पृथ्वी पर कुल कितने टी. रेक्स हुए?

जुरासिक पार्क फिल्म ने टी. रेक्स को घर-घर में पहुंचा दिया लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि कुल मिलाकर कितने टायरेनोसॉरस रेक्स (टी. रेक्स) पृथ्वी पर हुए होंगे? साइंस पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन बताता है कि 20 लाख सालों के अस्तित्व के दौरान कुल मिलाकर तकरीबन ढाई अरब टी. रेक्स इस पृथ्वी पर रहे होंगे।

यह तो हम जानते ही हैं कि टी. रेक्स के जीवाश्म दुर्लभ हैं, लेकिन सवाल था कि कितने दुर्लभ? और यह पता लगाने के लिए यह पता होना ज़रूरी है कि वास्तव में पृथ्वी पर कितने टी. रेक्स जीवित रहे थे।

इसलिए कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के जीवाश्म विज्ञानी चार्ल्स मार्शल और उनके साथियों ने पहले क्रेटेशियस काल के दौरान पृथ्वी रहने वाले टी. रेक्स की संख्या पता लगाई। ऐसा उन्होंने आधुनिक जीवों की गणना के लिए इस्तेमाल की जाने वाली विधि की मदद से किया। इसमें किसी जीव के शरीर के द्रव्यमान और जिस भौगोलिक क्षेत्र में वे रहते हैं उसके फैलाव के आधार पर उनके जनसंख्या घनत्व का अनुमान लगाया जाता है। पारिस्थितिकी के डेमथ के नियम के अनुसार किसी जीव के शरीर का द्रव्यमान जितना अधिक होगा, उस प्रजाति का औसत जनसंख्या घनत्व उतना कम होगा। यानी जितना बड़ा जानवर होगा, कुल संख्या उतनी ही कम होगी। जैसे, किसी एक क्षेत्र में चूहों की तुलना में हाथी कम संख्या में होंगे।

शोधकर्ताओं ने पहले तो वर्तमान उत्तरी अमेरिका में टी. रेक्स के कुल फैलाव क्षेत्र का अनुमान लगाया, फिर इन आंकड़ों को टी. रेक्स के शरीर के द्रव्यमान के साथ रखकर गणना की और पाया कि किसी एक कालखंड में लगभग 20,000 टी. रेक्स पृथ्वी पर जीवित रहे होंगे। यानी उस कालखंड में कैलिफोर्निया के बराबर क्षेत्र में लगभग 3800 टी. रेक्स रहे होंगे, या वाशिंगटन डीसी बराबर क्षेत्र में महज़ दो टी. रेक्स विचरण करते होंगे।

गणना कर उन्होंने पाया कि विलुप्त हो चुके टी. रेक्स की लगभग 1,27,000 पीढ़ियां पृथ्वी पर जीवित रही थीं। इस आधार पर उन्होंने अनुमान लगाया कि पूरे अस्तित्व काल के दौरान पृथ्वी पर लगभग ढाई अरब टी. रेक्स थे। और इनमें से केवल 32 वयस्क टी. रेक्स अश्मीभूत अवस्था में मिले हैं; यानी आठ करोड़ टी. रेक्स में से सिर्फ एक टी. रेक्स जीवाश्म मिला है। इससे पता चलता है कि अश्मीभूत होने की संभावना बहुत कम है, यहां तक कि बड़े मांसाहारी जीवों के लिए भी।

आंकड़े के अनुसार जीवाश्म मिलना दुर्लभ है। जब टी. रेक्स जैसे अधिक संख्या में पाए जाने वाले जीवों के जीवाश्म इतनी कम संख्या में हैं तो वे प्रजातियां जो टी. रेक्स की तुलना में बहुत कम संख्या में रही होंगी वे तो शायद ही संरक्षित हो पाई होंगी। और पूर्व में पृथ्वी पर क्या था उसका एकदम सीधा प्रमाण तो जीवाश्म ही देते हैं।

अन्य शोधकर्ताओं का सुझाव है कि जीवित प्रजातियों पर इस तरह की गणना करके देखना चाहिए कि ये अनुमान कितने सटीक हैं। इसके अलावा, मैमथ, निएंडरथल और खूंखार भेड़ियों जैसी विलुप्त प्रजातियों, जिनके जीवाश्म प्रचुरता से उपलब्ध हैं, उनका तुलनात्मक अध्ययन करके पूर्व के पारिस्थितिक तंत्र को भी बेहतर ढंग से समझा जा सकता है। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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