मस्तिष्क बड़ा होने में मांसाहार की भूमिका

ब मांसाहार की बात आती है, तो हमारे सबसे करीबी सम्बंधी चिम्पैंज़ी हमारी तुलना में बहुत ही कम मांस खाते हैं।

पुरातात्विक स्थलों पर पाए गए बूचड़खानों के निशानों की संख्या के आधार पर लंबे समय से कहा जाता रहा है कि हमारी मांस खाने की उत्कट इच्छा लगभग 20 लाख साल पहले बढ़ना शुरू हुई थी। मांस से मिलने वाली अधिक कैलोरी ने हमारे एक पूर्वज – होमो इरेक्टस – में बड़ा शरीर और मस्तिष्क विकसित करने की शुरुआत की थी।

लेकिन एक ताज़ा अध्ययन का तर्क है कि इस परिकल्पना के प्रमाण सांख्यिकीय रूप से कमज़ोर हैं क्योंकि शोधकर्ताओं ने बाद के समय के खुदाई स्थलों पर अधिक ध्यान दिया है। इसलिए यह जानना असंभव है कि मानव विकास में मांसाहार की भूमिका कितनी अहम है।

नए अध्ययन में जॉर्ज वाशिंगटन विश्वविद्यालय के जीवाश्म विज्ञानी डब्ल्यू. एंड्र्यू बार और उनके साथियों ने बूचड़खानों पर पूर्व में किए गए अध्ययनों के डैटा की समीक्षा की। ये डैटा 26 लाख से 12 लाख साल पूर्व के कालखंड के पूर्वी अफ्रीका में प्रारंभिक मानव गतिविधि वाले नौ पुरातात्विक स्थलों से थे। जैसी कि उम्मीद थी जानवरों की हड्डियों पर वध के निशान वाले साक्ष्य मिलने में वृद्धि लगभग 20 लाख वर्ष पूर्व से दिखना शुरू हुई। लेकिन, शोधकर्ताओं ने पाया कि पुरातत्वविदों को पशु वध के साक्ष्य उन स्थलों पर अधिक मिले जहां अधिक शोध किया गया था। दूसरे शब्दों में, जिस स्थल पर जितना अधिक ध्यान दिया गया, वहां मांसाहार के साक्ष्य मिलने की संभावना उतनी अधिक रही।

प्रत्येक पुरातात्विक स्थल में तलछट की कई परतें होती हैं; जितनी परत नीचे जाते जाएंगे उनमें उतनी अधिक प्राचीन वस्तुएं मिलेंगी। साफ है कि 25 लाख से 20 लाख साल पुरानी परतों को उतना नहीं खोदा गया है या उनमें दफन चीज़ों को बाहर नहीं निकाला गया है जितना कि उनके बाद वाली परतों को खोदा गया है, और इसी कारण प्राचीनतर परतों का अध्ययन कम किया गया है। पुरातत्वविद किसी खुदाई स्थल पर जितना अधिक समय और ऊर्जा लगाते हैं, वहां से उतनी ही अधिक वस्तुएं मिलती हैं। तो विभिन्न स्थलों से मिले साक्ष्यों – जैसे हड्डियों पर वध के निशान – की तुलना एक पेचीदा सांख्यिकीय मसला बन जाता है।

इससे निपटने के लिए, बार और उनकी टीम ने इन स्थलों के आंकड़ों को समायोजित किया और पाया कि वास्तव में 26 लाख वर्ष पूर्व से 12 लाख वर्ष पूर्व तक मांस खाने के साक्ष्य की संख्या स्थिर ही रही। ये नतीजे प्रोसीडिंग्स ऑफ दी नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित हुए हैं। बार का तर्क है कि मांसाहार में वृद्धि पर ध्यान देने के बजाय अन्य परिकल्पनाओं पर ध्यान देना चाहिए। जैसे खाना पकाने की शुरुआत, जिससे भोजन का पाचन आसान हुआ होगा और अधिक कैलोरी मिलने लगी होगी, और मस्तिष्क बड़ा होने लगा होगा। सामाजिक विकास ने भी मदद की होगी। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.science.org/do/10.1126/science.abj4012/abs/Neanderthal_eating_1280x720.jpg
https://www.science.org/do/10.1126/science.ada0511/full/_20220124_on_carnivory.jpg

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