कोविड-19 वायरस का आणविक विश्लेषण – डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन, सुशील चंदानी

स्कूल के दिनों की सुखद यादों में हमें अक्सर परख नलियों, बुन्सन बर्नर की मदद से किए गए रसायन विज्ञान के प्रयोग भी याद आते हैं। रसायन विज्ञान अणुओं के गुणों का अध्ययन है। हर सजीव या निर्जीव चीज़ अणुओं से बनी होती है। लेकिन स्कूल में पढ़ाए गए साधारण रसायन, जैसे हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (जिसमें दो परमाणु होते हैं – एक हाइड्रोजन; एक क्लोरीन), जैविक रसायन विज्ञान की जटिलताओं के सामने बौने पड़ जाते हैं। किसी प्रोटीन अणु में हज़ारों परमाणु हो सकते हैं।

अणुओं का अनुरूपण

रासायनिक सिद्धांतों के बढ़ते ज्ञान के कारण ‘परख नली’ से आगे बढ़कर अणुओं का सैद्धांतिक अध्ययन, उनकी संरचना और अन्य अणुओं से उनकी परस्पर क्रिया का अध्ययन संभव हो गया है। उदाहरण के लिए जिस तरह अनुरूपण (सिमुलेशन) गेम में कंप्यूटर के पर्दे पर विमान के उड़ने-उतरने का अनुरूपण किया जाता है, उसी तरह जटिल जैविक अणुओं की परस्पर क्रिया का भी पर्याप्त सटीकता के साथ अनुरूपण किया जा सकता है। अनुरूपण चाहे विमान की उड़ान का हो या अणुओं का, अनुरूपण की गणितीय विधियों को भौतिकी के मूलभूत नियमों से जोड़ा जाता है।

देखा जाए तो कोई भी प्रोटीन एक-दूसरे से जुड़े अमीनो एसिड (20 अमीनो एसिड, जिनमें से प्रत्येक अमिनो एसिड 10 से 27 परमाणुओं से बना होता है) की एक सीधी शृंखला ही तो है, जो बड़े करीने से एक अद्वितीय आकार में तह की गई होती है। प्रत्येक अमीनो एसिड पर आवेश (धनात्मक, ऋणात्मक, उदासीन) या उसके जुड़ने (या चिपकने) की क्षमता भिन्न होती है। अमीनो एसिड की इस शृंखला के कुछ हिस्से अणु की गहराई में दबे होते हैं। और बाकी हिस्से सतह पर होते हैं। सतह पर मौजूद अमीनो एसिड ही अन्य प्रोटीन्स से लेन-देन करते हैं – ये कोई संरचना बनाने, ग्राही तथा एंटीबॉडी आदि से जुड़ने के लिए महत्वपूर्ण हैं।

अब हम वास्तविक दुनिया का रुख करते हैं। हममें से कई लोगों ने कोविड-19 महामारी की प्रगति पर लगातार नज़र रखी है, और इसके थमने या धीमा होने के संकेतों पर नज़र रखी है। हमने नई शब्दावली सीखी है, और कंटीले स्पाइक वाले गेंदनुमा वायरस की डरावनी छवि के आदी भी हो गए हैं।

वर्तमान में हम इस वायरस के नवीन और अधिक चिंताजनक संस्करणों का सामना कर रहे हैं। प्रत्येक संस्करण को या तो उसके भौगोलिक उत्पत्ति, या डब्ल्यूएचओ नामकरण पद्धति (अल्फा, बीटा, आदि) से मिले नाम, या ज़्यादा सटीक E484K, D614G जैसे नामों से पुकारा जाता है। E484K, D614G जैसी ये संख्याएं हमें प्रोटीन में अमीनो एसिड की रैखीय शृंखला का ध्यान दिलाती हैं। इस मामले में यह वायरस की सतह पर मौजूद स्पाइक प्रोटीन है।

स्पाइक प्रोटीन संक्रमण शुरू करता है – यह हमारे फेफड़ों और अन्य ऊतकों की कोशिकाओं की सतह पर मौजूद ग्राहियों से जुड़ जाता है। यह प्रोटीन अणु 1273 अमीनो एसिड की एक शृंखला है, और तीन अलग-अलग अणु मिलकर वायरस का ‘स्पाइक’ बनाते हैं। वायरस संस्करण E484K में संख्या 484 अमीनो एसिड की इस शृंखला के 484वें स्थान की द्योतक है। E इस स्थान पर पहले संस्करण में मौजूद ऋणात्मक आवेश वाले अमीनो एसिड ग्लूटामेट का संकेत है जो मेज़बान ग्राही से जाकर जुड़ता है। पूरा नाम दर्शाता है कि इस संस्करण में ऋणावेशित E (ग्लूटामेट) का स्थान अब धनावेशित अमीनो एसिड K (लाइसीन) ने ले लिया है। यह वाला उत्परिवर्तन बीटा और गामा संस्करणों में पाया गया है।

उत्परिवर्तन का प्रभाव

गौरतलब है कि उत्परिवर्तन में ऋणात्मक आवेश वाले ग्लूटामेट का स्थान धनात्मक आवेश वाले लाइसीन ने ले लिया है। क्या यह हम मनुष्यों के लिए अच्छी खबर है? उपलब्ध मैदानी आंकड़ों से पता चलता है कि वायरस का यह संस्करण अधिक संक्रामक है। और तो और, वायरस का यह संस्करण वायरस के खिलाफ बनी एंटीबॉडी से बच निकलने में भी सक्षम है।

सुर्खियों में छाए डेल्टा संस्करण में E484Q उत्परिवर्तन हुआ है। इसमें Q का मतलब ग्लूटामाइन है, जो ग्लूटामेट (E) से बहुत अलग नहीं है लेकिन Q उदासीन और ध्रुवीय है।

एक अन्य उत्परिवर्तन है L452 R। यह उत्परिवर्तन भी स्पाइक के ग्राही से बंधने वाले स्थान पर हुआ है। इसमें L का मतलब है ल्यूसीन जो कि अनावेशित और ‘चिपचिपा’ अमीनो एसिड है, और R धनावेशित आर्जिनीन है।

यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि वायरस के कई चिंताजनक संस्करणों के स्पाइक प्रोटीन के ग्राही से जुड़ने वाले हिस्से में सिर्फ एक या दो अमीनो एसिड में परिवर्तन नहीं हुए हैं। यूके में पहली बार देखे गए अल्फा संस्करण में कुल 23 उत्परिवर्तन हैं। इनमें से नौ उत्परिवर्तन स्पाइक प्रोटीन के किसी अन्य भाग में हुए हैं और कुछ अन्य उत्परिवर्तन वायरस के अन्य भागों में हुए हैं, जिन्हें अच्छी तरह समझा नहीं जा सका है।

यह स्पष्ट है कि इस प्रकार के परिवर्तन – विशाल अणु में एक या दो प्रतिस्थापन – का काफी कुशल और काफी विश्वसनीय कंप्यूटर मॉडल तैयार किया जा सकता है। जब भी वायरस  प्रोटीन का नया संस्करण सामने आता है तो इस तरह की मॉडलिंग करके हम उसके बारे में त्वरित अनुमान लगा सकते हैं। इसके अलावा, मॉडलिंग हमें वायरस के प्रोटीन से मज़बूती से जुड़ने वाली औषधियों के अणुओं को डिज़ाइन करने और उन्हें परिष्कृत करने में मदद कर सकता है। उदाहरण के लिए, कोरोनावायरस में एक एंज़ाइम होता है (प्रोटीएज़ वर्ग का एंज़ाइम), जो नए वायरस कण बनने से पहले स्पाइक प्रोटीन में कांट-छांट करके उसे सही आकार देता है। यदि औषधि अणु इस एंज़ाइम से कसकर बंध जाए, तो वह इस कांट-छांट को रोक कर वायरस की वृद्धि बाधित करेगा। आणविक मॉडलिंग से हज़ारों संभावित औषधियों में कुछ सर्वाधिक कारगर अणुओं को पहचानने में मदद मिलती है, जिनकी कारगरता फिर प्रयोगशाला में जांची जा सकती है। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.thehindu.com/sci-tech/science/5c31ej/article34799223.ece/ALTERNATES/LANDSCAPE_615/Figure-1-new

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