्षता कार्यक्रमों के मूल्यांकन के लिए एक सामान्य खाका या कार्यक्रमविशेष के लिए दिशानिर्देश प्रस्तुत करती है। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।

Photo Credit: well and company

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