कैंसर कोशिकाओं से लड़ने की नई रणनीति

शोधकर्ता कैंसर कोशिकाओं की निशानदेही करने के तरीके ईजाद करने में लगे हैं। कैंसर के खिलाफ प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय या शुरू करने वाली दवाइयां इसमें काफी प्रभावी हो सकती हैं, लेकिन वे उन ट्यूमर पर सबसे अच्छा काम करती हैं जिनमें सबसे अधिक उत्परिवर्तन होते हैं। इसी तथ्य के आधार पर कैंसर उपचार का एक विवादास्पद समाधान सामने आया है: कीमोथेरेपी की मदद से जानबूझकर ट्यूमर में और उत्परिवर्तन कराए जाएं और इस तरह ट्यूमर को प्रतिरक्षा प्रणाली के हमले के प्रति अधिक संवेदी बनाया जाए।

पूर्व में प्रयोगशाला अध्ययनों और छोटे स्तर पर किए गए क्लीनिकल परीक्षणों में देखा गया है कि यह रणनीति मददगार हो सकती है। लेकिन कुछ कैंसर शोधकर्ता ऐसे सोद्देश्य उत्परिवर्तन करवाने को लेकर आशंकित हैं। उनका कहना है कि जानवरों पर हुए कई अध्ययनों से पता चलता है कि ऐसा करने से फायदे के बजाय नुकसान हो सकता है।

देखा गया है कि कुछ दवाइयां (चेकपॉइंट अवरोधक) उस आणविक अवरोधक को हटा देती हैं जो टी कोशिका (एक किस्म की प्रतिरक्षा कोशिका) को ट्यूमर पर हमला करने से रोकते हैं। ये दवाइयां धूम्रपान की वजह से हुए फेफड़ों के कैंसर और मेलेनोमा (एक तरह का त्वचा कैंसर) जैसे कैंसर पर सबसे अच्छी तरह काम करती हैं। ये कैंसर पराबैंगनी  प्रकाश के प्रभाव से पैदा होने वाले उत्परिवर्तनों को संचित करते रहते हैं। इनमें से कई जेनेटिक परिवर्तन कोशिकाओं को नव-एंटीजन बनाने को उकसाते हैं (नव-एंटीजन ट्यूमर कोशिकाओं पर नए प्रोटीन चिन्ह होते हैं) जो टी कोशिकाओं को ट्यूमर कोशिका को पहचानने में मदद करते हैं।

कैंसर कोशिकाओं को अधिक नव-एंटीजन बनाने को मजबूर करने से इम्यूनोथेरेपी में मदद मिल सकती है, इस विचार की जड़ें ऐसे ट्यूमर के अध्ययन में है जिनमें डीएनए की मरम्मत करने वाले तंत्रों में गड़बड़ी होती है। देखा गया कि ये कैंसर कोशिकाएं कई उत्परिवर्तन जमा करती जाती हैं। वर्ष 2015 में जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय (अब मेमोरियल स्लोअन केटरिंग कैंसर सेंटर में हैं) के लुइस डियाज़ ने बताया था कि चेकपॉइंट औषधियां ऐसे कई ट्यूमर्स पर काफी कारगर हैं जिनमें ‘बेमेल’ डीएनए मरम्मत तंत्र में गड़बड़ी होती है।

ट्यूरिनो विश्वविद्यालय के कैंसर आनुवंशिकीविद अल्बर्टो बार्डेली और साथियों ने ट्यूमर-ग्रस्त चूहों में मरम्मत करने वाले जीन को निष्क्रिय करके देखा। नेचर (2017) में उन्होंने बताया था कि इस जीन को निष्क्रिय करने से कैंसर कोशिकाओं के डीएनए में ज़्यादा त्रुटियां होने लगीं और चेकपॉइंट अवरोधकों की प्रभाविता में वृद्धि हुई।

उसके बाद मनुष्यों पर हुए दो और परीक्षणों में इसी तरह के प्रभाव देखे गए। एक अध्ययन में आंत के कैंसर पर काम किया गया। इसमें बहुत कम उत्परिवर्तन होते हैं, और इसलिए यह चेकपॉइंट अवरोधक दवाओं के प्रति संवेदी नहीं होता। इस तरह के कैंसर से पीड़ित 33 लोगों को कीमोथेरेपी की मानक औषधि टेमोज़ोलोमाइड दी गई। यह दवा विकृत या परिवर्तित जीन की मरम्मत नहीं होने देती। पाया गया कि सिर्फ कीमोथेरेपी करने से आठ लोगों का ट्यूमर कम हो गया था, लेकिन कीमोथेरेपी के बाद अन्य सात लोगों का ट्यूमर चेकपॉइंट अवरोधक दिए जाने के बाद कम हुआ। शोधकर्ताओं ने जर्नल ऑफ क्लीनिकल ओन्कोलॉजी में बताया था कि सभी लोगों में ट्यूमर की वृद्धि औसतन 7 महीने तक रुकी रही।

एक अन्य अध्ययन में देखा गया कि 16 में से 14 रोगियों और चार अन्य रोगियों, जिनके ट्यूमर की बायोप्सी का विश्लेषण किया गया था, में टेमोज़ोलोमाइड ने उत्परिवर्तन को प्रेरित किया था।

डियाज़ की दिलचस्पी यह जानने में थी कि क्या ट्यूमर में कोई खास उत्परिवर्तन करवाने से और भी बेहतर असर होता है। खास तौर से उनकी टीम की दिलचस्पी ऐसे उत्परिवर्तन में थी जो किसी कोशिका प्रोटीन निर्माण मशीनरी द्वारा मैसेंजर आरएनए (mRNA) के पढ़ने/समझने में बदलाव कर दे। इस तरह का उत्परिवर्तन सम्बंधित प्रोटीन के कई अमीनो एसिड्स को बदल सकता है, जो उसे प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए और अधिक पराया बना देता है।

डियाज़ और उनके साथियों ने कैंसर कोशिकाओं पर टेमोज़ोलोमाइड के साथ एक अन्य कीमोथेरेपी दवा सिसप्लैटिन का परीक्षण किया और पाया कि दोनों में से एक ही दवा देने की तुलना में इन दोनों दवाओं के मिले-जुले उपयोग ने हज़ार गुना अधिक उत्परिवर्तन किए। जब इन दोनों दवाओं के संयोजन से उपचारित कैंसर कोशिकाओं को चूहों में प्रविष्ट कराया गया तो चेकपाइंट दवा देने के बाद परिणामी ट्यूमर गायब हो गया।

शोधकर्ता अब आंत के मेटास्टेटिक ट्यूमर से पीड़ित लोगों को चेकपॉइंट दवा देने के पहले टेमोज़ोलोमाइड और सिसप्लैटिन का मिश्रण दे रहे हैं। पहले 10 रोगियों में से दो रोगियों के रक्त में ट्यूमर कोशिका द्वारा स्रावित डीएनए में अपेक्षाकृत अधिक उत्पर्वतन दिखे और ट्यूमर बढ़ना बंद हो गया। नतीजे शुरुआती हैं लेकिन परिणाम आशाजनक लगते हैं।

फिर भी, जोखिम तो हो ही सकता है: कीमोथेरेपी दवाएं रोगी की स्वस्थ कोशिकाओं में भी उत्परिवर्तन पैदा कर सकती हैं। वैसे शोधकर्ताओं का कहना है कि इस दवा से उपचारित करने के बाद चूहों में ऐसा नहीं हुआ।

कुछ शोधकर्ताओं को चिंता है कि यह तरीका उल्टा भी पड़ सकता है। उनका कहना है कि विविध कोशिकाओं से बने ट्यूमर की तुलना में एकदम एक-समान या चंद हू-ब-हू कोशिकाओं (क्लोन) से बने ट्यूमर चेकपॉइंट अवरोधक दवाओं के प्रति बेहतर प्रतिक्रिया देते हैं। डर है कि अधिक उत्परिवर्तन ट्यूमर में नए क्लोन बनाएंगे और टी कोशिकाओं के प्रभाव को कम कर देंगे। 2019 में हुए एक अध्ययन में देखा गया था कि चूहों के मेलेनोमा ट्यूमर में अल्ट्रावॉयलेट प्रकाश की मदद से उत्परिवर्तन करने पर कैंसर कोशिकाओं की विविधता में वृद्धि ने चेकपॉइंट अवरोधकों की प्रतिक्रिया में बाधा उत्पन्न की थी।

इस पर बार्डली का कहना है कि अल्ट्रावॉयलेट प्रकाश से हुए उत्परिवर्तन टेमोज़ोलोमाइड से हुए उत्परिवर्तन की तुलना में प्रतिरक्षा तंत्र को कम उकसाते हैं। और शोधकर्ताओं का तर्क है कि दो औषधियों का मिश्रण देने से नव-एंटीजन की संख्या काफी अधिक होगी जो ट्यूमर की आनुवंशिक विविधता के असर को कम कर देगी।

बहरहाल, बार्डली और डियाज़ की तैयारी कैंसर औषधि निर्माण की है। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.science.org/do/10.1126/science.abq6135/abs/_20220418_on_sciencesource_ss21241831.jpg

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