कठफोड़वा के मस्तिष्क की सुरक्षा का सवाल

ह तो सब जानते हैं कि कठफोड़वा ज़ोरदार प्रहार करके पेड़ों में कोटर बनाता है। इस प्रहार के दौरान उसका दिमाग महफूज़ कैसे रहता है?

लंबे समय से वैज्ञानिक मानते आए हैं कि पेड़ पर चोंच से प्रहार करते समय कठफोड़वा की खोपड़ी की स्पंजी हड्डी उसके मस्तिष्क की सुरक्षा करती है। इसी से प्रेरणा लेकर इंजीनियरों ने सुरक्षा हेलमेट और शॉक-एब्सॉर्बिंग इलेक्ट्रॉनिक उपकरण डिज़ाइन किए हैं। लेकिन हालिया विश्लेषण से पता चला है कि कठफोड़वा का ध्यान अपने मस्तिष्क की सुरक्षा के बजाय प्रहार की ताकत पर अधिक होता है।

चाहे भोजन की तलाश हो, पेड़ में घर बनाना हो या अपने साथियों को लुभाना, कठफोड़वा प्रति सेकंड लगभग 20 बार अपनी चोंच से प्रहार करता है। और फिर अपने रोज़मर्रा के काम पर निकल जाता है।

यदि फुटबॉल मैच के दौरान विपरीत दिशा से आ रहे दो प्रतिद्वंदी आपस में टकराते हैं, तो टक्कर के बाद शरीर और सिर तो स्थिर हो जाते हैं लेकिन मस्तिष्क आगे गति करता रहता है। सामने वाला भाग दबाव और पिछला भाग खिंचाव महसूस करता है जिसके कारण कभी-कभी मस्तिष्क को गंभीर क्षति पहुंचती है।

इस विषय में युनिवर्सिटी ऑफ एंटवर्प के बायोमेकेनिस्ट और इस अध्ययन के प्रमुख लेखक सैम वान वासेनबर्ग बताते हैं कि कठफोड़वा मानव मस्तिष्काघात सीमा से तीन गुना अधिक त्वरण से चोंच मारने के बावजूद बिना किसी नुकसान के बच निकलता है। इस लचीलेपन ने पूर्व में शोधकर्ताओं को पक्षियों की रक्षा करने वाली विशेष संरचना की खोज करने के लिए प्रेरित किया था। कुछ विशेषज्ञों का अनुमान था कि इसकी खोपड़ी की स्पंजी हड्डी एयरबैग के रूप में कार्य करती है जबकि कुछ अन्य के अनुसार इसकी लंबी जीभ मस्तिष्क के लिए सीटबेल्ट का काम करती है।  

वैन वासेनबर्ग और उनके सहयोगियों ने एक नया तरीका अपनाया। उन्होंने चोंच मारने वाले पक्षियों में प्रशामक प्रभाव का पता लगाने का प्रयास किया। इसके लिए शोधकर्ताओं ने तीन प्रजातियों के छह कठफोड़वों के 109 हाई-स्पीड विडियो रिकॉर्ड किए। करंट बायोलॉजी में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार लकड़ी पर प्रहार करते कठफोड़वा की चोंच और सिर के विशेष बिंदुओं को ट्रैक करते हुए वैज्ञानिकों ने पाया कि कठफोड़वे की खोपड़ी सख्त बनी रही यानी उसका सिर चोंच की तुलना में जल्दी स्थिर नहीं हुआ।       

रिकॉर्डिंग के आधार पर एक सिमुलेशन मॉडल भी तैयार किया गया। इस मॉडल में शॉक-एब्सॉर्बर जोड़ने के बाद एक बार फिर से परीक्षण किया गया जिससे यह स्पष्ट हुआ कि इन पक्षियों के मस्तिष्क की रक्षा करने में शॉक-एब्सार्बर की कोई भूमिका नहीं है। यदि सिर इस टकराव के प्रभाव को अवशोषित कर ले तो यह पक्षी इतना अधिक बल नहीं लगा पाएगा। यानी कठफोड़वा अपनी चोंच से कम गहराई तक लकड़ी खोद पाएगा। यानी शॉक एब्सॉर्बर हो तो उतनी ही लकड़ी खोदने के लिए उसे ज़्यादा ज़ोरदार प्रहार करना होगा। यह वैसा ही होगा जैसे दीवार पर कील ठोकना है और हथौड़े और कील के बीच तकिया रख दिया जाए।  

लेकिन सवाल तो यह है कि कठफोड़वा खुद को चोट लगने से कैसे बचाता है? इस अध्ययन के लेखक के अनुसार मस्तिष्क का आकार और अभिविन्यास उसकी रक्षा करते हैं। यहां तक कि सबसे मज़बूत प्रहार भी उसके मस्तिष्क पर बहुत कम प्रभाव डालता है। इसके अलावा, संभवत: कठफोड़वा में मस्तिष्क को होने वाली मामूली क्षति को रोकने और मरम्मत करने के लिए विशेष प्रणालियां होती हैं।    

अलबत्ता, कुछ वैज्ञानिकों ने अभी भी पक्षी के भीतर शॉक-एब्सार्बर के विचार को खारिज नहीं किया है। फिर भी यह अध्ययन काफी महत्वपूर्ण है जो कठफोड़वा को बेहतर ढंग से समझने में मदद कर सकता है। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.sciencealert.com/images/2022-07/processed/PileatedWoodpeckerNesting_600.jpg
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