विलुप्त होती प्रजातियों से मानव अस्तित्व पर संकट – मनीष श्रीवास्तव

विश्व विख्यात जर्नल नेचर के जीव विज्ञान विभाग के वरिष्ठ संपादक डॉ. हेनरी जी ने विलुप्तप्राय प्रजातियों के मुद्दे को हाल ही में पुन: उठाया है। उन्होंने यह दावा किया है कि दुनिया भर में 5400 स्तनधारी प्रजातियों में से लगभग 1000 प्रजातियां विलुप्ति की कगार पर आ गई हैं। गेंडा, बंदर और हाथी जैसे जीव सबसे तेज़ी से लुप्त होने वाली प्रजाति बनने की ओर बढ़ रहे हैं।

जैव विविधता का जिस तरह से ह्रास हुआ है उसका प्रतिकूल असर मानव पर भी पड़ा है। उन्होंने चिंता जताते हुए कहा है कि अगर ईकोसिस्टम्स में इसी तरह असंतुलन की स्थिति रही तो पृथ्वी पर मानव सभ्यता का अंत भयावह होगा और अंतरिक्ष में उपग्रह कालोनियां बनाकर रहने का ही विकल्प बच जाएगा।

पर्यावरण के ईकोसिस्टम्स में आ रहे इस भयानक असंतुलन को पहली बार नहीं रेखांकित किया गया है। सालों से इस असंतुलन के प्रति जागरूकता लाने का क्रम चला आ रहा है। शायद इसीलिए संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा विश्व वन्य जीव दिवस (3 मार्च) के अवसर पर साल 2022 की थीम “पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली के लिए प्रमुख प्रजातियों को बहाल करना” रखा गया है।

जीव-जंतुओं के लुप्त होने से पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन को गिद्ध के उदाहरण से समझा जा सकता है। पहले बहुतायत में गिद्ध पाए जाते थे। इन्हें प्रकृति का दोस्त कहकर पुकारा जाता था, क्योंकि इनका भोजन मरे हुए पशु-पक्षियों का मांस होता है। यहां तक कि ये जानवरों की 90 प्रतिशत हड्डियों तक को हजम करने की क्षमता रखते हैं। किंतु अब ये लुप्तप्राय प्रजाति की श्रेणी में आ गए हैं और आज इनके संरक्षण के लिए विशेष प्रयास करने की ज़रूरत आन पड़ी है।

यही हाल प्राकृतिक वनस्पतियों का भी है। वैश्विक स्तर पर तीस हज़ार से भी ज़्यादा वनस्पतियां विलुप्ति की श्रेणी में आ चुकी हैं। भारत में पौधों की लगभग पैंतालीस हज़ार प्रजातियां पाई जाती हैं, जिसमें से लगभग 1300 से ज़्यादा विलुप्तप्राय हैं।

वैश्विक प्रयासों के साथ भारत ने जैव विविधता के संरक्षण में प्रतिबद्धता दर्शाई है। इस समय भारत में 7 प्राकृतिक विश्व धरोहर स्थल, 18 बायोस्फीयर रिज़र्व और 49 रामसर स्थल हैं, जहां विश्व स्तर पर लुप्त हो रही प्रजातियों का न सिर्फ संरक्षण हो रहा है, बल्कि उनकी संख्या में वृद्धि भी दर्ज की गई है।

संयुक्त राष्ट्र ने जैव विविधता के नष्ट होने के महत्वपूर्ण कारणों में शहरीकरण, प्राकृतिक आवास की कमी, प्राकृतिक संसाधनों का अतिशोषण, वैश्विक प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन को गिनाया है।

डॉ. हेनरी ने प्रजातियों की विलुप्ति का जो मुद्दा उठाया है, वह महत्वपूर्ण है। हमें सोचना होगा कि इस समस्या का समाधान मानव विकास का प्रकृति के साथ संतुलन स्थापित कर निकाला जा सकता है या किसी और तरीके से। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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