बृहस्पति के चंद्रमा पर पहला मिशन

त 14 अप्रैल को युरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) द्वारा बृहस्पति के विशाल चंद्रमा का अध्ययन करने के लिए जुपिटर आइसी मून एक्स्प्लोरर (जूस) प्रक्षेपित किया गया। उम्मीद की जा रही है कि यह अंतरिक्ष यान गैलीलियो द्वारा 1610 में खोजे गए बृहस्पति के चार में से तीन बड़े चंद्रमाओं के नज़दीक से गुज़रते हुए अंत में ग्रह के सबसे विशाल चंद्रमा गैनीमेड की परिक्रमा करेगा। इस मिशन का उद्देश्य गैनीमेड की बर्फीली सतह के नीचे छिपे महासागर में जीवन के साक्ष्यों की खोज करना है। ऐसा पहली बार होगा जब कोई अंतरिक्ष यान हमारे अपने चंद्रमा के अलावा किसी अन्य प्राकृतिक उपग्रह की परिक्रमा करेगा।

यदि सब कुछ योजना अनुसार होता है तो 6 टन वज़नी अंतरिक्ष यान लगभग एक वर्ष के भीतर पृथ्वी और चंद्रमा के करीब से गुज़रेगा जिससे यान को बाहरी सौर मंडल की ओर बढ़ने में मदद मिलेगी। इसके लिए बहुत ही सटीक गुरुत्वाकर्षण-आधारित संचालन की आवश्यकता होगी। बाह्य सौर मंडल के अन्य मिशनों की तरह इस मिशन में भी जूस प्रक्षेपवक्र सीधा तो कदापि नहीं होगा। यह 2025 में वीनस के नज़दीक से गुज़रेगा और 2026 व 2029 में दो बार फिर से पृथ्वी के नज़दीक से गुज़रते हुए 2031 में बृहस्पति के करीब पहुंचेगा।

इस बिंदु पर यान के मुख्य इंजन को धीमा किया जाएगा ताकि वह बृहस्पति की परिक्रमा करने लगे। बृहस्पति की कक्षा में आने के बाद यह ग्रह के दूसरे सबसे बड़े चंद्रमा कैलिस्टो के काफी नज़दीक से 21 बार गुज़रेगा जबकि सबसे छोटे चंद्रमा युरोपा को बस दो बार पार करेगा।

2035 में जूस को गैनीमेड की कक्षा में भेजने के लिए इसके मुख्य इंजन को पुन: चालू किया जाएगा ताकि यह गैनीमीड की कक्षा में प्रवेश कर जाए। यह लगभग 9 महीने के लिए गैनीमेड के चारों ओर 500 किलोमीटर की ऊंचाई पर चक्कर लगाएगा। गैनीमीड की कक्षा में प्रवेश की प्रक्रिया भी काफी नाज़ुक होगी – गैनीमेड के चारों ओर धीमी गति से प्रवेश करना होगा और जूस की रफ्तार को गैनीमीड की कक्षीय गति से मेल खाना होगा। यदि इसमें थोड़ी भी चूक होती है तो बृहस्पति का गुरुत्वाकर्षण इसे गैनीमेड से और दूर ले जाएगा।

वैज्ञानिकों का मानना है कि बृहस्पति के कुछ चंद्रमाओं की बर्फीली सतह के नीचे तरल पानी उपस्थित है जो जीवन के विकास के लिए उचित वातावरण प्रदान कर सकता है। 1990 के दशक के मध्य में नासा के गैलीलियो प्रोब ने गैनीमेड और युरोपा पर महासागरों के साक्ष्य प्रदान किए थे। इसके बाद 2015 में हबल टेलिस्कोप की मदद से गैनीमेड पर ध्रुवीय ज्योति के संकेत भी मिले जो इस बात का प्रमाण है कि यहां चुंबकीय क्षेत्र मौजूद है।   

महासागरों की उपस्थिति के अधिक संकेत जूस द्वारा लेज़र-अल्टीमीटर द्वारा तैयार किए गए स्थलाकृति मानचित्रों से प्राप्त होंगे। अपनी साप्ताहिक परिक्रमा के दौरान गैनीमेड कुछ समय ग्रह के नज़दीक और कुछ समय दूर रहता है, इसके साथ ही अन्य चंद्रमाओं के गुरुत्वाकर्षण खिंचाव से उत्पन्न ज्वारीय बलों के कारण यह फैलता और सिकुड़ता है। एक बर्फीली सतह वाली दुनिया के लिए इस प्रकार की विकृतियां सतह को 10 मीटर तक ऊपर या नीचे ला सकती हैं।  

अपनी यात्रा के दौरान जूस 85 वर्ग मीटर के सौर पैनल का उपयोग करेगा जो ग्रह के चारों ओर संचालन के लिए आवश्यक है। इसके अलावा यह विभिन्न देशों द्वारा तैयार किए गए ढेर सारे उपकरण और एंटेना भी तैनात करेगा। बर्फीले चंद्रमाओं की सतहों की मैपिंग के साथ-साथ ये उपकरण उपग्रहों के वायुमंडल, बृहस्पति के मज़बूत चुंबकीय क्षेत्र और विकिरण बेल्ट आदि का भी अध्ययन करेंगे। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/2/21/Ganymede_-Perijove_34_Composite.png/1200px-Ganymede-_Perijove_34_Composite.png

प्रातिक्रिया दे