कुछ धूमकेतु हरे क्यों चमकते हैं?

र्ष 2014 में लवजॉय नाम का धूमकेतु (पुच्छल तारा) अपनी धुंधली हरी आभा के साथ दिखाई दिया था। ऐसी ही हरी चमक कुछ अन्य धूमकेतुओं में भी देखी गई है। अब, प्रयोगशाला में किए गए एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने इस रंगीन चमक का कारण पता लगाया है।

वैज्ञानिकों को यह तो अंदेशा था कि धूमकेतुओं के आसपास की हरे रंग की आभा डाईकार्बन (C2) नामक एक अभिक्रियाशील अणु के टूटने से आती है। इसकी पुष्टि के लिए शोधकर्ताओं ने कार्बन क्लोराइड (C2Cl4) से अल्ट्रावायलेट लेज़र की मदद से क्लोरीन परमाणुओं को अलग कर दिया और फिर शेष रहे डाईकार्बन अणुओं पर उच्च-तीव्रता वाला प्रकाश डाला। नतीजतन हुई रासायनिक अभिक्रिया ने शोधकर्ताओं को आश्चर्यचकित कर दिया।

प्रोसिडिंग्स ऑफ दी नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस में शोधकर्ताओं ने बताया है कि डाईकार्बन अणु ने प्रकाश का एक फोटॉन अवशोषित करके हरा फोटॉन उत्सर्जित करने की बजाय दो फोटॉन अवशोषित किए, और फिर टूटकर हरे रंग का प्रकाश उत्सर्जित किया। पहले अवशोषित फोटॉन से डाईकार्बन अणु एक अर्ध-स्थिर अवस्था में पहुंचा, और दूसरे अवशोषित फोटॉन से और अधिक ऊर्जा लेकर यह अस्थिर अवस्था में पहुंचा और टूट गया। इस अभिक्रिया में हरे रंग का फोटॉन उत्सर्जित हुआ।

इस प्रक्रिया में डाईकार्बन अणु दो बार ऊर्जा लेकर अवस्था परिवर्तन (ट्रांज़िशन) करता है। आम तौर पर रसायनज्ञ मानते हैं कि ऐसे ट्रांज़िशन निषिद्ध है। हालांकि भौतिकी के नियम अनुसार ये ट्रांज़िशन पूरी तरह निषिद्ध भी नहीं हैं। ये ट्रांज़िशन प्रयोगशाला में नहीं देखे जाते क्योंकि प्रयोगशाला में अणु अपेक्षाकृत पास-पास होते हैं। लेकिन अंतरिक्ष में अणु काफी दूर-दूर होते हैं और शायद ही कभी अन्य अणुओं या परमाणुओं के संपर्क में आते हैं।

डाईकार्बन अणु का जीवनकाल दो दिन से भी कम समय का होता है। प्रयोगों के दौरान एकत्रित डैटा से पता चलता है कि सूर्य से पृथ्वी की दूरी के मुताबिक, इससे यह समझने में मदद मिलती है कि अणु के टूटने से जुड़ी हरी चमक केवल धूमकेतु के सिर के आसपास ही क्यों दिखाई देती है, इसकी पूंछ में यह कभी क्यों दिखाई नहीं देती। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.science.org/do/10.1126/science.acz9875/full/_20211220_on_comet.jpg

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