बिजली आपूर्ति में गुणवत्ता की समस्या – आदित्य चुनेकर और श्वेता कुलकर्णी

प्रयास (ऊर्जा समूह) ने उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के अर्ध शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के 3000 घरों में बिजली के अंतिम उपयोग के पैटर्न को समझने के लिए फरवरी-मार्च 2019 में एक सर्वेक्षण किया था। यहां उस सर्वेक्षण के आधार पर बिजली आपूर्ति की गुणवत्ता पर परिवारों की समझ और उनके बिजली के उपयोग पर इसके प्रभाव पर चर्चा की गई है। इसी श्रंखला के आगामी लेखों में ऊर्जा से सम्बंधित अन्य मुद्दों, जैसे वातानुकूलन, खाना पकाना, प्रकाश व्यवस्था आदि की चर्चा की जाएगी।

वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) द्वारा बिजली की आपूर्ति व सेवा की गुणवत्ता घरेलू उपकरणों के उपयोग को काफी प्रभावित करती है; ये वे उपकरण हैं जो परिवार के जीवन स्तर में सुधार ला सकते हैं। बिजली आपूर्ति की घटिया क्वालिटी (जैसे बार-बार बिजली जाना और वोल्टेज में उतार-चढ़ाव) उपकरणों को नुकसान पहुंचा सकती है या उनकी आयु कम कर सकती है। घटिया क्वालिटी का एक परिणाम यह होता है कि कई घरों में सौर लैंप, इनवर्टर या वोल्टेज स्टेबलाइज़र्स वगैरह में निवेश किया जाता है। अन्य परिवार या तो उपकरणों का उपयोग कम कर देते हैं या फिर खरीदते ही नहीं।

भारत में ग्रामीण विद्युतीकरण कार्यक्रमों के ज़रिए लगभग सभी घरों में बिजली पहुंचाने में सफलता मिल चुकी है। जैसा कि विद्युत मंत्रालय के आगामी वितरण योजना के प्रारूप में परिलक्षित होता है, अब चर्चा विश्वसनीय और अच्छी गुणवत्ता की आपूर्ति प्रदान करने की दिशा में हो रही है ताकि सभी को चौबीसों घंटे बिजली उपलब्ध कराई जा सके। हमारा सर्वेक्षण बिजली आपूर्ति की गुणवत्ता को लेकर परिवारों के एहसास पर केंद्रित है क्योंकि इसका असर उपकरणों की खरीद और उपयोग के निर्णयों पर होता है। हम 2015 से अपने विद्युत आपूर्ति निगरानी कार्यक्रम (ESMI) के तहत भारत भर में लगभग 400 स्थानों पर वास्तविक बिजली आपूर्ति की गुणवत्ता की निगरानी भी करते रहे हैं। सभी स्थानों से प्राप्त मिनट-वार डैटा और उनके विश्लेषण के आधार पर तैयार रिपोर्ट सार्वजनिक रूप से www.watchyourpower.org पर उपलब्ध है।

महाराष्ट्र सभी घरों तक बिजली पहुंचाने में पहुंचाने में अग्रणी रहा है, जबकि उत्तर प्रदेश हाल ही में इस श्रेणी में शामिल हुआ है। 2011 की जनगणना के अनुसार, महाराष्ट्र में लगभग 84 प्रतिशत परिवार प्रकाश के प्राथमिक रुाोत के रूप में बिजली का उपयोग करते थे, जबकि उत्तर प्रदेश में मात्र 37 प्रतिशत। लगभग यही स्थिति हमारे नमूना सर्वेक्षण में भी सामने आई। महाराष्ट्र में हमारे द्वारा चयनित परिवारों के विद्युतीकरण का औसत वर्ष 1994 है जबकि उत्तर प्रदेश में 2006 है। उत्तर प्रदेश में लगभग 45 प्रतिशत सर्वेक्षित परिवारों को 2011 के बाद विद्युतीकृत किया गया है।

आपूर्ति के घंटे प्रदाय की गुणवत्ता का एक प्रमुख मापदंड है। सर्वेक्षित घरों में आपूर्ति के घंटे उत्तर प्रदेश की तुलना में महाराष्ट्र में अधिक थे। महाराष्ट्र में औसत दैनिक आपूर्ति लगभग 22 घंटे और उत्तर प्रदेश में 15 घंटे रही। वैसे इस संदर्भ में विभिन्न परिवारों के बीच काफी विविधता भी देखी गई (तालिका देखें)। महाराष्ट्र में अर्ध शहरी क्षेत्र के परिवारों को ग्रामीण परिवारों की तुलना में लगभग 40 मिनट अधिक आपूर्ति मिलती है, जबकि उत्तर प्रदेश में यह अंतर लगभग 2 घंटे का है।

बिजली आपूर्ति की कुल अवधि के बराबर महत्व बिजली कटौती की प्रकृति का भी होता है। बार-बार बिजली जाए, तो लाइटिंग उपकरणों और मोटरों को नुकसान पहुंच सकता है, जिनमें आजकल काफी इलेक्ट्रॉनिक पुर्ज़े लगे होते हैं। उत्तर प्रदेश में लगभग 42-47 प्रतिशत परिवारों ने बताया बिजली कई मर्तबा जाती है और अप्रत्याशित ढंग से जाती है, जबकि महाराष्ट्र में यह संख्या लगभग 26-28 प्रतिशत थी। बिजली गुल होने की अप्रत्याशित प्रकृति से परिवार के लिए उपकरणों के उपयोग की योजना बनाना मुश्किल हो जाता है।

वोल्टेज भी बिजली आपूर्ति की गुणवत्ता का एक और मापदंड है जिसमें वोल्टेज में उतार-चढ़ाव, असंतुलन, अचानक घटना-बढ़ना जैसे कई मुद्दे शामिल हो सकते हैं। उपभोक्ताओं को वोल्टेज की समस्या का अनुभव प्राय: उतार-चढ़ाव के रूप में होता है। ऐसे उतार-चढ़ाव उपकरणों को गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं। यूपी में लगभग 50-60 प्रतिशत घरों में वोल्टेज में उतार-चढ़ाव का अनुभव हुआ, जबकि महाराष्ट्र में लगभग 24-26 प्रतिशत। दोनों राज्यों में अर्ध-शहरी और ग्रामीण घरों में वोल्टेज में उतार-चढ़ाव का अनुभव हुआ है।

दोनों राज्यों में ग्रामीण व अर्ध-शहरी दोनों क्षेत्रों में वोल्टेज में उतार-चढ़ाव का अनुभव समान रूप से किया गया है। आपूर्ति की क्वालिटी की समस्या के कारण परिवारों को क्षतिग्रस्त उपकरणों की मरम्मत के अलावा बिजली बैकअप या इसी तरह के वैकल्पिक इंतज़ाम पर पैसा खर्च करना पड़ता है। उत्तर प्रदेश में खराब आपूर्ति का एक प्रमाण यह है कि वहां वैकल्पिक प्रकाश व्यवस्था ज़्यादा घरों में नज़र आती है और उपकरण क्षति के मामले भी ज़्यादा दिखाई देते हैं। लगभग 34 प्रतिशत घरों, जिनमें निम्न आय वर्ग के काफी घऱ हैं, में अभी भी वैकल्पिक व्यवस्था के रूप में कैरोसीन की चिमनी का उपयोग होता है। ये चिमनियां घरों के अंदर प्रदूषण और दुर्घटनाओं का कारण बन सकती हैं। इसके अलावा, 38 प्रतिशत अन्य परिवार बैटरी युक्त सोलर लैंप या एलईडी बल्ब का उपयोग करते हैं। लगभग 47 प्रतिशत घरों में खराब आपूर्ति के कारण किसी न किसी प्रकार के उपकरण के नुकसान की सूचना है। 28 प्रतिशत घरों (अधिकतर मध्यम व उच्च आय) में उपकरणों की सुरक्षा के लिए वोल्टेज स्टेबलाइज़र्स का उपयोग होता है जबकि लगभग 31 प्रतिशत ने बिजली कटौती की समस्या से निपटने के लिए इनवर्टर खरीदा है। दूसरी ओर, महाराष्ट्र में सर्वेक्षित घरों में इनवर्टर और स्टेबलाइज़र्स 5 प्रतिशत से भी कम परिवारों के पास हैं और मात्र 6 प्रतिशत घरों में खराब आपूर्ति से उपकरणों का नुकसान हुआ है।

विश्वसनीय और अच्छी गुणवत्तापूर्ण आपूर्ति प्रदान करने की डिस्कॉम की क्षमता में योगदान करने वाले कारकों में से एक उपभोक्ताओं से राजस्व की वसूली है, जिसका उपयोग वितरण नेटवर्क को मज़बूत करने और रख-रखाव के लिए किया जा सकता है। सही और समय पर मीटर वाचन और बिल वितरण उपभोक्ताओं में विश्वास बनाने में मदद करता है, तथा चोरी और छेड़छाड़ का पता लगने पर राजस्व में सुधार होता है। ग्रामीण उत्तर प्रदेश में लगभग 24 प्रतिशत सर्वेक्षित घरों में मीटर नहीं है, जबकि अन्य 12 प्रतिशत में गैर-कामकाजी मीटर हैं। अर्ध-शहरी क्षेत्रों में स्थिति बेहतर है जहां लगभग 95 प्रतिशत सर्वेक्षित घरों में कामकाजी मीटर हैं। बिलिंग के मामले में, लगभग 82 प्रतिशत अर्ध-शहरी परिवारों को नियमित बिजली बिल प्राप्त होता है, जबकि ग्रामीण परिवारों के लिए यह संख्या केवल 42 प्रतिशत है। दूसरी ओर महाराष्ट्र में, अर्ध-शहरी और ग्रामीण दोनों घरों में लगभग 98 प्रतिशत में मीटर हैं और उन्हें नियमित रूप से बिल प्राप्त होते हैं।

आपूर्ति की गुणवत्ता डिस्कॉम के प्रति परिवारों की संतुष्टि में झलकती है।  उत्तर प्रदेश के केवल 54 प्रतिशत ग्रामीण और 61 प्रतिशत अर्ध-शहरी परिवार अपने डिस्कॉम से संतुष्ट थे, जबकि महाराष्ट्र में यह संख्या लगभग 80 प्रतिशत है।

हालांकि महाराष्ट्र उत्तर प्रदेश की तुलना में बेहतर है, लेकिन सर्वेक्षण से पता चलता है कि दोनों राज्यों में गुणवत्ता की दिक्कतें मौजूद हैं। घरों में बिजली का अधिक सार्थक उपयोग संभव बनाने के लिए सेवा की गुणवत्ता में सुधार के उपाय आवश्यक हैं।

अगले आलेख में, घरों में बिजली के सबसे बुनियादी उपयोग, प्रकाश व्यवस्था की बात करेंगे। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.iea.org/media/news/2018/181213WEOElectricityCommentary.jpg

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