टार्डिग्रेड का सुरक्षा कवच है प्रतिदीप्ति

सूक्ष्मजीव टार्डिग्रेड (या जलीय भालू) के बारे में अब तक हमें यह तो पता था कि ये जीवन के लिए घातक परिस्थितियों जैसे अत्यधिक गर्मी, विकिरण और अंतरिक्ष के निर्वात में भी जीवित रह सकते हैं। और अब, वैज्ञानिकों को टार्डिग्रेड की एक ऐसी प्रजाति मिली है जो इतने घातक अल्ट्रावायलेट विकिरण को भी झेल सकती जिनका उपयोग उन वायरस और बैक्टीरिया को मारने के लिए किया जाता है जिनका खात्मा आसानी से नहीं किया जा सकता।

दरअसल बैंगलुरु स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के शोधकर्ता टार्डिग्रेड्स पर अत्यंत कठोर परिस्थितियों के प्रभाव देख रहे थे। ये टार्डिग्रेड्स उन्होंने इंस्टीट्यूट के परिसर से ही एकत्रित किए थे। उनकी प्रयोगशाला में कीटाणुओं को नष्ट करने के लिए अल्ट्रावायलेट (यूवी) लैंप भी था। तो उन्होंने टार्डिग्रेड्स पर इसका प्रभाव भी देखा। उन्होंने पाया कि प्रति वर्ग मीटर एक किलोजूल यूवी विकिरण से लगातार 15 मिनट का संपर्क बैक्टीरिया और गोल कृमि को सिर्फ पांच मिनट में मार देता है और हिप्सिबियस एग्ज़ेमप्लेरिस प्रजाति के अधिकांश टार्डिग्रेड्स भी 15 मिनट के संपर्क से मारे गए। लेकिन जब विकिरण की इतनी ही मात्रा टार्डिग्रेड्स की लाल-भूरे रंग की एक अज्ञात प्रजाति पर डाली गई तो सब के सब जीवित बचे रहे। और तो और, जब विकिरण की मात्रा चार गुना बढ़ा दी तब भी लगभग 60 प्रतिशत से अधिक लाल-भूरे टार्डिग्रेड्स 30 दिन से अधिक समय तक जीवित रहे।

इस परिणाम के आधार पर शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि उन्हें टार्डिग्रेड्स की एक नई प्रजाति मिली है। यह पैरामैक्रोबायोटस जीनस की सदस्य है। शोधकर्ता समझना चाहते थे कि दीवार पर लगी काई में रहने वाली टार्डिग्रेड्स की यह नई प्रजाति इतने घातक यूवी विकिरण के बाद भी जीवित कैसे रह पाती है। इसकी जांच के लिए उन्होंने इंवर्टेड फ्लोरेसेंट माइक्रोस्कोप का उपयोग किया। देखा गया कि लाल-भूरे रंग के ये टार्डिग्रेड यूवी प्रकाश में नीले रंग के हो गए थे। बायोलॉजी लैटर्स में शोधकर्ता बताते हैं कि टार्डिग्रेड्स की त्वचा के नीचे मौजूद फ्लोरेसेंट रंजक यूवी प्रकाश को हानिरहित नीली रोशनी में बदल देते हैं। और जिन पैरामैक्रोबायोटस टार्डिग्रेड्स में कम फ्लोरोसेंट रंजक थे उनकी यूवी प्रकाश के संपर्क में आने के लगभग 20 दिन बाद मृत्यु हो गई।

इसके बाद, शोधकर्ताओं ने टार्डिग्रेड्स से फ्लोरोसेंट रंजक निकाले और एच. एग्ज़ेमप्लेरिस टार्डिग्रेड्स और कई सीनोरेब्डाइटिस एलिगेंस कृमियों पर इन रंजकों का लेप किया और फिर इन्हें यूवी प्रकाश में रखा। पाया गया कि जिन जीवों को फ्लोरेसेंट रंजक का सुरक्षा कवच चढ़ाया गया था वे ऐसे सुरक्षा कवच रहित जीवों की तुलना में यूवी प्रकाश में दोगुना समय तक जीवित रहे। इन परिणामों से शोधकर्ता संभावना जताते हैं कि दक्षिण भारत के गर्म दिनों के तीव्र यूवी विकिरण से बचने के लिए टार्डिग्रेड्स में फ्लोरेसेंस सुरक्षा विकसित हुई होगी।(स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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