बूस्टर डोज़ का महत्व निजी नहीं, सार्वजनिक है – अरविंद सरदाना

रकार द्वारा बूस्टर डोज़ की घोषणा एक सही कदम है, परंतु इसे केवल 75 दिनों तक मुफ्त रखना समझ से परे है।

बूस्टर डोज़ की ज़रूरत क्यों

विशेषज्ञों का कहना है कि महामारी के टीके का असर 6 से 9 महीनों में कम हो जाता है; इसलिए सभी देश अपनी जनता को बूस्टर डोज़ लगवा रहे हैं। कई देशों ने यह काम पहले ही शुरू कर दिया था। यदि शरीर की महामारी से लड़ने की क्षमता को बरकरार रखना है तो बूस्टर की ज़रूरत होगी।

अब, चूंकि कोविड फिर से फैल रहा है, तो ज़रूरी हो जाता है कि बूस्टर डोज़ सभी को लगे। और यह काम महामारी का नया स्‍वरूप फैलने से पहले होना चाहिए। इसके अलावा, बूस्टर डोज़ केवल 75 दिन के लिए नहीं बल्कि सामान्य रूप से उपलब्ध होना चाहिए और इसका प्रचार होना चाहिए कि यह सभी को लगवाना है।

कुछ दिन पहले हमारे एक मित्र बूस्टर डोज़ लगवाने गए, पर हमारे छोटे शहर में कहीं उपलब्ध नहीं था। इंदौर के एक अस्पताल में बमुश्किल मिला। यदि निजी तौर पर लोगों को बूस्टर डोज़ लगवाना पड़े, तो आप मान कर चलें कि 5 प्रतिशत से अधिक लोग इसे नहीं लगवा पाएंगे – यह खर्चीला भी है और दुर्लभ भी।

दुर्भाग्य यह है कि हम महामारी के टीके के सिद्धान्‍त को समझ नहीं रहे हैं। हम तभी सुरक्षित होंगे, जब सभी लोग सुरक्षित होंगे। महामारी के टीके द्वारा हमारा लक्ष्य है कि कम से कम 80 प्रतिशत लोगों का टीकाकरण हो जाए ताकि समाज में एक ‘कवच’ बन जाए और महामारी को फैलने का रास्ता ना मिले। इसे ‘हर्ड इम्युनिटी’ कहते हैं। अर्थात यह एक सार्वजनिक ज़रूरत है। इसे मात्र निजी सुरक्षा के उपाय के रूप में प्रस्तुत नहीं करना चाहिए। लोगों को निजी पहल पर निजी अस्पताल में जाकर टीका लगवाने को कहने से ऐसी धारणा बनती है कि टीका व्यक्ति की निजी सुरक्षा भर के लिए है। लोग इसे लेने की महत्ता को तभी समझेंगे जब टीका सभी के लिए मुफ्त व बिना शर्त उपलब्ध होगा। बूस्टर देने में और देरी नहीं करनी चाहिए। ‘निजी सुरक्षा’, ‘सीमित अवधि के लिए उपलब्‍ध’ जैसे संदेशों से गलत माहौल बना है। अब इसे सार्वजनिक मुहिम में बदलना चाहिए।

कुछ लोग सोचते हैं कि मुफ्त भी हो तों मैं क्यों लगवाऊं, महामारी हमारे इलाके में नहीं है। यहां सार्वजनिक संवाद की ज़रूरत है। हम तभी सुरक्षित हैं जब अधिक लोग इसे लगवाएंगे।

यह याद रखना चाहिए कि महामारी का फैलाव एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। नए-नए संस्करण निकलेंगे। ऐसे में, लगातार निगरानी और विज्ञान ही हमें महामारी से मुकाबला करने के रास्ते बता सकता है। दवा की अनुपस्थिति में मास्क, टीका और भीड़भाड़ से दूर रहना ही उपाय हैं। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://static.india.com/wp-content/uploads/2022/07/QT-booster.jpg

प्रातिक्रिया दे