प्लैनेट-9 की तलाश में एक नई तकनीक का उपयोग

न दिनों खगोलविद दूरस्थ सौर मंडल की खोजबीन के लिए ‘शिफ्टिंग और स्टैकिंग’ तकनीक का पुनरीक्षण कर रहे हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि इसकी मदद से प्लूटो की कक्षा से परे के सौर मंडल को भी देखा जा सकता है।  

इस तकनीक में अंतरिक्ष दूरबीन को संभावित कक्षा के मार्गों पर धीरे-धीरे सरकाया (शिफ्ट किया) जाता है और इस तरह प्राप्त तस्वीरों की एक के ऊपर थप्पी (स्टैक) जमाई जाती है ताकि उनकी रोशनी को एक छवि में संकलित किया जा सके। इस तकनीक का उपयोग पहले भी हमारे सौर मंडल के ग्रहों के चंद्रमाओं की खोज करने के लिए किया जा चुका है। शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि इस तकनीक की मदद से प्लैनेट-9 यानी नौंवे ग्रह और अन्य दूरस्थ वस्तुओं को देखा जा सकेगा। 

येल युनिवर्सिटी में खगोल शास्त्र की पीएचडी छात्र और इस अध्ययन की प्रमुख मैलेना राइस इस तकनीक को काफी महत्वपूर्ण मानती हैं। राइस और उनके सहयोगी ग्रेग लाफलिन ने नासा के ट्रांज़िटिंग एक्सोप्लेनेट सर्वे सैटेलाइट (टीईएसएस) द्वारा ली गई छवियों को स्टैक किया है। गौरतलब है कि टीईएसएस का उपयोग पृथ्वी की कक्षा से बाह्र दुनिया का पता लगाने के लिए किया जाता है।  

एक परीक्षण में शोधकर्ताओं ने तीन अज्ञात नेप्च्यून-पार पिंडों के कमज़ोर संकेत शिफ्टेड और स्टैक्ड छवियों में देखे। ये पिंड नेपच्यून की कक्षा से परे सूर्य का चक्कर लगा रहे थे। इसके बाद वैज्ञानिकों ने आकाश की दो दूरस्थ पट्टियों की बेतरतीब खोज की। इस दौरान उन्होंने 17 नए नेप्च्यून-पार उम्मीदवार खोज निकाले।

राइस के अनुसार इन 17 में से एक पिंड भी वास्तविक हुआ तो हमें बाह्य सौर मंडल की गतिशीलता और नौंवे ग्रह के संभावित गुणों को समझने में मदद मिल सकती है। वर्तमान में शोधकर्ता धरती स्थित दूरबीन से प्राप्त छवियों का उपयोग करके इन 17 पिंडों की पुष्टि करने का प्रयत्न कर रहे हैं। शोधकर्ताओं ने नेप्च्यून-पार पिंडों की विचित्र कक्षाओं से बाहरी सौर मंडल का अनुमान लगाया है। उनका निष्कर्ष है कि उस स्थान पर ढेर सारे छोटे-छोटे पिंड हैं और ये इस तरह झुंडों में व्यवस्थित है कि लगता है कि वहां कोई बड़ा पिंड स्थित है जिसकी वजह से यह स्थिति बनी है। यह पिंड पृथ्वी से 5-10 गुना बड़ा है और पृथ्वी की तुलना में सूर्य से सैकड़ों गुना दूर है। वैसे अन्य खगोल शास्त्रियों को लगता है कि यही प्रभाव छोटे-छोटे पिंडों के मिले-जुले असर से भी हो सकता है।

इस अध्ययन को दी प्लैनेटरी साइंस जर्नल ने स्वीकार कर लिया है। राइस ने अपने निष्कर्ष अमेरिकन एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी डिवीज़न फॉर प्लैनेटरी साइंसेज़ की ऑनलाइन आयोजित वार्षिक बैठक में प्रस्तुत किया है।(स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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