पाई (π) के कुछ रोचक प्रसंग – संकलन: ज़ुबैर

प्राथमिक कक्षाओं से ही वृत्त के क्षेत्रफल और परिधि मापन के लिए हमने पाई (π) का इस्तेमाल किया है। वास्तव में π किसी भी वृत्त की परिधि और व्यास का अनुपात है। यह एक अपरिमेय संख्या है, इसलिए इसे निश्चित भिन्न के रूप में नहीं लिखा जा सकता। इसकी बजाय, यह एक अंतहीन भिन्न है और इसके दशमलव के बाद के अंकों में दोहराव नहीं होता।

लेकिन इस अपरिमेय संख्या की खोज कैसे की गई? अध्ययन के हज़ारों वर्षों के बाद भी क्या इस संख्या में अभी भी कोई रहस्य छिपा है? आइए इस संख्या के उद्गम पर चर्चा करते हैं और देखते हैं कि क्या आज भी यह अपने गर्भ में कुछ रहस्य छिपाए है।

  1. π और पाइलिश भाषा

p को सबसे अधिक संख्या तक याद रखने का रिकॉर्ड भारत में वेल्लोर के राजीव मीणा के नाम दर्ज है। गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड के अनुसार उन्होंने 21 मार्च 2015 को π के दशमलव के बाद 70,000 अंक सुनाने का रिकॉर्ड बनाया है। इससे पहले यह रिकॉर्ड चीन के चाऊ लु के नाम दर्ज था जिन्होंने वर्ष 2005 में दशमलव के बाद 67,890 अंक मुंहज़बानी सुनाए थे।

निम्नलिखित पंक्तियों में प्रत्येक शब्द में अक्षरों की संख्या क्रमश: पाई के मान के अंकों की द्योतक है। प्रथम उदाहरण में पहले 10 अंकों का समावेश है जबकि दूसरे उदाहरण में पहले 31 अंक नज़र आते हैं।

1.        How I need a drink, alcoholic in nature, after the heavy lectures involving quantum mechanics!

2.         But a time I spent wandering in bloomy night;

Yon tower, tinkling chimewise, loftily opportune.

Out, up, and together came sudden to Sunday rite,

The one solemnly off to correct plenilune.

किसी ने तो इस शैली में 10,000 शब्दों का एक उपन्यास भी लिख डाला है।

एक अनधिकृत रिकॉर्ड अकीरा हरगुची के नाम पर भी दर्ज है जिन्होंने 2005 में π के मान को 1,00,000 दशमलव स्थानों तक और फिर हाल ही में एक वीडियो के माध्यम से 1,17,000 से भी अधिक दशमलव स्थानों तक प्रस्तुत कर दिखाया।

संख्या के प्रति कुछ उत्साही लोगों ने तो π के कई अंकों को याद करने के लिए मेमोरी एड्स का उपयोग किया है तो कई लोगों ने पाईफिलोलॉजी नेमोनिक तकनीक का इस्तेमाल कर इस संख्या को याद किया है। अक्सर, वे पद्यों का उपयोग करते हैं (जिसमें प्रत्येक शब्द में अक्षरों की संख्या क्रमश: π के अंकों से मेल खाती है)। इसे पाइलिश शैली भी कहा जाता है। ऐसे पद्यों के कुछ उदाहरण बॉक्स में देखिए।

2. अंकों में दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि

π एक अनंत संख्या है, हम कभी भी इसके सारे अंकों का निर्धारण नहीं कर सकते। फिर भी, खोज के बाद से दशमलव स्थानों की संख्या तेज़ी से बढ़ी है। 2000 ई.पू. में बेबीलोन के लोगों ने इसे ‘तीन सही एक बटा आठ’ के रूप में उपयोग किया, जबकि प्राचीन चीनी लोगों और ओल्ड टेस्टामेंट के रचयिता 3 के पूर्णांक का उपयोग करके खुश थे। 1665 में, आइज़ैक न्यूटन ने 16 दशमलव स्थानों तक π की गणना की। 1719 तक, फ्रांसीसी गणितज्ञ थॉमस फेंटेट डी लैगी ने 127 दशमलव स्थानों तक π की गणना की थी।

कंप्यूटरों के आने के बाद से π के ज्ञान में काफी सुधार हुआ। 1949 और 1967 के बीच, π के ज्ञात दशमलव स्थानों की संख्या 5,00,000 हो गई। पिछले वर्ष, स्विस कंपनी डेक्ट्रिस लिमिटेड के वैज्ञानिक पीटर ट्रूएब ने π के 2,24, 59,15,77,18, 361 अंकों की गणना के लिए एक विशेष कंप्यूटर प्रोग्राम का उपयोग किया।

3. हाथों से π की गणना करना

जो लोग पुरानी तकनीक से  की गणना करना चाहते हैं, वे एक स्केल, एक गोलाकार चूड़ी, धागे के एक टुकड़े की मदद से यह काम कर सकते हैं या चांदे और पेंसिल का इस्तेमाल कर सकते हैं। चूड़ी विधि की सफलता के लिए आवश्यक होगा कि चूड़ी एकदम गोलाकार हो, और सटीकता इस बात पर निर्भर करेगी कि उसकी परिधि पर धागे को कितनी सही तरह से लपेटा गया है। चांदे की मदद से वृत्त बनाकर उसका व्यास नापने में काफी निपुणता और सटीकता की आवश्यकता होती है।

ज़्यादा सटीक गणना ज्यामिति की मदद से की जा सकती है। इसमें एक वृत्त को पिज़्ज़ा की फांक की तरह कई खंडों में विभाजित किया जाता है। फिर, एक सीधी रेखा की लंबाई की गणना की जाती है जो हर एक खंड को समद्विबाहु त्रिभुज में बदल दे। सभी खंडों को जोड़ने पर π का अनुमान लगाया जाता है। जितनी अधिक फांक बनाएंगे, π का मान उतना ही सटीक होगा।

4. π की खोज

प्राचीन बेबीलोन के लोगों को आज से लगभग 4000 साल पहले p जैसे एक अनुपात के अस्तित्व का पता था। 1900 ई.पू. से 1680 ई.पू. के बीच की एक बेबीलोनी तख्ती पर π की गणना 3.125 देखी गई है। 1650 ईसा पूर्व के प्रसिद्ध गणितीय दस्तावेज़, रिंद गणितीय पैपायरस, में p को 3.1605 दर्ज किया गया है। किंग जेम्स बाइबल में π की संख्या को क्यूबिट्स में दर्शाया गया है। क्यूबिट उस समय दूरी नापने की इकाई थी जो लगभग एक हाथ के बराबर होती थी। आर्किमिडीज़ (287-212 ई.पू.) ने पायथागोरस प्रमेय का उपयोग करके π की गणना की थी।

5. π का चिन्ह और नामकरण

वृत्त के एक स्थिरांक के रूप में स्थापित होने से पहले, गणितज्ञों को π की बात करते हुए काफी कुछ समझाना पड़ता था। पुरानी गणित की किताबों में π को निम्न वाक्य में व्यक्त किया जाता था: ‘quantitas in quam cum multiflicetur diameter, proveniet circumferencia’, अर्थात ‘वह संख्या, जिसमें वृत्त के व्यास का गुणा करने पर, परिधि प्राप्त होती है।’

यह संख्या तब काफी प्रचलित हुई जब स्विस बहुविद् लियोनहार्ड यूलर ने 1737 में त्रिकोणमिति में इसका उपयोग किया। हालंकि इसका ग्रीक संकेत यूलर ने नहीं दिया था। π का पहला उल्लेख गणितज्ञ विलियम जोन्स ने 1706 में अपनी पुस्तक में किया था। जोन्स ने संभवत: π चिन्ह का इस्तेमाल वृत्त की परिधि को दर्शाने के लिए किया था।

देखा जाए तो π काफी अजीब संख्या है। गणितज्ञों ने समय-समय पर इस संख्या के कई रहस्यों पर से पर्दा उठाया है लेकिन अभी भी कई सवालों के जवाब मिलना बाकी है। जैसे, गणितज्ञ अभी भी नहीं जानते कि क्या π तथाकथित सामान्य संख्याओं के समूह में है यानी क्या π में विभिन्न अंकों की आवृत्ति बराबर है या क्या विभिन्न अंक इसमें बराबर बार प्रकट होते हैं। 2016 में आरकाइव्स में प्रकाशित शोध पत्र में पीटर ट्रूएब के अनुसार पहले 2.24 खरब अंकों में 0 से 9 अंकों की आवृत्ति देखें तो लगता है कि π एक सामान्य संख्या है। किंतु इस बात को गणितीय ढंग से प्रमाणित करके ही पक्का कहा जा सकता है।

6. बहुगुणी है π

अट्ठारवीं सदी के एक गणितज्ञ जोहान हाइरिश लैम्बर्ट ने π की अपरिमेयता का प्रमाण दिया था। आगे चलकर यह भी साबित किया गया कि यह न सिर्फ अपरिमेय है बल्कि ट्रांसेन्डेंटल भी है। गणित में ट्रांसेन्डेंटल संख्या का मतलब होता है कि वह किसी ऐसी समीकरण का उत्तर नहीं हो सकता जिसमें परिमेय संख्याएं हों।

7. π का विरोध

जहां एक ओर π को लेकर कई गणितज्ञ आसक्त हैं, वहीं दूसरी ओर इसको लेकर प्रतिरोध भी है। कुछ लोगों का तर्क है कि पाई एक व्युत्पन्न संख्या है, और टाऊ (t, दो π के बराबर) एक अधिक सहज अपरिमेय संख्या है।

τ मैनिफेस्टो के लेखक माइकल हार्टल के अनुसार τ सीधे तौर पर परिधि को त्रिज्या से जोड़ता है, जिसका अधिक गणितीय मूल्य है। τ त्रिकोणमितीय गणनाओं में भी बेहतर काम करता है, उदाहरण के तौर पार टाऊ/4 रेडियन वह कोण है जो वृत्त के एक चौथाई हिस्से को घेरता है।

8. π दिवस

1988 में, भौतिक विज्ञानी लैरी शॉ ने सैन फ्रांसिस्को स्थित विज्ञान संग्रहालय में π-दिवस की शुरुआत की। हर साल, 14 मार्च (3/14) π-दिवस मनाया जाता है। उद्देश्य गणित और विज्ञान में रुचि बढ़ाना है। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit :   http://www.historyof.net/wp-content/uploads/2012/05/asciipi.jpg

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