सुप्त जीन को जगाकर कैंसर का इलाज – डॉ.डी. बालसुब्रमण्यन

कोशिकाओं में स्वस्थ रहने, विकारों या गड़बड़ियों को दुरुस्त करने और निश्चित संख्या में विभाजित होने व अपनी प्रतियां बनाने के लिए क्रियाविधियां होती हैं। शरीर में ये सभी प्रक्रियाएं बहुत नियंत्रित तरीके से चलती रहती हैं। लेकिन बाहरी कारक जैसे धूम्रपान या विकिरण वगैरह इसमें बाधा डालें तब क्या होगा? तब एक संभावना होती है कैंसर की। कैंसर में, कोशिकाओं में मौजूद डीएनए क्षतिग्रस्त हो जाता है। जिससे शरीर में कोशिकाएं अनियंत्रित तरीके से विभाजित होने लगती हैं और शरीर में गठानें बनने लगती हैं। जिससे शरीर के अंग कमज़ोर हो जाते हैं। कोशिकाओं में ऐसे जीन्स और उनके द्वारा बनाए जाने वाले प्रोटीन होते हैं जो इन गठानों की वृद्धि को रोकने का प्रयास करते हैं। ऐसा ही एक जीन है TP53। जब शरीर की यह नियंत्रण प्रणाली गड़बड़ा जाती है, तब परिणाम कैंसर के रूप में सामने आता है।

एक विरोधाभास

गौरतलब है कि कोशिका विभाजन की प्रक्रिया त्रुटियों से सुरक्षित नहीं है। शरीर में जितनी ज़्यादा कोशिकाएं होंगी, इस तरह की त्रुटियों की संभावना भी उतनी ही ज़्यादा होगी। तब काफी संभावना होगी कि वृद्धि के साथ होने वाली त्रुटियां सुरक्षा तंत्र को परास्त कर दें। यदि यह माना जाए कि प्रत्येक कोशिका के कैंसर में तब्दील होने की संभावना बराबर है तो हाथियों में कैंसर होने की संभावना मनुष्यों के मुकाबले कई गुना ज़्यादा होनी चाहिए क्योंकि मनुष्य की तुलना में हाथियों में कहीं ज़्यादा (कई अरब) कोशिकाएं हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। 4800 कि.ग्रा. के हाथी में कैंसर होने की संभावना 5-8 प्रतिशत ही होती है जबकि मनुष्यों में कैंसर होने की संभावना 11-25 प्रतिशत होती है। 40,000 कि.ग्रा. की भारीभरकम व्हेल और 600 कि.ग्रा. के मैनेटेस (समुद्री गाय) को शायद ही कभी कैंसर होता है। वहीं दूसरी ओर, चंद ग्राम भारी चूहों में मनुष्यों की तुलना में कैंसर होने की संभावना 3 गुना ज़्यादा है। इस प्रकार शरीर के वज़न (आकार) और कैंसर की संभावना के बीच विलोम सम्बंध दिखता है। 70 साल पहले ऑक्सफोर्ड युनिवर्सिटी के डॉ. रिचर्ड पेटो ने इस विलोम सम्बंध को देखा था, इसलिए इसे पेटो का विरोधाभास कहते हैं। तब से कई वैज्ञानिक इस गुत्थी को सुलझाने की कोशिश करते रहे हैं।

इसका एक संभावित स्पष्टीकरण जीनोम (पूरे शरीर में जीन का संग्रह) के अध्ययन से मिलता है। विकास के दौरान चूहों, मनुष्यों, मैनेटेस और मैमथ जैसे जानवरों में बड़ी संख्या में जीन इकठ्ठे होते गए हैं। इनमें से कई जीन सक्रिय हैं और शरीर के काम करने के लिए ज़रूरी पदार्थ (प्रोटीन) बनाते हैं। लेकिन जीनोम को ध्यान से देखें तो पाते हैं कि 2-20 प्रतिशत डीएनए का उपयोग शायद ही कभी होता हो। यह किसी भी आरएनए या प्रोटीन के लिए कोड नहीं करता। यह तो बस विकास या आनुवंशिक विरासत के कारण इकट्ठा होता गया है और मौजूद भर है। जीव विज्ञानी इसे जंक डीएनए (फालतू डीएनए) कहते हैं। (अनुमान है कि मानव जीनोम में लगभग 97 प्रतिशत आनुवंशिक अनुक्रम फालतू है)। इनमें से कई जीन्स में सक्रिय करने वाला प्रमोटर नदारद रहता है। अगर किसी तरीके से इन गैरकोड जीन्स को सक्रिय कर दिया जाए तो कोशिका कुछ अतिरिक्त कार्य कर सकती है।

जीन जागरण

ऐसा लगता है कि इन सुप्त जीन्स को सक्रिय कर लेने की क्षमता ही हाथियों में कम कैंसर होने का कारण है। इस बात को शिकागो विश्वविद्यालय के डॉ. विंसेट जे. लिंच और उनके समूह ने सेल रिपोट्र्स नामक पत्रिका में प्रकाशित किया है। (अधिक जानने के लिए इसे https://doi.org/10.1016/j.cellrep.2018.07.042पर पढ़ सकते हैं)। उन्होंने हाथी के जीनोम में एक सुप्त जीन LIF के लिए ज़ोंबी शब्द का उपयोग किया है। ज़ोंबी से क्या आशय है? हैती देश की लोककथा के अनुसार ज़ोंबी यानि काला जादू करके ज़िंदा की गई लाश, जिससे काम करवाया जा सके। (वैसे LIF जीन को कुम्भकर्ण जीन कहना ज़्यादा उचित होगा। कुम्भकर्ण ने वरदान मांगते समय गलती से इंद्रासन की जगह निद्रासन मांग लिया था। जिसके कारण वो महीनों सोता था और सिर्फ युद्ध करने के लिए जागता था। अलबत्ता, कुम्भकर्ण लाश नहीं था, वह तो बस सो रहा था!)

शोघकर्ताओं ने पाया कि हाथी के जीनोम में सुप्त LIF जीन कैंसररोधी प्रोटीन अणु P53 द्वारा सक्रिय हो जाता है। LIF (ल्यूकेमिया अवरोधक कारक) कोशिकाओं के डीएनए को क्षतिग्रस्त होने से रोकता है। यदि डीएनए क्षतिग्रस्त होता है या उसमें कोई विकार होता है तो कैंसर होने की संभावना रहती है। हाथी के जीनोम में LIF जीन की 10 प्रतियां होती हैं और मनुष्यों में एक प्रति होती है। यह जीन सक्रिय होकर LIF बनाता है जो शरीर में उन कोशिकाओं को तलाशता है जिनके डीएनए क्षतिग्रस्त हैं। यह कुछ अन्य प्रोटीन्स के साथ मिलकर उन क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को मार देता है। इस प्रक्रिया को प्रोटीन P53 द्वारा प्रेरित किया जाता है जिसका कोड TP53 जीन होता है। हाथी के पास TP53 की 20 प्रतियां होती हैं, मनुष्यों में इसकी तुलना में सिर्फ एक प्रति होती है। तो हाथियों ने ट्यूमर हटाने वाला जीन विकसित करके कैंसर के खतरे को कम कर दिया है।

यदि ज़ोंबी/कुम्भकर्ण LIF जीन को सक्रिय करके हाथी सरीखे जानवर कैंसर की संभावना को कम कर सकते हैं तो मनुष्यों को भी इस तरह की कोशिश करनी चाहिए। शिकागो टीम का पेपर सामने आने के बाद यह तो तय है कि कई समूह और शोधकर्ता इस दिशा में प्रयासरत होंगे। यह शोध कार्य लास्कर या नोबेल पुरस्कार का मुन्तज़िर है। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit :  https://www.thehindu.com/sci-tech/science/ih9v2n/article24780476.ece/alternates/FREE_660/26TH-SCIELEPHANTS

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