मोटे लोगों में कोविड-19 अधिक घातक क्यों?

ब से कोविड-19 महामारी फैली है, कई अध्ययन बता चुके हैं कि कोविड-19 के गंभीर रूप से पीड़ित मरीज़ों में मोटापे से ग्रस्त लोगों की संख्या सबसे अधिक है। हाल में हुए कुछ अध्ययन भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि थोड़े से अधिक वज़न वाले लोगों में भी कोविड-19 के संक्रमण का अधिक जोखिम होता है। मसलन ओबेसिटी रिव्यू में प्रकाशित एक मेटा-विश्लेषण कहता है कि कोविड-19 के मरीज़ों में, सामान्य वज़न वाले लोगों की तुलना में मोटे लोगों के अस्पताल में भर्ती होने की संभावना 113 प्रतिशत अधिक, आईसीयू में पहुचंने की संभावना 74 प्रतिशत अधिक, और मृत्यु की संभावना 48 प्रतिशत अधिक थी।

वैसे तो, सामान्य वज़न वाले लोगों की तुलना में मोटापे के शिकार लोगों में दिल की समस्या, फेफड़े सम्बंधित समस्या और मधुमेह जैसी अन्य बीमारियां होने की संभावना अधिक ही होती है। ये बीमारियां अपने आप में ही कोविड-19 के जोखिम को बढ़ाती हैं। मोटे लोगों में चयापचय सिंड्रोम होने की संभावना भी रहती है, जिसमें रक्त शर्करा का स्तर, वसा का स्तर, या दोनों का स्तर असामान्य रहता है और उच्च रक्तचाप की समस्या हो जाती है जिससे जोखिम और बढ़ता है। लेकिन सिर्फ और सिर्फ मोटापे से शिकार लोगों में कोविड-19 अधिक गंभीर रूप ले सकता है। ऐसा मोटापे की वजह से शरीर की कुछ प्रणालियों पर पड़े प्रभाव के कारण होता है। इनमें प्रतिरक्षा तंत्र की दुर्बलता, खून के थक्के जमने की प्रवृत्ति शामिल हैं जो कोविड-19 को गंभीर बना सकती हैं।

दरअसल एक तो होता यह है कि पेट की अधिक चर्बी डायफ्राम को ऊपर धकेलती है जिसके कारण फेफड़ों पर दबाव पड़ता है और वायु प्रवाह में बाधा उत्पन्न होती है। इससे फेफड़ों का आयतन कम हो जाता है और फेफड़ों के निचले हिस्से की वायु थैलियां बंद हो जाती हैं। फेफड़ों के ऊपरी हिस्से की तुलना में निचले हिस्से में ऑक्सीजन के लिए अधिक रक्त आता है, लेकिन मोटापे के कारण वहां वायु कम पहुंच रही होती है। ऐसे में कोविड-19 का संक्रमण तेज़ी से गंभीर रूप से ले लेता है।

इसके अलावा मोटे लोगों के रक्त में थक्का बनने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है, जो संक्रमण की गंभीरता में और अधिक इज़ाफा करते हैं। सामान्यत: रक्त वाहिकाओं की आंतरिक सतह की कोशिकाएं रक्त का थक्का ना बनने देने के संकेत देती हैं। लेकिन कोविड-19 का संक्रमण होने पर संभवत: वायरस इन कोशिकाओं को क्षतिग्रस्त कर देते हैं, और रक्त को गाढ़ा करने वाला तंत्र सक्रिय हो जाता है।

मोटे लोगों का प्रतिरक्षा तंत्र भी कमज़ोर होता है। दरअसल, तिल्ली, अस्थि मज्जा और थाइमस जैसे अंगों में, जहां प्रतिरक्षा कोशिकाएं बनती हैं और सहेजी जाती हैं, वहां वसा कोशिकाएं घुसपैठ कर लेती हैं। फलस्वरूप प्रतिरक्षा ऊतकों की जगह वसा ऊतक ले लेते हैं, और प्रतिरक्षा कोशिकाओं की संख्या में कमी आती है प्रतिरक्षा प्रणाली कम प्रभावी हो जाती है। यह देखा गया है कि फ्लू का टीका दिए जाने के बाद भी सामान्य वज़न वाले लोगों की तुलना में मोटे लोगों में इसके संक्रमण की संभावना दोगुनी होती है। यानी कोविड-19 के टीकों के परीक्षण में मोटे लोगों को भी शामिल किया जाना चाहिए, क्योंकि ये उन पर कम प्रभावी हो सकते हैं।

इसके अलावा मोटापे से शिकार लोग जीर्ण, निम्न स्तर की शोथ से पीड़ित रहते हैं। वसा कोशिकाएं शोथ पैदा करने वाले साइटोकाइन संदेशवाहक रसायन स्रावित करती हैं, और प्रतिरक्षा कोशिकाएं मृत वसा कोशिकाओं का सफाया करती हैं। ये दोनों मिलकर साइटोकाइन्स की गतिविधि को बेलगाम कर देते हैं जिसके कारण कोविड-19 का संक्रमण गंभीर रूप ले सकता है।(स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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