सालों तक उपज देने वाली धान की किस्म

चीन के वैज्ञानिकों ने धान की एक ऐसी किस्म तैयार की है जो एक बार लगाने पर कई वर्षों तक उपज देती रहेगी। दूसरे शब्दों में, यह धान की एक बहुवर्षी किस्म है जबकि आम तौर पर धान हर साल नए सिरे से रोपना होता है। वैज्ञानिकों का मत है कि इस किस्म के उपयोग से रोपाई में लगने वाली लागत और मेहनत दोनों कम हो जाएंगी और मिट्टी की गुणवत्ता में भी सुधार होगा।

वैसे तो गेहूं, मक्का, ज्वार आदि के समान धान भी एकवर्षी पौधा है यानी एक बार फूल आने के बाद यह नष्ट हो जाता है। लेकिन वैज्ञानिकों ने देखा कि इनमें एक अंतर भी है। जहां गेहूं, मक्का के वगैरह के पौधे एक बार फूलने के बाद पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं, वहीं धान काटने के बाद बचे ठूंठ पर फिर से कोपलें फूटती हैं और फिर से फूल भी लगते हैं। लेकिन दूसरी बार में उपज बहुत कम होती है।

वैज्ञानिकों ने धान की इसी मूल बहुवर्षी प्रवृत्ति का फायदा उठाकर नई किस्म तैयार की है। उन्होंने एशिया में उगाई जाने वाली धान का संकरण नाइजीरिया में पाई जाने वाली एक जंगली बहुवर्षी धान से करवाया। इससे जो संकर बीज तैयार हुए उन्हें सही मायने में बहुवर्षी बनाने में कई साल लगे और वर्ष 2018 में इस नई किस्म (पेरेनियल राइस 23, पीआर-23) को चीन में किसानों के उपयोग के लिए जारी कर दिया गया है।

यह पता करने के लिए कि पीआर-23 कितनी बार अच्छी उपज देगी, युनान विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक फेंगी ह्यू ने तीन स्थानों के किसानों के सहयोग से एक अध्ययन किया। इन किसानों ने कुछ ज़मीन पर नई किस्म का धान लगाया और पांच साल तक साल में दो बार इससे उपज प्राप्त करते रहे। साथ ही कुछ भूमि पर सामान्य धान भी लगाया गया था।

पहले चार वर्षों तक पीआर-23 की उपज 6.8 टन प्रति हैक्टर रही जो सामान्य एकवर्षी धान से थोड़ी अधिक थी। नेचर सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित शोध पत्र में शोधकर्ताओं ने बताया है कि पांचवे साल में अलबत्ता उपज कम होने लगी।

यह भी पता चला कि पीआर-23 उगाने से मिट्टी की गुणवत्ता में भी सामान्य धान की तुलना में सुधार आया। मिट्टी में जैविक कार्बन और नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ी और उसमें पानी को रोके रखने की क्षमता में भी सुधार हुआ। अब शोधकर्ता यह भी देखने का प्रयास कर रहे हैं कि पीआर-23 ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के मामले में कहां बैठता है क्योंकि धान के खेत मीथेन का एक प्रमुख स्रोत हैं, जो एक ग्रीनहाउस गैस है और वैश्विक तापमान वृद्धि में योगदान देती है।

पीआर-23 और वार्षिक धान की उत्पादन लागत की तुलना में पता चला कि पहले वर्ष के बाद पीआर-23 की उत्पादन लागत साधारण धान से आधी होती है। इसके चलते 2020 में पीआर-23 का रकबा बढ़कर 15,333 हैक्टर हो गया हाालंकि यह चीन के कुल धान रकबे (2.7 करोड़ हैक्टर) का अंश मात्र ही था। चीन सरकार भी इस किस्म को प्रोत्साहन दे रही है और उम्मीद की जा रही है कि यह किसानों के बीच लोकप्रिय साबित होगी। गौरतलब है कि यह नई किस्म जेनेटिक रूप से परिवर्तित उत्पाद नहीं है, बल्कि दो किस्मों के संकरण का नतीजा है। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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